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दिल्ली नगरपालिका चुनाव, आप (आम आदमी पार्टी) के आगे अंधेरे के बादल?

April 25, 2017


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क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली वासियों का विश्वास खो चुकी है?

आम आदमी पार्टी के आगे हार के काले बादल छाये हैं? अगर मीडिया पर विश्वास किया जाए, तो भाजपा सभी तीन नगर निगमों पर अपना कब्जा बरकरार रख रही है। सभी तीन नगर निगमों में भाजपा की उपस्थिति में सुधार की संभावना है और एक्जिट पोल के अनुसार, यह 10 प्रतिशत या उससे कम हो सकता है, जोकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच विभाजित होगा और यह भी समान संख्या में होगा। अगर इन एक्ज़िट पोल पर विश्वास किया जाए, तो यह कहना उचित होगा कि आम आदमी पार्टी के विघटन की मजबूत संभावनाएं हैं। संभवतः 10, 15 या 30 आम आदमी पार्टी के विधायक इस्तीफा दे सकते हैं और भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इन सभी को समायोजित करना भाजपा के लिये निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती होगी। इन सभी सीटों के लिए भाजपा के पास स्वयं के पूर्व विधायक और उनके उम्मीदवार बैठे हैं। इसके अतिरिक्त आरएसएस प्रत्याशी और पार्टी कैडर भी हैं जो पार्टी की देखभाल करते हैं।

इसी दौरान, अरविंद केजरीवाल अपनी क्षमा के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वह वही करना चाहते हैं जो मायावती ने उत्तर प्रदेश में किया था, मायावती नें ईवीएम में पूर्ण रूप से भाजपा द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाया था।

हमें आश्चर्य है कि अगर ईवीएम में छेड़छाड़ करना आसान है, तो आम आदमी पार्टी को दिल्ली में इतनी ऐतिहासिक जीत कैसे मिली थी? अरविंद केजरीवाल को स्वयं को एक ही समय में आगे बढ़ाने और पुनः आकार देने की आवश्यकता है। उन्हें एक राजनीतिज्ञ के रूप में विकसित होने और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पुनः आकार देने की आवश्यकता है। बेशक, मीडिया उनके पक्ष में नहीं जा रही है। क्या मीडिया उनके लिए तब उचित नहीं थी, जब उनकी पार्टी ने अभूतपूर्व जीत हासिल की थी? लेकिन जो कुछ हुआ वह उनके सपनों के निर्माण और उनको प्राप्त करने के दृढ़ निश्चय दिखाने की ताकत पर हुआ।

कोई भी यह इन्कार नहीं कर सकता है कि आम आदमी पार्टी सरकार बिजली और पानी का भुगतान करने के लिए काम करती है और लाखों लोगों को इसका लाभ मिलता है, लेकिन यह कहना कि यह काम आम आदमी पार्टी को बचाए रखने के लिए पर्याप्त है, दिल्ली वासियों की उम्मीदों को कम करना है। अरविंद केजरीवाल के पास अपने सबसे ज्यादा उम्मीदवारों की हार के बाद उनकी पार्टी और सरकार को बचाने का विकल्प है। वह एक उच्च नैतिक पद ले सकते हैं और मुख्यमंत्री के रूप में मनीष सिसोदिया को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए इस्तीफा दे सकते हैं और जमीनी स्तर पर पार्टी को सुदृढ़ बनाने की दिशा में कदम उठा सकते हैं।

ऐसा कहने पर पहले विचार किया जाता है। क्या बहुत देर हो चुकी है? शायद हाँ, पार्टी अभी भी बिखर सकती है। लेकिन वह उसे किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में दोबारा स्थान देगी जो अपनी कुर्सी का आवश्यकता वश त्याग न करे और अपनी कुर्सी को सहेजे कर रखें।

चलो इस बीच हम देखते हैं कि ‘आप’ के लिए कौन सी पार्टी काले बादलों की दुकान साबित होगी।