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पर्यावरण के अनुकूल गणेश मूर्तियों के साथ गणेश चतुर्थी का जश्न मनाएं

August 24, 2017


GANESH CHATURTHI

इन दिनों, आम लोगों के बीच में पर्यावरण बचाने के प्रति जागरूकता का स्तर बढ़ रहा है, जिसकी एक वजह यह है कि आने वाले गणेश चतुर्थी के उत्सव के लिए अधिक से अधिक लोग गणेश जी की मिट्टी की मूर्तियों को पूछ रहे हैं। वास्तव में, ऐसे लोगों की संख्या आराम से उन लोगों की तुलना में अधिक है, जिन्होनें अभी तक गणेश चतुर्थी जैसे उत्सव में भाग लेने में कोई प्राथमिकता नहीं दिखाई है। वास्तव में, विभिन्न सरकारी अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा व्यापक रूप से गणेश की मूर्तियों को बनाने में, एक कच्चे माल के रूप में मिट्टी के इस्तेमाल करने को बढ़ावा दिया जा रहा है। बिल्कुल गणेश जी की तरह ही, गणेश की मूर्तियाँ बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक रंगों और प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का उपयोग किया जाता रहा है, जो पर्यावरण को दूषित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

पारिस्थितिकी के अनुकूल होना

मुख्य महत्व अब पारिस्थितिकी के अनुकूल होने पर है और यह ऐसा तब होगा, जब हम मूर्तियों को बनाने के लिए खतरनाक सामग्रियों का उपयोग करना बंद करके, मिट्टी से बनी मूर्तियों की प्राथमिकता पर जोर देगें। वास्तव में, स्कूलों में भी छात्रों को हमारे पर्यावरण सुरक्षा के संबंध में, मिट्टी की मूर्तियों के महत्व के बारे में सिखाया जा रहा है। ऐसे साहसी और सम्मलित कार्य करने वाले लोगों के प्रयासों के परिणामस्वरूप, जो लोग गणेश जी की मूर्तियों को बनाने के लिए रासायनिक रंगों और पीओपी का इस्तेमाल करते थे, अब वे लोग भी मिट्टी का उपयोग करके मिट्टी की मूर्तिओं को बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वे इन उद्देश्यों (मूर्तिओं को रंगने हेतु) के लिए प्राकृतिक रंगों का भी प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह की बनी मूर्तियों की माँग में बढ़ोत्तरी हो रही है और उम्मीद की जाती है कि ये लोग बहुत अच्छी तरह से ऐसी महान प्रथाओं को संभालने में सक्षम होगें।

विभिन्न संस्थाओं द्वारा उठाए जा रहे कदम

गणेश चतुर्थी के केवल कुछ ही दिन शेष रहने के कारण, नेताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अपने जिम्मेदारी निभाने के लिए बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है, ताकि लोगों को पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली मूर्तिओं को लेने की बजाय, पर्यावरण के अनुकूल वाली मूर्तियों को लेने के महत्व को समझा सके। कुछ दिन पहले, संसदीय मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अनंतकुमार ने, लोगों से पर्यावरण के अनुकूल गणेश जी की मूर्तियों को लेने की गुजारिश की थी। बेंगलुरु के संसद सदस्य (एमपी) ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर यह अनुरोध किया है।

उन्होंने गैर सरकारी संगठन द्वारा प्रकाशित एक लेख को भी साझा किया है, जिसमें उन्होंने यह भी बताया कि गणेश जी प्रकृति के देवता और कैसे विभिन्न प्राकृतिक बलों के प्रतिनिधि (मुखिया) है। यह शायद कहने का एक परोक्ष तरीका है कि लोकप्रिय देवता गणेश जी कृत्रिम और हानिकारक पदार्थों का उपयोग करके बनाई गई मूर्तियों से बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं होगें। उनके ट्विट को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अनंतकुमार ने ट्विटरटी द्वारा उत्साहपूर्ण ढंग से प्राप्त किया था। वास्तव में, उन्होंने इस पहल के लिए उनकी प्रशंसा भी की। हालांकि, यह पहली बार नहीं हुआ है कि एक मंत्री ने ऐसा प्रयास किया है। वर्ष 2016 में नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में, पर्यावरण के अनुकूल मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग करने के लिए लोगों से समान रूप से अनुरोध किया था।

इस वर्ष बेंगलुरू का विशेष स्थान

भारत का मुंबई शहर- गणेश चतुर्थी उत्सव के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन इस वर्ष 2017 में बेंगलुरु का भी विशेष संदर्भ में एक विशेष स्थान पर कब्जा होगा। बेंगलुरू में गणेश जी को हब्बा के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में, गणेश चतुर्थी उत्सव एक अत्यंत पर्यावरण-अनुकूल तरीके से मनाया जाएगा। त्यौहार में सामूहिक रूप से बड़ी और रंगीन मूर्तियों की सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत, लोग इस समय छोटी मिट्टी की मूर्तियों को खरीदने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। इस तरह से शहर में इस त्यौहार के उत्सव को भिन्नता के साथ मनाए जाने की आशा है और इस प्रकार शहर में एक नए अध्याय का शुभारंभ हो सकता है।

कैसे पीओपी और रासायनिक रंगों से बनाई गई मूर्तियाँ पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं और इस संबंध में प्राकृतिक सामग्रियों से बनाई गई मूर्तियाँ क्या भूमिका निभा सकती हैं?

पीओपी और रासायनिक रंगों का उपयोग करके बनाई गई मूर्तियों द्वारा उठाए गए प्रमुख खतरों में से एक यह है कि यह मूर्तियाँ जिस जल निकाय में विसर्जित की जाती है, उस जल निकाय को भारी मात्रा में दूषित कर देती हैं। वास्तव में, पीओपी से बनाई गई मूर्तियों को कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में भी जाना जाता है। असल में, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पीओपी से बनाई गई मूर्तियाँ, जिस प्रकार से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं, उसकी भरपाई करना संभव नहीं है।

प्राकृतिक सामग्री वाली वह मूर्तियाँ होती है, जिन्हे मिट्टी और फूलों और पत्तियों जैसे अन्य प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करके बनाया जाता है और इनमें आप प्राकृतिक रंगों का भी प्रयोग कर सकते हैं और आप पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अपनी प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। ये मूर्तियाँ प्राकृतिक अवयव का ही रूप होती हैं और इसलिए विर्सजित करने के पश्चात ये मूर्तियाँ आस-पास के वातावरण में आसानी से समयोजित या दफन हो जाती हैं। झीलों या अन्य जल निकायों में विसर्जित की जाने वाली मिट्टी की मूर्तियाँ, झीलों या अन्य जल निकायों को संरक्षण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती हैं। त्यौहार पूर्ण होने के बाद आप उसी मिट्टी में पौधों को भी उगा सकते हैं। इसमें पुन: इस्तेमाल करने के योग्य और नवीकरणीय प्रकृति मौजूद होती है, जिसके कारण देश भर के खासकर वे लोग, जो पर्यावरण के हितैषी हैं, वे इसे लोकप्रियता के साथ अपना रहे हैं। बेंगलुरु के लोग भी बीज और पौधों की पत्तियों से तैयार मूर्तियों की तलाश में हैं, ताकि त्यौहार खत्म होने के बाद इन मूर्तियों को अपने उद्यान में स्थापित कर सकें।