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बिहार महाभारतः बीजेपी ने घोषित किया सीटों के बंटवारे का फार्मूला

September 15, 2015


भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सूत्र सीटों के बंटवारे

सहयोगी पार्टियों के गुस्से और मोलभाव के बाद बीजेपी ने आखिरकार बिहार चुनावों के लिए सीटों के बंटवारे का फार्मूला घोषित कर दिया है। बीजेपी 160 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सहयोगी पार्टियां बची हुई 83 सीटों पर। राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी सबसे ज्यादा 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली आरएलएसपी 23 और जीतन मांझी के नेतृत्व वाली हम 20 सीटों पर।

अंतिम समझौते पर पहुंचना इतना आसान नहीं था। जीतन मांझी सबसे कम सीटें मिलने से नाखुश थे। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स कह रही हैं कि राम विलास पासवान भी उनके हिस्से को लेकर खुश नहीं हैं। लेकिन अमित शाह नहीं झुके। उन्हें पता था कि वे इस मामले में अपनी मन की कर सकते हैं और सहयोगी पार्टियों के पास उनकी बात मानने के सिवा कोई और चारा नहीं रहेगा। मनमुटाव दूर करने के लिए अमित शाह ने यह घोषणा भी कर दी कि जीतन मांझी अपनी पसंद के 4-5 उम्मीदवारों को बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ाया जाएगा। यह एक चतुराई भरा कदम है। अमित शाह ने एक तीर से निशाने साधे हैं। मांझी को खुश तो किया ही, उनके विश्वस्तों को बीजेपी के टिकट पर जितवाकर अपनी पार्टी के व्हिप का गुलाम भी बना लिया। यह सब गुणाभाग कर उन्होंने फिलहाल तो गठबंधन के विवाद सुलझा ही लिए हैं। गठबंधन सहयोगियों के साथ सीटों के समझौते पर असहमति ही थी कि अमित शाह को अपना दौरा रद्द करना पड़ा। दिल्ली में रहकर इस समझौते की दिक्कतों को दूर करना पड़ा।

 

क्या मायने हैं सीटों के बंटवारे के फार्मूले के

सीटों के बंटवारे के फार्मूले से कई रोचक तथ्य निकलते हैं। पहला, राम विलास पासवान और जीतन राम मांझी की अहम् की लड़ाई में बीजेपी ने यह समझ लिया है कि दलित और महादलितों का सच्चा नेता कौन है। बीजेपी हाईकमान ने साफ तौर पर राम विलास पासवान पर दांव लगाया है। इस उम्मीद के साथ कि वह सबसे ज्यादा दलित वोट दिलवाएंगे। आरएलएसपी को हम से ज्यादा सीटें देकर बीजेपी हाईकमान ने यह भी साफ कर दिया कि जीतन मांझी की गठबंधन में स्थिति क्या है। इसका यह भी मतलब है कि जीतन मांझी गठबंधन में सिर्फ सजावटी वस्तु के तौर पर हैं। यदि वे राम विलास पासवान की एलजेपी से ज्यादा वोट प्रतिशत हासिल करने में कामयाब रहे तो बाद में जरूर बीजेपी के सामने अपनी बात दमदारी से रख सकते हैं। लेकिन यदि उनका प्रदर्शन कमजोर रहता है तो निश्चित तौर पर हम की बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण पार्टी बनकर उभरने की उम्मीदें ध्वस्त हो जाएंगी।

जमीनी तौर पर यह भी एक विडंबना ही है कि एलजेपी 40 सीटों पर लड़ रही है। कांग्रेस के बराबर, जो एक राष्ट्रीय पार्टी होने के साथ ही बिहार की सत्ता पर लंबे अरसे तक काबिज भी रही है। लेकिन अब उसकी हैसियत तीसरे दर्जे की सहयोगी पार्टी से ज्यादा की नहीं है।

सीटों के बंटवारे के समझौते से भाजपा का अपने बूते सामान्य बहुमत हासिल करने का भरोसा भी मजबूत हुआ है। ऐसे में सहयोगी दलों के साथ मिलकर बीजेपी दोतिहाई के आंकड़े तक भी पहुंच सकती है।

एक तथ्य यह भी है कि बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघों में क्लीन स्वीप किया है। इसने भी काफी हद तक दिल्ली विधानसभा चुनावों में धूल चाटने वाली पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का आत्मविश्वास बढ़ाया होगा। सीटों के औपचारिक बंटवारे से बीजेपी और सहयोगी दलों के सत्ता में आने पर सुशील मोदी के अगला मुख्यमंत्री बनने के अवसर भी बढ़ गए हैं।

इस नेता पर रहेगी नजरः संजय सराओगी, बीजेपी (जन्म 28 अगस्त 1969)

संजय सराओगी का जन्म दरभंगा के एक मध्यवर्गीय व्यापारी के घर हुआ था। उन्होंने दरभंगा के ही राज हाई स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी की। फिर एलएनएमयू से एमबीए किया। कॉलेज के दिनों से ही उनकी रुचि राजनीति में थी। इसी दौरान उन्होंने एबीवीपी की सदस्यता ली। जहां एक नेता के तौर पर अपना कौशल विकसित किया। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम शुरू किया। सबसे पहले दरभंगा में पार्षद चुने गए। फरवरी 2005 में वे दरभंगा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। बड़े अंतर से चुनाव जीता। फिर नवंबर 2005 और 2010 में भी चुने गए। उन्होंने आरजेडी के सुल्तान अहमद को 27,554 वोट से हराया था। वे दरभंगा में आज बीजेपी का चेहरा हैं।

चर्चा में विधानसभा क्षेत्रः मोतिहारी

मोतिहारी पूर्वी चंपारन जिले का मुख्यालय है। पटना से पूर्वोत्तर में 165 किलोमीटर और भारतनेपाल सीमा के पास रक्सौल से 55 किलोमीटर दूर स्थित है। इस शहर का अपना ऐतिहासिक महत्व है। महात्मा गांधी ने जब नील को लेकर आंदोलन छेड़ा था, तब यह उस आंदोलन का केंद्र था। मोतिहारी कई प्रसिद्ध व्यक्तित्वों का घर भी रहा है। इनमें अंग्रेज लेखक जॉर्ज ऑरवेल और प्रसिद्ध हिंदी कवि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रमेश चंद्र झा भी शामिल हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक, मोतिहारी की आबादी 1,25,183 है। इनमें 67,438 पुरुष और 57,745 महिलाएं हैं। यहां की औसत साक्षरता 87.20% है।

2010 विधानसभा चुनाव परिणाम

  • 2010 विधानसभा क्षेत्र विजेताः प्रमोद कुमार, बीजेपी

  • जीत का अंतरः 24,530

  • कुल वोटों का प्रतिशतः 20.09%

  • निकटतम प्रतिद्वंद्वीः राजेश गुप्ता उर्फ बबलू, आरजेडी

  • पुरुष उम्मीदवारः 19; महिला उम्मीदवारः 0

  • कुल पुरुष मतदाताः 67,004

  • कुल महिला मतदाताः 55,093

  • कुल वोट पड़ेः 1,22,099

  • मतदान प्रतिशतः 55.74%

  • कुल मतदान केंद्रः 222