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भारत में कालाधन

May 15, 2017


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कालाधन क्या है?

एक धारणा है कि काला धन बुरा धन है; देश और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बुरा है। यह ठोस तथ्य नही है सब से पहले हमें काले धन के अर्थ को समझना होगा। काला धन, अर्जित किया गया वह धन है, जिस पर सरकार को किसी भी प्रकार का आयकर नहीं दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, कालाधन वह धन है जो माल या सेवाओं को प्रदान करने के बदले में भुगतान किया जाता है। समस्या यह है कि काले धन के लिए प्रदान की गई वस्तुऐं या सेवाएं खास तौर पर मान्य नहीं हैं और इसलिए इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है।

आइये हम रिश्वत लेन-देन की पुरानी प्रथा पर ध्यान दें। भारत में, रिश्वत लेन-देन की प्रथा एक बुराई के रूप में देखी जाती है, साथ में ही लोग अवैध रूप से अपना काम करवाने के लिए स्वयं उस में भाग लेते हैं। इस अवैध धन के लिये जनता ही सबसे बड़ा मूल कारण है। इसका सभी प्रकार के व्यवसायों में पालन किया जाता है, चाहे वह छोटा एक मात्र मालिक, एक छोटा या मध्यम वर्ग का मालिक या एक स्थापित कंपनी का मालिक हो, सभी को अपना काम जल्दी करवाने के लिए पैसे देना आसान लगता है।

कौन है इस काले धन का लेने वाला? काला धन लेने वालों में राजनेता,सभी स्तरों पर नौकरशाह,पुलिस और लगभग सभी सरकारी विभाग शामिल हैं।जिसमें निजी क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता है। भारत की शासन व्यवस्था और व्यवसाय में भ्रष्टाचार भरा हुआ है।

एक बार रिश्वत मिल जाने के बाद, प्राप्तकर्ता इस आय का खुलासा नहीं करता क्योंकि यह अवैध धन है लेकिन यह अभी भी एक आय है और अब यह पैसा विभिन्न माध्यमों के जरिये अर्थव्यवस्था में प्रसारित होता है और आगे की आय में भी वृद्धि करता है। समस्या यह है कि सरकार इस धन चक्र से बाहर रह गई है क्योंकि यह किसी भी आय से नहीं कमाती है, लेकिन अर्थव्यवस्था के लाभ के जरिये इस पैसे का चक्र अब भी जारी है, और धन कमाया जा रहा है क्योंकि इसका हाथों-हाथ लेन-देन होता है।

ऐसे क्षेत्र जो काले धन को अवशोषित और पुनरावृत्ति करते हैं

गैर कानूनी रूप से कमाया गया धन कहीं न कहीं जमा होना चाहिए। इस अवैध धन का एक बड़ा हिस्सा उन क्षेत्रों में निवेश किया जाता है, जिनमें ये क्षेत्र शामिल हैं:

  • भवन और निर्माण उद्योग
  • रत्न और आभूषण उद्योग
  • फिल्म और मनोरंजन उद्योग

चुनाव लड़ने के लिए, सभी राजनीतिक दलों के लिए और उन के चुनाव अभियान को निधि देने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है। दिल्ली के सेंटर फॉर मीडियास्टडीज के मुताबिक, लोकसभा और विधान सभा चुनावों के लिए, इस साल के चुनाव अभियान में लगभग 4.9 अरब डॉलर (लगभग 30,000 करोड़ रुपये) खर्च किए गए थे। इसका मतलब यह है कि ये चुनाव अमेरिका के 2012 के चुनाव अभियान में 6 अरब डॉलर के बाद लोकसभा और विधान के सबसे महंगे चुनाव थे।

पार्टी कार्यकर्ताओं को नकदी, शराब और यहां तक ​​कि नशीली दवाओं को उपलब्ध करवाने के लिये राजनीतिक दलों को बड़ी मात्रा में नकदी की जरूरत होती है (जैसा कि पंजाब में हाल ही में देखा गया है), क्योंकि चुनाव परिणामों को प्रभावित करने और लागू करने के लिए मानवीय शक्ति की आवश्यकता होती है।

सवाल यह है, कि यह पैसा किस ने दिया और बदले में उन्हें क्या मिलता है?

वर्ष 2011 में, देवेश कपूर और मिलन वैष्णव द्वारा किए गए, वैश्विक विकास केंद्र के लिए प्रकाशित, एक शोध अध्ययन ने यह निष्कर्ष निकाला कि चुनाव और सीमेंट की कीमत के मध्य एक चक्रीय सह संबंध था। चुनावों के लिए, बिल्डर नकदी का कुछ भाग राजनीतिक दलों को उपलब्ध करवाते हैं जिससे उसकी परियोजनाओं में निवेश के लिए कोई पैसा नहीं बचता है। इसके बदले में चुनावों के समय सीमेंट की मांग कम हो जाती है।

हालांकि, चुनाव के बाद, राजनेताओं द्वारा विभिन्न परियोजनाओं को बिल्डरों के पक्ष में दे दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप निर्माण गतिविधि में तेजी आ जाती जिसके परिणामस्वरूप सीमेंट की मांग में वृद्धि होती है। यह सिर्फ एक उदाहरण है जो चुनाव के दौरान और बाद में पैसा प्रवाह चक्र दिखाता है।

साथ ही ऐसा अन्य क्षेत्रों में भी होता है, लेकिन ये कुछ सबसे बड़े अनुभाग हैं जहां अत्यधिक धन वितरित होता है। बिल्डर क्षेत्र राजनीतिक दलों और व्यक्तिगत राजनेताओं को भी यह धन देते हैं, जिनके आधार पर ‘जैसा और कब’ करके नकदी की बड़ी रकम प्राप्त की जाती है। बदले में, वे पर्याप्त लाभ के लिए राजनेताओं और सरकार के उच्च अधिकारियों से समर्थन प्राप्त करते हैं, और काले धन का चक्रजारी रहता है।

यहां दो प्रमुख मुद्दे हैं:

  1. रिश्वत प्राप्त करने का अवैध कार्य
  2. आयकर अधिकारियों के लिए आय का खुलासा न करना

एक धारणा है कि लोग टैक्सों का भुगतान नहीं करते हैं क्योंकि कराधान स्तर अधिक है। यह पूरी तरह सच भी नहीं हो सकता है।

काले धन को अर्जित करने वाली तीन प्रमुख श्रेणियां हैं:

  1. रिश्वत प्राप्त करऩे वाला।
  2. सेवा प्रदाता जो नाजायज सेवाएं प्रदान करते हैं और इसलिए उनके आय के स्रोत का खुलासा नहीं कर सकते हैं।
  3. सेवा प्रदाताओं जैसे वकील, डॉक्टर, सलाहकार जो वैध सेवाएं प्रदान करते हैं लेकिन आय के स्रोत का खुलासा नहीं करते हैं।

आयकर अधिनियम न केवल उसकी आय का खुलासा करने के लिए एक टैक्स निर्धारिती को मजबूर करता है बल्कि यह उसकी आय का ‘साधन’ भी है। ऊपर की अंतिम दो श्रेणियों के लिए, आय के साधन की घोषणा आयकर का भुगतान न करने का मुख्य कारण है। यह टैक्स की दर नहीं है जो उन्हें आय का साधन दिखा देने पर वापस रख लेने की घोषणा करती है।

काले धन का समाधान

सरकार को दो मुद्दों को अलग करना होगा एक रिश्वत प्राप्त करने वाले पर नजर रखना ​​और पकड़े जाने पर मुकदमा चलाया जाये और दूसरा आयकर को एकत्र करना। आयकर विभाग आज इन दोनों गतिविधियों के साथ मिली हुयी है और इसलिए सरकार को आयकर विभाग से जांच को अलग करना चाहिए। जांच और अभियोजन पक्ष को अन्य शाखाओं जैसे पुलिस व अन्य कानून प्रवर्तन शाखाओं पर छोड़ देना चाहिए, जबकि आयकर विभाग को केवल संग्रह पर ही ध्यान देना चाहिए।

अगर सरकार कानून में संशोधन कर सकती है जिसमें एक निर्धारिती अपनी आय का स्रोत प्रकट नहीं करता है लेकिन अर्जित की गयी आय पर टैक्स का भुगतान करता है, तो सरकार द्वारा कर संग्रह काफी बढ़ेगा और सरकार द्वारा एकत्र किए गए अन्य निधियों को फिर से निवेश किया जा सकता है बुनियादी ढांचे में और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के वित्त पोषण आदि के लिए यह उपाय सुनिश्चित करेगा कि ऊपर दिए गए (2) और (3) टैक्स नेट के तहत आते हैं और लोग करों का भुगतान करते हैं। उपरोक्त (1) के तहत सरकार को कानून प्रवर्तन प्राधिकरणों द्वारा संबोधित करना होगा।

भारत की राजकोषीय घाटे की स्थिति को देखते हुए, नई सरकार के लिए अनिवार्य है कि टैक्स रिकॉर्ड्स शुरू करने के लिए लोगों को न केवल टैक्स नेट के तहत आने के लिए प्रोत्साहित किया जाए बल्कि अर्जित आय पर टैक्सों का भुगतान भी किया जाए। इसके अलावा, आर्थिक और राजनयिक दबाव द्वारा समर्थित अंतर-सरकारी वार्ता के जरिए सरकार को विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। भारत को उन देशों पर दबाव डालना होगा जो टैक्स चोरी को अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस संबंध में रास्ता दिखाया है और नई सरकार को इस संबंध में बात करनी चाहिए।