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भारत में उप-चुनाव: अवलोकन करने योग्य एक प्रसंग

May 11, 2017


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यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत के अधिकतर उप-चुनावों में किसी विशेष प्रकार का ध्यान नही दिया जाता है या उन्हें सामान्य चुनावों की खूबियों से दूर रखा जाता है। उप-चुनावों से संबंधित जानकारियों और घटनाओं को एक सीमित क्षेत्र में प्रसारित किया जाता है और केवल एक विशेष क्षेत्र में ही इन चुनावों की कार्यवाही में रुचि ली जाती है। आपको यह महसूस करना चाहिए कि मैं उप-चुनाव की प्रवृत्तियों को नजर अंदाज करने वालों को निर्देशित कर रहा हूँ। लेकिन ईमानदारी से, मैं जो प्रयास कर कहा हूँ, वह चुनावों के इस स्वरूप के प्रति कुछ कम उदासीन हैं। उप-चुनाव हमें व्यापक राजनीतिक व्यवस्था के बारे में बताते हैं।

भारत में चुनाव और उप-चुनाव क्यों आयोजित किए जाते हैं?

मुझे आप एक छोटा सा विचार पेश करने की आज्ञा दें, कि किस प्रकार उप-चुनाव आयोजित किए जाते हैं। बस आपको याद दिलाने के लिए, कि उप-चुनाव एक खाली राजनैतिक पद को भरने के उद्देश्य से आयोजित किये जाते हैं। विधानसभा सदस्य अक्सर अपने पद को अलग-अलग कारणों से छोड़ देते हैं, खासकर जब वह अयोग्य हो जातें है। यह व्यक्ति की अकास्मिक मृत्यु या एक आपराधिक कारण हो सकता है, जो उसे कार्यालय में काम करने के अयोग्य बना देता है।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहाँ राजनीतिक विचार लोगों पर ही आधारित हैं इनमें अनिश्चितता पाई जाती है, स्थिरता को बहाल करने के लिए उप-चुनाव एक बड़ी आवश्यकता है। आपको उन उदाहरणों को याद करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी जिन मामलों में उप-चुनावों को मतदान की अनियमितताओं और ऐसे ही असंख्य अन्य कारणों से कराया जाता है। उप-चुनाव नियमित रूप से निर्धारित चुनावों के बीच में होते हैं और लोगों को अपनी स्थिति को सुधारने का मौका देते हैं। यदि किसी राज्य ने पहले चरण में एक अयोग्य सरकार के द्वारा कष्ट उठाया है, तो वह आगे एक बेहतर सरकार चुनकर अपनी समृद्धि को वापस प्राप्त कर सकता है।

भारत में उप-चुनाव आम चुनाव की तरह हो गये हैं, आंशिक रूप से लोगों के प्रतिनिधित्व के तहत कानून के प्रावधान के दुरुपयोग की वजह से एक उम्मीदवार को दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति मिलती है। दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से जीतने पर उम्मीदवार को एक सीट छोड़नी होती है। यह खाली सीटों में से एक सीट पर उप-चुनाव कराता है। मुलायम सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे प्रमुख राजनेता आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।

निष्ठा और पार्टी बदलने जैसे व्यक्तिगत फैसलों के बाद भारत में कई उप-चुनाव देखे गये हैं। हाल ही में गुजरात में एक ऐसा ही मामला सामने आया जहाँ कांग्रेस विधायकों द्वारा पार्टी बदल कर बीजेपी में शामिल हो जाने पर सात सीटें खाली हो गईं थी। 30 अप्रैल को इन सात विधानसभा सीटों के लिए उप-चुनाव आयोजित किये गये।

अगर हम 2011 में वापस जाते हैं, तो हमें उप-चुनावों का एक और बढ़िया उदाहरण देखने को मिलता है। तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में तीन दशकों से अधिक समय के वाम वर्चस्व समाप्त होने के बाद सत्ता में आई थी। उस समय, ममता बनर्जी लोकसभा में एक सांसद थीं। जहाँ मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए विधानमंडल सदस्य बनना अनिवार्य था। बंगाल के एक विधायक ने उस निर्वाचन क्षेत्र से बनर्जी के चुनाव लड़ने के लिए अपना नाम वापस ले लिया था। जिसके परिणामस्वरूप एक उप-चुनाव हुआ। इसके साथ ही, लोकसभा के सदस्य के रूप में उनको अपना पद छोड़ना पड़ा और कोलकाता (दक्षिण) संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रिक्त हो गया, और इस रिक्त पद पर फिर से एक उप-चुनाव किया गया।

भारत में चुनाव के इस प्रारूप में आश्चर्य की बात है और राजनीतिक परिदृश्य में बहुत सारे बदलाव हैं। यह मामला निश्चित रूप से एक आकर्षक अध्ययन करने योग्य है।