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दादाभाई नौरोजी और उनके धन निकासी के सिद्धांत

June 5, 2017


Dadabhai Naorojiदादाभाई नौरोजी 1850 में एलफिन्स्टन संस्थान में प्रोफेसर और ब्रिटिश सांसद बनने वाले पहले भारतीय थे। वे ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ और ‘भारतीय राष्ट्रवाद के पिता’ के महान व्यक्तित्व से पहचाने जाते थे। वह एक शिक्षक, कपास व्यापारी और सामाजिक नेता थे। वह दादाभाई नौरोजी ही थे जिनका जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई के खड़क में हुआ था।

वह 1892 और 1895 के बीच यूनाइटेड किंगडम हाउस ऑफ कॉमन्स में संसद सदस्य (एमपी) भी बने थे। दादाभाई नौरोजी ने उस समय के दो अन्य प्रसिद्ध राजनेताओं के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दादाभाई नौरोजी ने ए.ओ. ह्यूम और दिनशॉ ईदुलजी वाका के जरिए अंग्रेजों के शासन में भारत से धन निकासी की अवधारणा में बहुत अधिक योगदान दिया था। उन्होंने अपनी पुस्तक लिबर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में इसी अवधारणा का उल्लेख किया है।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दादाभाई नौरोजी ने गणित में अपनी मास्टर्स डिग्री हासिल की और गणित विषय में एक प्रोफेसर के रूप में काम किया। उन्होंने अपने विषय के करियर में कई सम्मान हासिल किए। एलफिन्स्टन इंस्टीट्यूशन से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह ब्रिटेन में स्थापित पहली भारतीय वाणिज्यिक कंपनी में एक हिस्सेदार बन गये। इसलिए वह काम और कंपनी के प्रबंधन के लिए इंग्लैंड गए थे। उन्होंने इंग्लैंड में रहते हुए भारत की दुर्बलता कम करने की बहुत कोशिश की जहाँ ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों पर कठोर अत्याचार किए जा रहे थे। 1866 में उन्होंने इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। ब्रिटेन में भारतीयों की शिकायतों को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच भी बनाया गया था और इसे आगे बढ़ाने के लिए एसोसिएशन की शाखाएं भी भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थापित की गई थीं।

दादाभाई नौरोजी और उनके धन निकासी के सिद्धांत

दादाभाई नौरोजी यह कहने वाले पहले व्यक्ति थे कि आंतरिक कारक भारत में गरीबी के कारण नहीं हैं, लेकिन गरीबी औपनिवेशिक शासन के कारण हुई, जो भारत की संपदा और समृद्धि को कम कर रहे थे। 1867 में दादाभाई नौरोजी ने धन निकासी के सिद्धांत को आगे बढ़ाया था जिसमें उन्होंने कहा कि ब्रिटेन पूरी तरह से भारत से जल रहा है। उन्होंने अपनी पुस्तक लिबर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में इस सिद्धांत का उल्लेख भी किया है। इसके अलावा अपनी पुस्तक में उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में 200-300 मिलियन पाउंड के राजस्व का नुकसान हो सकता है। दादाभाई नौरोजी ब्रिटिशों को भारत में एक बड़ी बुराई के रूप में मानते थे। आर.सी. दत्त ने भी दादाभाई नौरोजी से प्रेरित होकर इसी सिद्धांत को बढ़ावा दिया है। इस पुस्तक में इकनोमिक हिस्ट्री इन इंडिया को एक प्रमुख विषय के रूप में रखा गया है। जो धन बाहर गया वह भारत की ही संपत्ति और अर्थव्यवस्था का हिस्सा था, जो कि भारतीयों को प्रयोग करने लिए उपलब्ध नहीं था।

दादाभाई नौरोजी ने छह कारण बताए हैं जो धन निकासी के सिद्धांत के कारण बने। ये निम्न हैं:

  • भारत में बाहरी नियम और प्रशासन।
  • आर्थिक विकास के लिए आवश्यक धन और श्रम विदेशियों द्वारा लाया गया था। लेकिन तब भारत ने विदेशियों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।
  • भारत द्वारा ब्रिटेन के सभी नागरिकों के प्रशासन और सेना के खर्च का भुगतान किया गया था।
  • भारत अंदर और बाहर दोनों इलाकों के निर्माण का भार खुद उठा रहा था।
  • भारत द्वारा देश के मुक्त व्यापार को खोलने में अधिक फायदा हुआ।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में प्रमुख धन लगाने वाले विदेशी थे। वे भारत से जो भी पैसा कमाते थे। वह भारत में कभी भी कुछ भी खरीदने के लिए निवेश नहीं करते थे। फिर उन्होंने भारत को उस पैसे के साथ छोड़ दिया था।

इतना ही नहीं वे भारत की रेलवे जैसी विभिन्न सेवाओं के माध्यम से ब्रिटेन में भारी रकम पहुँचा रहे थे। दूसरी तरफ भारत में व्यापार और साथ ही श्रम बहुत कम मात्रा में था। इसके साथ ही भारत के उत्पादों को ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय पैसों से खरीद रही थी। जिसका निर्यात ब्रिटेन में कर रहे थे।

दादाभाई नौरोजी को ब्रिटिश और ब्रिटेन दोनों के द्वारा सम्मानित किया गया था । इसी कारण से उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।  उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में एक बार या दो बार नहीं बल्कि तीन बार यानी 1886, 1893 और 1906 में चुना गया था।

दादाभाई नौरोजी भारत में महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष रूप से नि:शुल्क शिक्षा के लिए जोर देते थे। क्योंकि उनकी माँ को उन्हें शिक्षा प्रदान करवाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। वह नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने और इसे स्वतंत्र बनाने के लिए बहुत उत्सुक थे। वह भारत में महिलाओं की स्थिति में भी काफी सुधार करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ज्ञानप्रसारक मंडल, बॉम्बे में एकमात्र लड़कियों के उच्च विद्यालय (वर्तमान दिन में मुंबई) की नींव रखी।

राजनीति क्षेत्र में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान था। वह बॉम्बे एसोसिएशन के संस्थापक थे और इसे 1852 में स्थापित किया था। इसके अलावा, भारतीयों और अंग्रेजों के बीच भलाई के संबंधों के लिए लंदन इंडियन सोसाइटी की स्थापना एन सी बनर्जी के साथ की थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की स्थिति को सुधारने में समर्पित कर दिया था। दादाभाई नौरोजी की 1917 में 92 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।