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चुनावी रण में शामिल हुई असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआएम

September 13, 2015


चुनावी रण में शामिल हुई एआईएमआएम

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिसइत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी एआईएमआईएम बिहार चुनाव लड़ेगी। लेकिन सिर्फ सीमांचल क्षेत्र में। इसमें कटिहार, पुर्णिया, अररिया और किशनगंज आते हैं।

ओवैसी ने अख्तर इमाम को बिहार इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है। एआईएमआईएम की रणनीति को अंजाम देने की जिम्मेदारी उन्हें ही दी है। ओवैसी अपनी सीमाएं जानते हैं। इस वजह से उन्होंने बुद्धिमानी से अपने संसाधन और ध्यान उन्हीं जगहों पर लगाने का फैसला किया है, जहां वे सबसे ज्यादा असर पैदा कर सकते हैं। सीमांचल क्षेत्र बिहार के पूर्वोत्तर हिस्से में है। यह अन्य इलाकों के मुकाबले काफी पिछड़ा क्षेत्र है। यहां मुस्लिम आबादी भी बहुतायत में है।

एआईएमआईएम प्रमुख ने तत्काल यह भी साफ कर दिया कि वे किसी और पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं करेंगे। उन्होंने जेडी(यू), कांग्रेस और बीजेपी को सीमांचल क्षेत्र के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराया।

समाजवादी पार्टी की नजर भी सीमांचल पर

सीमांचल क्षेत्र में यादव और मुस्लिम समुदायों की अच्छीखासी आबादी है। ऐसे में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी इस इलाके पर ध्यान केंद्रित कर रही है। वैसे भी यह दोनों समुदाय एसपी के पारंपरिक समर्थक माने जाते हैं।

खबरों के मुताबिक, मुलायम सिंह की पार्टी इस समय एनसीपी से चुनाव पूर्व गठबंधन करने और सीटों के बंटवारे पर बातचीत कर रही है। एनसीपी भी एसपी की ही तरह जेडी(यू)-आरजेडीकांग्रेस गठबंधन से बाहर आ चुकी है। देरी से ही सही, मुलायम सिंह एनसीपी से संपर्क कर रहे हैं। कुछ खबरों के मुताबिक वह तो कटिहार से एनसीपी के सांसद तारिक अनवर को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने पर भी रजामंद है। तारिक अनवर ने इस संबंध में आरजेडी से बाहर निकलकर एसपी में शामिल हुए रघुनाथ झा के साथ बैठकें भी की हैं। इस दौरान एसपी की बिहार इकाई के प्रमुख और राष्ट्रीय महासचिव किरणमय नंदा से भी उनकी मुलाकात हुई है।

यह नया घटनाक्रम सीमांचल में एसपी की ताकत बढ़ाएगा। वहीं नीतीश कुमार – लालू प्रसाद के गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि इस गठबंधन को सीमांचल में यादव और मुस्लिम वोटबैंक से काफी उम्मीदें थी।

एनसीपी के अलावा एसपी इस समय आरजेडी के पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन की सीमांचल क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) और पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि की समरस समाज पार्टी (एसएसपी) जैसी क्षेत्र की छोटी पार्टियों से भी संपर्क कर रही है। इस उम्मीद के साथ कि वह इनके सहारे जेडी(यू) और आरजेडी के पारंपरिक गढ़ में सेंध लगा लेगी।

कांग्रेस ने अपने अभियान को दी तेजी

चुनावों की तारीखों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस ने भी अपने चुनाव अभियान को तेजी दे दी है। चुनाव और घोषणापत्र बनाने के लिए अलग समितियां बनाई हैं। 19 सदस्यों वाली कांग्रेस प्रदेश कमेटी में एआईसीसी महासचिव शकील अहमद, लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार, पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह और पीसीसी प्रमुख अशोक चौधरी जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं।

11 सदस्यों वाली घोषणापत्र कमेटी में बिहार पीसीसी के उपाध्यक्ष पीसी मिश्रा, वीएस दुबे, पीएस कुशवाहा के साथ ही पीसीसी के पूर्व प्रमुख आरजे सिन्हा को भी रखा गया है। कांग्रेस ने तय किया है कि इस बार कम सीटों पर चुनाव लड़ा जाए। इस वजह से उसका मुकाबला सिर्फ 40 सीटों तक सीमित रहेगा।

चुनाव आयोग ने किए कई प्रमुख अफसरों के तबादले

आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद स्थानीय प्रशासनिक ढांचे का पूरा नियंत्रण चुनाव आयोग के पास आ जाता है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग ने राज्य के गृह सचिव अमीर सुभानी की जगह सुधीर कुमार राकेश को नियुक्त किया है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने 9 जिला कलेक्टर, 7 एसएसपी और एसपी लेवल के पुलिस अधिकारियों के तबादले के आदेश जारी किए हैं। हालांकि, इस आदेश में सेक्टर ऑफिसर शामिल नहीं हैं, जो चुनाव कराने में सीधेसीधे जुड़े होते हैं।

न नेताओं पर रहेगी नजरः शरद यादव (जन्म 1 जुलाई 1947)

मध्यप्रदेश के अखमाउ गांव में जन्मे शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की है। वह भी गोल्ड मेडल के साथ। पढ़ाई के अलावा वह छात्र राजनीति में भी शामिल रहे और बहुत जल्दी छात्र संघ के अध्यक्ष चुन लिए गए। उन पर डॉ. राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों ने गहरी छाप छोड़ी। जब जयप्रकाश नारायण ने अपना आंदोलन शुरू किया तो यादव को उनसे भी मार्गदर्शन मिला।

वे 1974 में जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुन लिए गए। 1977 में जबलपुर की जनता ने दोबारा उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना। बाद में वे 1989 में उत्तरप्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते भी। आगे चलकर वे बिहार के मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में गए। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने इस क्षेत्र को पार्टी का गढ़ बनाने में काफी मेहनत की। वे 1991 से मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से लगातार जीत रहे थे, लेकिन 2014 के आम चुनावों में हार गए।

वे केंद्रीय कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण कैबिनेट मंत्री (1989-90), केंद्रीय नागरिक उड्डयन कैबिनेट मंत्री (13 अक्टूबर 1999 से 31 अगस्त 2001), केंद्रीय श्रम कैबिनेट मंत्री (1 सितंबर 2001 से 30 जून 2002), केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जनवितरण कैबिनेट मंत्री (1 जुलाई 2002 से 15 मई 2004) जैसे पदों पर रहकर सेवाएं दे चुके हैं।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः रक्सौल

पूर्वी चंपारन जिले का सीमावर्ती शहर हैरक्सौल। यह भारतनेपाल सीमा पर भारत में स्थित है। इसकी भौगोलिक परिस्थिति की वजह से रक्सौल भारत और नेपाल के बीच व्यापार का प्रमुख परिवहन बिंदू बनकर उभरा है। यह एक बड़ा रेल टर्मिनस है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस शहर की कुल आबादी 2,40,347 है। औसत साक्षरता दर 60% है। यहां की मुख्य भाषाएं भोजपुरी, हिंदी और नेपाली है।

2010 विधानसभा चुनाव में विजेताः डॉ. अजय कुमार सिंह, बीजेपी

जीत का अंतरः 10,117 वोट्स; 8.92% कुल वैध मतों का

निकटतम प्रतिद्वंद्वीः राज नंदन राय, एलजेपी

पुरुष मतदाताः 66,318; महिला मतदाताः 47,137; कुलः 1,34,455

मतदान प्रतिशतः 54%

2010 के चुनावों में पुरुष उम्मीदवारः 6; महिला उम्मीदवारः 1

मतदान केंद्रः 209