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भारत में पुल हादसे

August 13, 2016


भारत की सड़कों पर नई त्रासदी

भारत की सड़कों पर नई त्रासदी

तीन अगस्त, 2016 को पश्चिम महाराष्ट्र के महाड़ इलाके में उफनती सावित्री नदी पर बना पुल बह गया। दो बसों और कई कारों के डूबने से 14 लोगों की मौत हो गई, जबकि 18 का कोई अता-पता नहीं है। यह हादसा इस बात को याद दिलाता है कि भारत में सड़कों और पुलों की हालत निंदनीय है। उन्हें पूरी तरह मेकओवर की जरूरत है। पुल गिरने और सड़कों की दयनीय हालत की वजह से होने वाले हादसों में मौत होना अब नियमित हो चला है।

खराब सड़कों और पुलों की वजह से हो रहे हादसे

1- 2001 में सबसे भयावह ट्रेन हादसा हुआ था। केरल में कड़ालुंडी नदी को पार करते वक्त ट्रेन पटरी से उतर गई थी, जिससे 57 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 300 से ज्यादा घायल हुए थे।
2- 2005 में, वलीगोंडा में एक छोटा पुल अचानक आई बाढ़ में बह गया था। पुल पर से ट्रेन के गिरने से 114 लोगों की मौत हुई थी जबकि 200 घायल हुए थे।
3- 2006 में 150 साल पुराने पुल के गिरने की वजह से हावड़ा-जमालपुर सुपरफास्ट ट्रेन में सवार 30 लोगों की मौत हुई थी।
4- 2009 में एक निर्माणाधीन पुल गिरने से राजस्थान में 28 मजदूरों की मौत हुई थी।
5- हाल ही में, कोलकाता में मार्च 2016 में निर्माणाधीन विवेकानंद फ्लाईओवर गिरने से 27 लोगों की मौत हुई थी।

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, हर चार मिनट में सड़क दुर्घटना की वजह से एक मौत होती है। शराब पीकर गाड़ी चलाना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। लेकिन खराब सड़कों की वजह से होने वाले हादसे भी ज्यादा हैं।

हर दिन भारत में 1214 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, 2013 में सड़क दुर्घटनाओं में 1,37,000 लोगों की मौत हुई थी।

कनेक्टिविटी का मुद्दा- सड़क और पुल

भारत को आज चीन के बाद सबसे तेज गति से बढ़ते देश के तौर पर लिया जाता है। टेक्नोलॉजी, शिक्षा और औद्योगिकीकरण जैसे क्षेत्रों में तरक्की के बदौलत भारत इस कदर आगे बढ़ा है। किसी भी देश की आर्थिक तरक्की का सीधा संबंध सड़क और उस पर बने पुलों के नेटवर्क से होता है। इसमें देशभर के कई नदियों के किनारों को जोड़ने वाले पुलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। सड़क नेटवर्क के मामले में अमेरिका के बाद भारत का ही नंबर आता है। हालांकि, भारत में सड़क नेटवर्क के सामने निम्न चुनौतियां हैं-

भारत में 20 लाख किलोमीटर लंबा सड़क नेटवर्क है। इसमें 53 राष्ट्रीय राजमार्ग शामिल हैं, जिन पर कुल ट्रैफिक का 40 प्रतिशत ट्रैफिक होता है।

हालांकि, ज्यादातर सड़कों की हालत दयनीय है।

1- 20 लाख किलोमीटर में से करीब 9,60,000 किमी सड़कों की हालत बहुत ही खराब है। 25 प्रतिशत गांवों तक पहुंच मार्ग है ही नहीं।
2- 1980 के बाद से 30 साल में इस मद में भारी-भरकम पैसा खर्च किया गया, लेकिन स्थिति में सुधार आने की संभावना अब भी नजर नहीं आती।

सड़कों के चौड़ीकरण और महत्वपूर्ण पुलों के निर्माण की योजनाएं तो खूब बनी, लेकिन कई अभी भी क्रियान्वित नहीं हो सकी। महत्वपूर्ण राजमार्गों से जोड़ने वाले मार्गों पर भी काम चल रहा है।
हालांकि, बड़ी आबादी और सड़कों पर भारी-भरकम ट्रैफिक की मौजूदगी की वजह से इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में अड़चन पैदा होती है।
ज्यादातर पुलों की हालत बहुत ही खराब है। ज्यादातर पुल बहुत पुराने हैं और उन्हें तत्काल सुधार और मरम्मत की जरूरत है।

1- नए पुलों को भारी-भरकम ट्रैफिक का वजन सहने लायक बनाने की जरूरत है।
2- नई सड़कों को क्वालिटी और जियोमेट्रिक्स के लिहाज से उच्च कोटि का बनाना होगा।

निष्कर्ष

भारत में सड़कों और पुलों की खराब स्थिति की एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार है। जिस सामग्री का इस्तेमाल होता है वह बहुत ही घटिया होती है। इस वजह से हर साल मानसून के बाद इन इलाकों में सड़क बनाने की जरूरत पड़ती है। जब कोई इन पुलों की नींव के बारे में सोचता है तो कंपकंपी छूट जाती है क्योंकि यह वैसे तो दिखाई नहीं पड़ती। घटिया क्वालिटी की निर्माण सामग्री के साथ ही इन सड़कों और पुलों को बनाने के लिए कंपनियां जितना टाइम लेती हैं, वह बहुत ज्यादा होता है। अक्सर निर्धारित समय से भी एक-दो साल बाद ही प्रोजेक्ट पूरे होते हैं। सरकार को इन समस्याओं को गंभीरता से लेकर तत्काल हल निकालने पर काम करना चाहिए। इस समय राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग और छोटी सड़कों का प्रशासन अलग-अलग हाथ में है। यदि यह जिम्मेदारी किसी एक केंद्रीय प्राधिकारी को सौंप दी जाए तो सड़कों और पुलों के निर्माण के काम में तेजी आ सकेगी। साथ ही पुरानी सड़कों और पुलों की मरम्मत का काम भी दुरूस्त हो सकेगा। क्वालिटी तो सुधरेगी ही क्योंकि उस स्थिति में एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का मौका नहीं मिलेगा।