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बाल तस्करी: भारत के लिए शर्म की बात

May 20, 2017


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20 जून, 2014 को अमेरिका के राष्ट्रीय सचिव जॉन केरी ने, तस्करी रिपोर्ट्स (टीआईपी) जारी करने के बारे में अपना उद्घाटन भाषण दिया। अपने भाषण के माध्यम से, उन्होंने दुनिया भर में हो रही इस मानव त्रासदी से निपटने और उससे लड़ने के लिए अमेरिकी सरकार की गंभीरता और संकल्प को फिर से दोहराया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब वे अन्य मुद्दों के लिए उनके साथ जुड़ेंगे, तब अमेरिकी सरकार इस मुद्दे को सभी देशों के साथ उठाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में शोषण के विभिन्न रूपों में दो लाख से अधिक व्यक्ति तस्करी कर रहे हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष मानव तस्करी से उत्पन्न वैश्विक व्यापार का क्षेत्र लगभग 15.5 अरब डालर के करीब है।

टीआईपी ने प्रत्येक देश द्वारा अभियोजन, सुरक्षा और निवारक उपायों के आधार पर प्रत्येक देश का वर्गीकरण टियर-1, टियर-2, टियर-2 और टियर-3 को मुख्य सूची की श्रेणी में दर्शाया गया है, यहाँ टियर-3 की श्रेणी सबसे कम दर्शायी जा रही है, जिसमें दंडात्मक कार्रवाई की माँग की गई है। रिपोर्ट गंभीर रूप से थाईलैंड, मलेशिया, वेनेजुएला और गाम्बिया को इंगित करती है और इन्हें सब से कम “टियर-3की श्रेणी में पहुँचा देती है जो उन्हें कम या अधिक निष्क्रिय राज्यों में शामिल करती है, निष्क्रिय प्रशासन – अंतर्राष्ट्रीय कानून के संबंध में बहुत कम हैं।

पहले से ही इस सूची में सीरिया और मध्य अफ्रीकी गणराज्य जैसे देश शामिल हैं, उत्तर कोरिया, यमन, मॉरिटानिया और जिम्बाब्वे भी इसमें शामिल हैं। अमेरिका और अन्य विकसित देशों में “डाउन ग्रेड” की स्थिति निश्चित रूप से प्रतिबंधों को आकर्षित करने जा रही है और अब यह देखा जाना चाहिए कि यह देश कैसे इस कार्यवाही का निर्वाहन करते हैं जिन पर इन्हें पहले से ही कार्यवाही कर लेनी चाहिए थी।

चार देश डाउनग्रेड होकर टियर-3 श्रेणी में आ गए है जिसमें अफगानिस्तान, मालदीव, बारबाडोस और चाड़ शामिल है।

ऐसे देश जिन्होंने बच्चों और महिलाओं की तस्करी में संलिप्त लोगों की रोकथाम करने, दबाव डालने और दंडित करने वाले प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव श्रीलंका, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं। यह देश यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम के पूरक हैं।

बाल तस्करी के तथ्य

2014 टीआईपी में परिभाषित मानव तस्करी:

  • “सेक्स का अवैध व्यापार” जिसमें एक व्यापारिक यौन क्रिया को, धोखाधड़ी या बलात्कार द्वारा प्रेरित किया जाता है या ऐसा कार्य करने के लिए, ऐसे व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है जिसकी आयु 18 वर्ष न हो पाई हो;
  • “अनैच्छिक गुलामी, चपरासी, कर्ज बंधन या दासता के अधीन करने के उद्देश्य से बल, धोखाधड़ी या बलात्कार के माध्यम से श्रम या सेवाओं के लिए किसी व्यक्ति की भर्ती करना, शरण देना, किसी शर्त पर रखना, परिवहन या प्राप्त करना”

(टीआईपी रिपोर्ट का संदर्भ)

अपराधों की इन परिभाषाओं के अन्तर्गत आने के लिए किसी पीड़ित को शारीरिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने की जरूरत नहीं है।

2002 डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के मुताबिक 150 मिलियन लड़कियाँ और 73 मिलियन लड़के विभिन्न प्रकार के यौन उत्पीड़न का शिकार हुए थे। कई बच्चे और उनके परिवार सामाजिक कलंक और सामाजिक रूप से बहिष्कृत होने के डर के कारण इस घटना की रिपोर्ट नही दे पाये वरना ये संख्या बहुत अधिक हो सकती है।

Childinfo.org के मुताबिक, जून 2011 में यूनिसेफ के अध्ययन में 2000-2009 में किए गए सर्वेक्षणों के आधार पर यह बताया गया है कि दक्षिण एशिया में 12% बच्चे 5 से 14 साल के बीच बाल मजदूरी कर रहे थे। भारत में 15-19 साल के बीच की आयु वर्ग की लड़कियों का यौन शोषण 5% तक दर्ज किया गया था।

दक्षिण और मध्य एशिया में खराब रिकॉर्ड

2014 टीआईपी रिपोर्ट में सभी देशों द्वारा इस क्षेत्र में अभियोजनों के खराब रिकॉर्ड बताए गए हैं। 2013 में केवल 7,124 पीड़ितों की पहचान हुई थी। 1,904 मुकदमा चलाए गए और 974 वास्तव में दोषी ठहराए गए। यह इस तथ्य की पृष्ठभूमि में है कि कई गैर सरकारी संगठनों के अनुमानों के मुताबिक 12,000-50,000 से ज्यादा महिलाओं और बच्चों का हर साल भारत में अवैध व्यापार किया जाता है। 300,000 से अधिक बच्चे भिखारियों में शामिल हैं। विभिन्न उद्योगों में मजदूरी कराने के लिए बहुत बड़ी संख्या में बच्चों को शामिल किया गया है। अभियोजनों की खराब दर से पता चलता है कि इस क्षेत्र में सरकारों को बहुत अधिक कार्य करना होगा और भारत को इस बड़ी सामाजिक समस्या से लड़ने के लिए सभी हित धारकों को शामिल करके एक अग्रणी भूमिका निभानी होगी।

भारत में मानव तस्करी के आंकड़े

भारत अपने आप में भाग्यशाली माना जाना चाहिए क्योंकि टियर -3 देशों की सूची में भारत का उल्लेख नहीं किया गया है, इस तथ्य के साथ कि महिलाओं और बच्चों की तस्करी का प्रमुख बिंदु भारत ही है। हालांकि, अमेरिकी सरकार की 2014 टीआईपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को टीयर-2 देशों में शामिल किया गया है। समस्या वास्तविक और व्यापक है।

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से मानव शोषण और तस्करी की मौजूदा स्थिति को संदर्भित किया गया है जिसमें भारत में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शामिल किया गया है। तस्करी का व्यापार 90% से अधिक सीमाओं के भीतर किया जाता है और 10% विदेशों से होता है। समस्या शोषण के विभिन्न रूपों में फैली हुई है। यौन शोषण के लिए नेपाल और बांग्लादेश से महिलाओं और युवा लड़कियों की तस्करी करके भारत में लाना सबसे आम बात है। ये लड़कियाँ गरीब परिवारों से होती हैं और अक्सर 9-14 साल की उम्र में भारत में लाई जाती है और कई अन्य शहरों के बीच कोलकाता, मुंबई और दिल्ली में वेश्यालय मालिकों को बेच दी जाती हैं। न ही इनका अपहरण किया जाता है और न ही इनकों घर से जबरदस्ती लाया जाता है। बल्कि इनके माता-पिता या घनिष्ठ रिश्तेदारों द्वारा गरीबी के कारण इनकों बेंच दिया जाता है।

कोयला, ईंट भट्टों, हथकरघा, कढ़ाई, चावल मिलों और कृषि जैसे उद्योगों में बंधुआ श्रमिक के रूप में काम करने के लिए कई युवा लड़कों का भारत में अवैध व्यापार किया जाता है। उन्हें जीविकोपार्जन, भोजन के लिये प्रतिदिन 16 घंटे काम करना पड़ता है जिसमें बदले में उन्हें बहुत कम या कोई पैसा नहीं दिया जाता है। इन बच्चों को अक्सर उनके मालिकों द्वारा यौन शोषण किया जाता है और गैर-अनुपालन के मामलों में पीटा या अत्याचार किया जाता है।

बिहार के कई युवा लड़के नेपाल के कारखानों में रोजगार के लिए भटकते रहते हैं, जबकि नेपाल की युवा लड़कियों को भारत में तस्करों को बेचने के लिए रक्सौल और गोरखपुर के मार्ग से लाया जाता है। कोलकाता नेपाल और बांग्लादेश से आने वाली लड़कियों और महिलाओं के लिए एक प्रमुख मार्ग है।

तस्करी का व्यापार, अच्छी तरह से सरकारी अधिकारियों की गहरी भागीदारी, सीमाओं पर और राज्यों के अंदर और कुछ मामलों में राजनेताओं, जिनमें से सभी को इस गतिविधि से लाभान्वित होते हैं, अब एक बड़े उद्योग का रूप ले चुका है। भारत युवा लड़कों के लिए एक पारगमन बिंदु है जो ऊँट की दौड़ के लिये दुबई और अन्य मध्य-पूर्व देशों में भेजे जाते हैं। अक्सर इन युवा लड़कों का यौन शोषण करके बंधुआ मजदूरों के रूप में रखा जाता है। एक अन्य क्षेत्र के रूप में बच्चों को अक्सर सऊदी अरब भेजा जाता है, इन देशों में बच्चों से भीख मँगवाना एक संगठित अरब डॉलर का उद्योग है, खास कर हज के दौरान। भारत मे, भिखारी सिंडिकेट्स अक्सर बच्चों को अपंग कर देते हैं और उन्हें अधिकतम संग्रह प्राप्त करने के लिए सड़कों पर डाल दिया जाता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, हर साल 40,000 से अधिक बच्चे लापता होते हैं, जिनमें से 11,000 से अधिक लापता बच्चों की पहचान नही हो पाती हैं। इस पृष्ठ भूमि में, केरल की हालिया खोज में बाल तस्करी को सरकार द्वारा अधिक ध्यान दिया गया है। विभिन्न राज्यों के बच्चों को ट्रेन से केरल में लाया जा रहा था। स्टेशन पर, उन्हें रोक दिया गया और जो लोग उन्हें ले जा रहे थे, वे स्वीकार्य कारणों से नहीं आ सकते क्योंकि वे केरल में लाए गए थे। सभी अनुरक्षण वयस्कों को गिरफ्तार किया गया था और अब केरल उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को जांच का आदेश दिया है।

सरकार और समाज को अनुशंसित कार्रवाई करने चाहिए

टीआईपी रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि सरकार को किस पर ध्यान देना चाहिए

  • रोकथाम
  • अभियोजन
  • सुरक्षा

सरकार द्वारा कानूनों को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें अधिक सख्त बना दिया जाए और यह सुनिश्चित हो कि गंभीर दंडों को तुरंत लागू किए जा सके। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तस्करी श्रृंखला में शामिल सभी की पहचान, गिरफ्तारी, मुकदमा चलाने के लिए जरूरी और प्रभावी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है। जब तक पूरी कतार अभियोग चलाने वाली एजेंसियों की उत्तेजना को गैर सरकारी संगठनों और सिविल सोसाइटी का सक्रिय समर्थन नहीं प्राप्त होगा, हमारे बच्चों को इस सामाजिक बुराई से खतरा बना रहेगा।

अब कार्रवाई का समय आ गया है।

याद रखें यह आपके बच्चे के साथ भी हो सकता है।