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क्या भारत में आरक्षण या कोटा प्रणाली जरूरी है?

July 22, 2017


reservation-system-in-indiaभारत में आरक्षण या कोटा प्रणाली होनी चाहिए या नहीं, यह अभी भी बहस का मुद्दा बना हुआ है। भारतीय संविधान में इसके लिए कानून बनाया गया है और इस कानून के अनुसार, निम्न वर्गों के लोगों को विशेषाधिकृत करने या सामान्य लोगों के बराबर लाने के लिए आरक्षण लागू किया गया है। भारत में महिलाओं के लिए आरक्षण, शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए आरक्षण, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण आदि जैसे कई आरक्षण हैं। हालांकि, आरक्षण प्रणाली एक स्पष्ट भेदभाव है, लेकिन इसकी शुरूआत सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान करने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि समाज में उपलब्ध अवसरों में उन्हें समानता मिल सके। लेकिन समय के साथ इसका अर्थ बदल गया है जिस तरह से लोगों द्वारा इसका लाभ उठाया जा रहा है, इसे देखकर बहुत से लोगों का यह मानना है कि यह कानून बंद हो जाना चाहिए। लोगों ने इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है। किसी महाविद्यालय में दाखिला लेने या नौकरी पाने के लिए झूठे दस्तावेज बनाने वाले लोग इसके कई उदाहरण हैं। जिसमें एक अधिक योग्य उम्मीदवार को एक आरक्षित श्रेणी में आने वाले व्यक्ति के कारण अपनी सीट छोड़नी पड़ती है।

भारत में आरक्षण प्रणाली का कारण?

भारत में जाति व्यवस्था की गहरी जड़ें आरक्षण प्रणाली का वास्तविक कारण हैं। मुख्य रूप से उस समय जाति व्यवस्था त्वचा के रंग के कारण अस्तित्व में आई थी, जैसे साफ रंग वाले लोग ब्राह्मण या ऊपरी जाति का आनंद लेते थे और काले रंग वाले लोग शूद्र या नीची जाति के कहे जाते थे। जो हमारे समाज में अलगाव का कारण बना और इसमें सुधार करने के लिए, आजादी के बाद आरक्षण का विचार अस्तित्व में आया। इसलिए वर्ष 1950 में पिछड़े वर्गों के लिए कोटा बनाया गया और इसमें समय-समय पर कई नए कोटे और आरक्षण जोड़े गये।

हमें स्वतंत्रता प्राप्त किए कई दशक हो चुके हैं, लेकिन फिर भी भारत में निम्न जाति के वर्गों की हालत पहले जैसी ही है। आरक्षण मुख्य उद्देश्य के विपरीत दिशा में काम कर रहा है, जिससे समाज में अलगाव की स्थिति पैदा हो रही है। इसके उपयोग में समाज के एक वर्ग का उत्थान दूसरे वर्ग के मूल्यों पर किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। इसके बजाय सभी को समान अवसर मिलने चाहिए। एक सक्षम उम्मीदवार को अपने मूल्य को साबित करने के लिए निचली जाति से होने के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। किसी व्यक्ति का मन, शिक्षा और प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता ऐसी चीज जो उसके जीवन में बदलाव ला सकती हैं। कोई भी अपना विशेषाधिकार प्रमाण पत्र दिखाकर डिग्री या नौकरी के अलावा और कुछ नहीं प्राप्त कर सकता।

इसके अलावा भारत में आरक्षण प्रणाली एक ऐसा कार्यबल बना रही है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं। भारत को वृद्धि और विकास करने वालों लोगों की जरूरत है, लेकिन आरक्षण के कारण अयोग्य उम्मीदवारों को भी सम्मिलित किया जा रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि आरक्षण प्रणाली को समाप्त कर देना चाहिए और अगर सरकार वास्तव में समाज के वंचित वर्गों का उत्थान करना चाहती है, तो सरकार को एक अच्छी संतुलित नीति तैयार करनी चाहिए। सबसे पहले इस तरह के समाज के सभी वर्गों को स्पष्ट रूप से पता करना चाहिए कि क्या उन्हें विकास और वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। फिर उन्हें मुफ्त शिक्षा, प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। एक बार उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना कराने के बाद उनके लिए यथार्थ प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि उन्हें योग्य बनाये, उन्हें सही रास्ता दिखाए और उनके अन्दर जुझारू बनने की भावना उत्पन्न करें क्योंकि कोई भी सकारात्मक प्रतिस्पर्धा के खिलाफ नहीं है।

अमेरिका में भी एक कोटा प्रणाली थी, लेकिन इसको बहुत पहले ही समाप्त कर दिया गया था। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि वे समाज के वंचित लोगों के लिए काम नहीं कर रहे हैं। उनके पास प्रवेश और नियुक्ति के प्रयोजनों के लिए अंकीय प्रणाली है। जिसमें पिछड़े क्षेत्रों के लोगों को कुछ अतिरिक्त अंक दिए जाते हैं, लेकिन उनके लिए सीटें आरक्षित नहीं हैं। इसलिए वहाँ की सरकार जरूरतमंदों की मदद कर रही है, लेकिन यह पात्र उम्मीदवारों के अधिकारों को कम करके या छीनकर मदद बिल्कुल भी नहीं कर रही है।

विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर ऐसे सुधारों या कानूनों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए और विशेषाधिकार प्राप्ति तथा समग्र समाज के विकास पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जिस तरह से गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों की संख्या की प्रति व्यक्ति आय बदल रही है, इसकी गणना करनी चाहिए। राजनीतिकों को स्थायी वोट बैंक बनाने के लिए, आरक्षण प्रणाली का लाभ उठाने के इस्तेमाल से रोकना चाहिए। शिक्षा राजनीति का एक हिस्सा नहीं होना चाहिए। आरक्षण की बजाए बचपन से ही अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए घोर परिश्रम करना चाहिए और उसके बाद भारत में तथाकथित आरक्षण प्रणाली की किसी को भी आवश्यकता नहीं रहेगी।