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भारत में लुप्तप्राय पौधों की प्रजातियां

June 23, 2017


endangered-speciesशानदार विरासत

आयुर्वेद के घर भारत को एक समय जड़ी बूटियों का केंद्र माना जाता था। किंवदंतियों के अनुसार, भारत में पायी जाने वाली संजीवनी बूटी सभी बीमारियों को ठीक कर सकती है और सभी जहरों का मुकाबला कर सकती है। परंपरागत रूप से भारत की वनस्पतियां दुनिया भर में सबसे प्रसिद्ध हो गयीं। इसके लिये देश में मौजूदा मिट्टी, जलवायु परिस्थितियों, स्थलाकृति और पारिस्थितिकी की सीमा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अध्ययनों के अनुसार, देश में वनस्पतियों की 49,000 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, अर्थात् आज लगभग 12 प्रतिशत प्रजातियों को मानव जाति के लिए जाना जाता है। इसमें फूल के पौधों की 16,000 प्रजातियां शामिल हैं। यह दुनिया में पाए जाने वाले कुल फूल के पौधों का लगभग 6 से 7 प्रतिशत हिस्सा है। भारत में पाए गए सभी पौधों में  वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान से पता चला है कि लगभग 3,000 पौधों में औषधीय गुण हैं, जिनका पारंपरिक उपचार में इस्तेमाल किया जाता है।

संकटग्रस्त प्रजातियां

अफसोस की बात है कि भारत अब यहाँ पर पनपने वाले हजारों जीवों और वनस्पतियों का स्वर्ग नहीं रह गया है। वनस्पति वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों की कम से कम 20 प्रतिशत प्रजातियों को या तो खतरे में या लुप्तप्राय रूप में वर्गीकृत किया जाता है। हम इन पौधों और उनके लाभों को हमेशा के लिए खोने के गंभीर संकट में हैं। भारत में पाए जाने वाले लगभग 28 प्रतिशत पौधे देश की मूल प्रजातियां हैं। इसका मतलब यह है कि यदि इन पौधों को हमारे स्वयं के प्रयासों से संरक्षित और परिरक्षित नहीं किया जाता है तो वे दुनिया में स्थायी रूप से अस्तित्व में नहीं रह जायेंगे। पौधों के प्राकृतिक अवासों का विनाश और बढ़ता शहरीकरण इनके गंभीर संकट में होने का मुख्य कारण है जो बढ़ती हुई जटिल समस्याएं हैं। रासायनिक उर्वरकों के अनियंत्रित उपयोग के अलावा मिट्टी, वायु, प्रदूषित पानी, प्लास्टिक का उपयोग और उद्योगों की संख्या में वृद्धि इन पौधों की प्रजातियों के विकास के लिए जरुरी प्राकृतिक तत्वों को हानि पहुंचा रहे हैं। भारत को मिट्टी, जलवायु और वनस्पतियों के प्रकार के आधार पर आठ अलग-अलग क्षेत्रों में बांटा गया है। जिनमें निम्न क्षेत्र हैं: पूर्वी हिमालय, पश्चिमी हिमालय, असम, सिंधु मैदान, गंगा के मैदान, दक्कन (पूर्वी और पश्चिमी घाटियों सहित), मालाबार क्षेत्र और अंडमान द्वीप समूह। इन में से प्रत्येक को अपनी स्वयं की पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

लाल किताब

प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) समय-समय पर एक लाल किताब बनाता है। यह किताब पौधों और जानवरों की उन प्रजातियों को निर्दिष्ट करती है जो खतरे में हैं या दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लुप्तप्राय हैं। आईयूसीएन लाल किताब में भारतीय पौधों और जानवरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2008 में लाल किताब में पौधों की 246 प्रजातियां थीं। जबकि 2013  और 2014  में यह संख्या क्रमशः 325 और 332 थी। 2012 में  लाल किताब में बताया गया कि देश में पौधों की लगभग 62 प्रजातियां लुप्तप्राय हैं अर्थात् विलुप्त होने की कगार पर हैं। हमारे देश में केवल पौधे ही नही बल्कि कई जानवर, कीड़े और सरीसृप भी विलुप्त होने के खतरे से ग्रस्त हैं। लुप्तप्राय स्तनधारियों पर विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दुनिया की चौथी सबसे ज्यादा खतरे में स्तनधारियों की प्रजातियां हैं।

यहाँ भारत में कुछ प्रसिद्ध पौधों की लुप्तप्राय प्रजातियां हैं। जिन्हे तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है:

  • एमेंटोटेक्सस एसामिका (एस्सम कैटकिन यू) – अरुणाचल प्रदेश

ये शंकुधारी वृक्ष केवल अरुणाचल प्रदेश के डेली घाटी और तुरु पहाड़ी में पाए जाते हैं। प्रजनन की कम दर ने इस पौधे की प्रजाति को लुप्त कर दिया है।

  • इलेक्स खसियाना – शिलांग (मेघालय)

मेघालय में केवल शिलांग पहाड़ी में ही ये झाड़ियां मिलती हैं इनके केवल तीन से चार पौधे ही शेष हैं।

  • डायोस्पाइरोस सेलीबिका (ईबोनी) – कर्नाटक

यह अपने गहरे रंग और उच्च गुणवत्ता की लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है। फर्नीचर के लिये इसका अत्यधिक उपयोग और अंधाधुन्ध कटाई से इन पेड़ो के क्षेत्र समाप्त हो गए हैं।

  • पेटरोकार्पस सांतालिनस (लाल चंदन) – पूर्वी घाट

यह दक्षिण भारत में चंदन की एकमात्र दुर्लभ प्रजाति है। यह औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। अत्यधिक कटाई और निवास स्थान क्षति होने के कारण यह लुप्तप्राय है।

  • क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम (मूस्ली) – तमिलनाडु

यह फूल का पौधा केवल अफ्रीका और भारत के अंदरूनी हिस्सों में पाया जाता है। यह एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक दवा है। जो जीवन शक्ति और ताकत देता है। अंधाधुंध दोहन ने पौधे को खतरे में डाल दिया है।

  • किंग्योडेन्ड्रॉन पिन्नाटम (मालाबार महोगनी) – केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु

यह लकड़ी के लिए सबसे अच्छा पेड़ है। निवास स्थान क्षति होने, शोषण और विनाश के कारण इसके प्रजनन में कमी आई है।

  • एक्टिनोडाफाने लॉवसोनी – केरल

एक ऊंचा चंदवा या उप-चंदवा वृक्ष जो ऊंचाई वाले जंगलों में पाया जाता है। इसके औषधीय गुणों के लिए इसे बड़े पैमाने पर काटा गया। यह निवास स्थान में क्षति के कारण स्थानीय और लुप्तप्राय है।