Home / / बिहार चुनावः बीजेपी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित क्यों नहीं कर रही?

बिहार चुनावः बीजेपी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित क्यों नहीं कर रही?

October 31, 2015


मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित न करने की अपनी रणनीति पर कायम है बीजेपी।

बिहार में चौथे चरण का मतदान रविवार को है। बीजेपी ने अब तक अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। ऐसा लग रहा है कि चुनावों से पहले प्रत्याशी घोषित न करने की अपनी रणनीति पर पार्टी कायम रहने वाली है। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य पार्टी और गठबंधन सहयोगियों से तुलना और बहस से बचना है, जो चुनावों से पहले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम की घोषणा के बाद होती। अन्य राज्यों में यह रणनीति कारगर भी रही है।

लेकिन ‘एक साइज सबको फिट आ जाएगा’ का नियम सभी जगह लागू नहीं होता। बिहार में भी इसी रणनीति पर चलना बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। कल चौथे और उपान्त्य (अंतिम से पहले का) चरण का मतदान है। इसे देखते हुए पहले ही काफी देर हो चुकी है।

मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा न करते हुए बीजेपी ने खुद को सभी तरह के हमलों के लिए खुला छोड़ रखा है। महागठबंधन इस मुद्दे पर हमलावर बनकर काफी फायदा बटोर चुका है। यह बताने में भी कुछ हद तक कामयाब रहा है कि एनडीए एक व्यक्ति को चेहरे के तौर पर पेश भी नहीं कर सका है।

लोगों से सीधेसीधे जुड़ने वाला ‘स्थानीय’ चेहरा सामने न रखकर बीजेपी ने खुद ही ‘बाहरी’ बनाम ‘बिहारी’ के जुमलों को मौका दिया है। लोगों में भी काफी हद तक इसने पैठ बनाई है। इतना ही नहीं, अमित शाह ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी को अभियान का चेहरा बनाया। साथ ही अपनी सभी रैलियों के स्टार प्रचारक के तौर पर पार्टी ने उन्हें ही पेश किया है।

इस तरह, मोदी बिहार में चुनाव अभियान का चेहरा बन गए और ऐसा करते हुए उन्होंने खुद को ‘बाहरी’ बनाम नीतीश कुमार के तौर पर स्थानीय ‘बिहारी’ के बीच की लड़ाई बनने का मौका दे दिया। महागठबंधन के लिए इस जुमले को उछालकर आरोप लगाने की जरूरत नहीं थी, खासकर जिस तरह से वह लोगों के बीच पहुंचा है। लोगों को एक विकल्प तो नीतीश का है, लेकिन वे नहीं जानते कि दूसरा विकल्प कौन होगा। इसकी एक वजह यह है कि पार्टी ने उन्हें ऐसा करने का विकल्प ही नहीं दिया।

अमित शाह और अभियान में शामिल अन्य नेताओं को मतदान के शुरुआती चरणों में ही इस स्थिति का आकलन कर लेना चाहिए था। मुख्यमंत्री पर फैसला ले लेना चाहिए था। आखिरी मौके पर किया गया सुधार महागठबंधन के अभियान की हवा निकालने में फायदा पहुंचाता। नीतीश कुमार का मुकाबला नरेंद्र मोदी से नहीं होता, बल्कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी से होता। उस स्थिति में मोदी स्टार प्रचारक होते। इसका फायदा बीजेपी को भी मिलता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अमित शाह इस सुधार से क्यों बचे? इसका जवाब दो जमीनी हकीकतों में कोई हो सकता है। एक यह है कि बीजेपी ने निश्चित तौर पर सुशील मोदी के अलावा किसी को उम्मीदवार बनाने की योजना बनाई है। यदि सुशील मोदी को नहीं बना रही तो निश्चित तौर पर बीजेपी एक अनजाने चेहरे को मुख्यमंत्री बनाती। जैसा कि हरियाणा में हुआ। कैप्टन अभिमन्यु के लोकप्रिय चेहरे के बजाय खट्टर को महत्व दिया गया। बीजेपी खेमे में सुशील मोदी सबसे योग्य और मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा स्वीकार्य नेता बने हुए हैं। लेकिन वे नीतीश कुमार के कद की बराबरी नहीं कर सकते।

मुख्यमंत्री पद का नाम घोषित न करने का दूसरा संभावित कारण गठबंधन सहयोगियों में किसी तरह की फूट से बचने की कोशिश भी हो सकती है। सहयोगियों के साथ गठबंधन के एकजुट होने की बात सामने रखना भी बेहद जरूरी था। आखिर बीजेपी को भी एकजुट दिखना था। यदि नाम घोषित हो जाता तो एकजुटता खतरे में पड़ सकती थी।

हो सकता है कि ऊपर बताई गई दोनों संभावित बाध्यताओं की वजह से अमित शाह ने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की। जबकि सामने स्थिति ऐसी बन गई है कि स्थानीय ‘नीतीश कुमार’ को ऐसे व्यक्ति से भिड़ा दिया गया है जो मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी तक नहीं है। लेकिन यह एक रणनीति है, जिस पर बीजेपी ने अमल करने की ठानी है। 8 नवंबर को हमें पता चलेगा कि अमित शाह की यह रणनीति कामयाब होती है या पार्टी को धराशायी कर देती है। यदि कुछ भी गलत होता है तो उसकी जिम्मेदारी अमित शाह और प्रधानमंत्री को अपने कंधे पर उठानी होगी।

अमित शाह ने पाकिस्तान की टिप्पणी पर मजबूती से बचाव किया

शुक्रवार को एक टीवी चैनल से बात करते हुए अमित शाह ने अपने हालिया विवादित बयान पर खुलकर सफाई दी। शाह ने कहा था कि एनडीए यदि बिहार चुनावों में हारती है तो पाकिस्तान में आतिशबाजी होगी। इसके ऊपर और अन्य विवादों पर बिंदूवार जवाब देते हुए अमित शाह ने साफ किया कि यह बयान सांप्रदायिक नहीं था और न ही इसका उद्देश्य ध्रुवीकरण था। उन्होंने कहा कि इसका संदर्भ यह था कि एनडीए बिहार में चुनाव हारती है तो राष्ट्रविरोधी ताकतों को मजबूती मिलेगी। उन्होंने इस संबंध में किसी धर्म का उल्लेख करने के संदर्भों का भी खंडन किया।

उन्होंने महागठबंधन को यह कहते हुए आड़े हाथों लिया कि गठबंधन किसी विचारधारा पर नहीं बना है बल्कि सत्ता भोगने के लिए बना है। जबकि एनडीए के गठबंधन में उसके सहयोगी दल बीजेपी को मजबूती देने के लिए साथ आए हैं।

उन्होंने पूरे भरोसे के साथ दावा कियाकि एनडीए को दोतिहाई बहुमत मिलेगा और अगली सरकार भी बनाएंगे। जब उनसे पूछा गया कि क्या बिहार चुनाव के नतीजे नरेंद्र मोदी सरकार के प्रदर्शन पर जनमत संग्रह होगा, उन्होंने सीधेसीधे जवाब तो नहीं दिया लेकिन यह जरूर कहा कि वे 8 नवंबर को इस सवाल का जवाब देंगे।

चुनाव आयोग ने बीजेपी के दो विवादित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया

शुक्रवार को, कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला और अजय कुमार के साथ ही जेडी(यू) के केसी त्यागी का प्रतिनिधिमंडल सीईसी नसीम जैदी से मिला। इस मुलाकात में बीजेपी पर बिहार में सांप्रदायिक तनाव फैलाने और चुनाव प्रक्रिया को दूषित करने का आरोप लगाते हुए एक ज्ञापन सौंपा गया। प्रतिनिधिमंडल ने आरोप लगाया कि महागठबंधन के नेताओं के खिलाफ अमित शाह और नरेंद्र मोदी की विभिन्न टिप्पणियों पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।

महागठबंधन ने चुनाव आयोग के दफ्तर से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने की शिकायत की है। समीक्षा में चुनाव आयोग ने पाया कि दो विज्ञापनों की सामग्री आपत्तिजनक है। इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने कल बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी अजय नाइक को निर्देश दिए कि दो विज्ञापनों का आगे कोई प्रकाशन और वितरण नहीं होना चाहिए।

एक विज्ञापन में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को यह कहते हुए बताया गया कि दोनों ‘दलितों की थाली छीनने’ की योजना बना रहे हैं। संदर्भ कोटे से था। जो किसी एक अल्पसंख्यक समुदाय को दिया जा रहा है।

दूसरे विज्ञापन में ‘ वोट की खेती’ या वोट बैंक पॉलिटिक्स का संदर्भ है। इसमें कहा गया है कि महागठबंधन की तीनों पार्टियां अल्पसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए आतंकवादियों को बचा रही है।

चुनाव आयोग ने पाया कि दोनों ही विज्ञापन आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं और इस वजह से इन्हें रिलीज करने, प्रकाशन, वितरण और प्रसारण पर पाबंदी लगाई गई। प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में जारी एक विज्ञापन की शिकायत भी की, जिसमें जेडी(यू) सरकार पर एलईटी और आईएसआई के आतंकवादियों को बिहार में फलनेफूलने का दोषी बताया गया है।

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य चुनाव आयुक्त से चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक अमित शाह पर बिहार में घुसने पर रोक लगाने की मांग भी की। उन्होंने शिकायत की कि अमित शाह सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रहे हैं और वह आदतन ऐसा करते हैं। इससे पहले एक कोर्ट ने गुजरात में घुसने से रोका था।

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives