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भारत के घातक दंगें

June 5, 2017


riotsभारत अमन-चैन का देश है। भारत को गौतम बुद्ध, महावीर, गाँधी जी और जवाहरलाल नेहरू जैसे महापुरुषों ने शांति और एकता वाला स्थान बताया है। क्योंकि उन्हें विश्वास था कि ये सभी खूबियाँ लंबे समय तक देश की प्रगति में मदद करेंगी। भारत विविधता वाला देश है, यह वह स्थान है, जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म, भाषा और संस्कृति वाले बहुत सारे लोग एक साथ रहते हैं। हालांकि, अब मानवीय अधिकारों की भयानक हिंसा और घृणात्मक अव्यवस्था के कारण, देश की धर्मनिरपेक्ष बनावट और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व इतिहास के साक्षियों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। संक्षेप में यह भी कह सकते है। कि शायद ये दंगे भारत की राष्ट्रीय प्रगति के रास्ते में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक हैं।

1946 के कलकत्ता दंगें

भारत में 1946 में होने वाले कलकत्ता के दंगों में लगभग 10,000 लोगों की मौत हुई थी। यह सबसे ज्यादा विनाशकारी दंगों में से एक माना जाता है। जिसके कारण उन्हें ग्रेट कलकत्ता किलिंस के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रकरण पूरे चार दिनों तक जारी रहा था, जिसके फलस्वरूप उस समय शहर के बहुत से लोग अपने घरों को भी नहीं जा पाए थे। इतिहास को देखा जाए, तो पता चलता है कि ये दंगें मुहम्मद अली जिन्ना के कारण ही हुए थे। क्योंकि जिन्ना मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य बनाने लिए, देश भर के मुसलमानों से सीधे कार्रवाई करने के लिए कहा था।

1970 के भिवंडी दंगें

1970 के भिवंडी दंगों को भारत के बॉम्बे दंगों से पहले के सबसे खतरनाक दंगो में से एक माना जाता है। दंगों का मुख्य कारण शिवाजी के जन्मदिन को मनाने के लिए, जुलूस के आयोजन को लेकर हुआ था, इस दंगें में 250 लोग मारे गए थे।

1980 के मुरादाबाद दंगें

1980 में, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में अगस्त से नवंबर तक कई धार्मिक टकराव हुए थे। समस्याएँ कथित रूप से तब शुरू हुईं, जब हिंदुओं ने मुसलमानों के मस्जिद के सामने एक सुअर रखा, बदले में मुसलमानों ने स्थानीय पुलिस को कार्यवाही के बारे में सूचित किया। टकराव तब शुरू हुआ, जब पुलिस ने उनकी शिकायत नहीं सुनी। पुलिसकर्मियों ने कुछ बेकसूर लोगों पर आरोप लगाए, जिसके कारण इस घटना ने एक बड़े दंगे का आकार ले लिया। इस दंगें में कम से कम 400 लोगों ने अपनी जानें गँवा दी थी।

1984 के सिख विरोधी दंगें

1984 के सिख विरोधी दंगों की शुरुआत, इँदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुई थी। क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। जिससे दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में भारी मात्रा में अराजकता और रक्तपात शुरू हो गया और ज्यादातर हिंसा सिखों के खिलाफ थी। दंगों में करीब 2800-3000 लोग मारे गए और केवल दिल्ली में ही 2100 लोगों की मौतें हुई थीं। इस घटना के बाद से मानवाधिकार संगठन सरकार ने दंगा करने वाले अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के आदेश जारी कर दिए थे। जबकि कई अपराधियों को सजा भी मिली है। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं, जिनको भारतीय न्यायिक व्यवस्था से अभी तक सजा नहीं मिली है।

1989 के भागलपुर दंगें

1989 के भागलपुर दंगों को भारत में सबसे ज्यादा नरसंहार के रूप में माना जाता है। इस दंगें का मुख्य कारण हिंदुओं पर हमला था और बाद में एक मुस्लिम समूह ने दो हिंदुओं की हत्या कर दी थी। अयोध्या मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाली ईंटों को ले जा रहे हिंदू तीर्थयात्रियों के समूह पर हमला किया गया था। इस हमले में 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

1989 के कश्मीर दंगें

स्वतंत्रता के बाद से कश्मीर विद्रोहियों द्वारा शुरू की गई, निरंतर अवरोधी गतिविधियों से तंग हो गया है। हालांकि, 1989 के दंगों के साथ उनके कारनामों के कारण एक कमजोर मोड़ आया, जब बहुसंख्य मुसलमानों ने जम्मू-कश्मीर से हिंदुओं को निकालने का हर संभव प्रयास किया, जो दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग विवादों के केंद्र में एक था। सांप्रदायिक अपराध के परिणामस्वरूप बहुत से कश्मीरी पंडितों को अपने घर से निकाल दिया गया था।

1992-93 के मुंबई दंगें

1992-93 के मुंबई दंगें दिसंबर 1992 से लगाकर जनवरी 1993 तक जारी रहे थे। इस दंगें का मुख्य कारण, उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराना था। इस घटना के बाद काफी बड़ा झगड़ा हुआ, जल्द ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लगातार दंगो का कारण बन गया। बॉम्बे के अलावा, दंगों में कई अन्य शहर भी प्रभावित हुए, साथ ही दोनों पक्षों के लगभग 900-1000 तक लोग मारे गए और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे। भारत में भयंकर घटनाओं में से एक यह भी है कि गोरेगाँव क्षेत्र के मुसलमानों को पकड़ कर, एक कमरे में बंद करके आग लगा दी गई थी। और उन लोगों को जिंदा जला दिया गया था।

गुजरात दंगें 2002

2002 के गुजरात दंगें भारत के इतिहास में सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में से एक है। दंगों से ठीक पहले 2001 में इस राज्य में एक बड़े पैमाने पर भूकंप आया था और यह राज्य कुछ दिनों बाद भूकंप से होने वाली हानि से उबर ही पाया था। ये दंगे तब शुरू हुए, जब साबरमती एक्सप्रेस के पास कारसेवक हिंदू तीर्थयात्री जो अयोध्या उत्तर प्रदेश से वापस आ रहे थे, उस ट्रेन में आग लगा दी गई थी। यह सांप्रदायिक हिंसा के आरोपों के साथ एक बड़ी झड़प थी। जिसमें तीन दिवसीय सामूहिक हत्या का खेल शुरू हो गया था। इस दंगे की चपेट में हजारों महिलाएं और बच्चें मारे गए थे। यह भी माना जाता है कि उसके बाद राज्य के लगभग 200 लोग गायब हो गए थे। बहुत सारे लोग जिन्होंने हिंसा में भाग लिया, उनकी तलास अभी भी की जा रही है।

2006 के अलीगढ़ दंगें

अलीगढ़ दंगों की शुरुआत 5 अप्रैल 2006 को राम नवमी के दिन हुई थी। हिंदू और मुसलमानों के बीच कथित गलतफहमी के कारण दंगों की शुरुआत हुई। जिसमें लगभग 6 लोग मारे गए और कई लोग घायल हुए थे। इस घटना के तुरंत बाद, अधिकारियों ने कर्फ्यू लगा दिया, जिससे क्षेत्र का माहौल सामान्य हो गया था।

2013 के मुजफ्फरनगर दंगें

ये दंगे उत्तर प्रदेश के इतिहास में, भारत के प्रमुख दंगों में से एक हैं। इन दंगों का असली कारण अभी भी अज्ञात है। लेकिन इसकी शुरूआत 21 अगस्त 2013 को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हुए टकराव के कारण हुई। इस दंगे में 423 मुस्लिमों और 20 हिंदुओं की मृत्यु हुई। और जिले के 50,000 से अधिक लोगों का जीवन संकट में पड़ गया था। इन दंगों ने सामूहिक बलात्कार जैसे यौन हिंसा करने में एक निश्चित मात्रा में योगदान दिया था। दंगों के कारण सामूहिक बलात्कार जैसे 13 उदाहरण सामने आए थे।