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भारत के पाँच सबसे पुराने और महत्वपूर्ण गुरुद्वारे

July 12, 2017


oldest-and-largest-gurudwaras-in-india-hindi15 वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की। यह एक ऐसा धर्म है जो समानता, बहादुरी और उदारता के गुणों से सम्पन्न है। सिख धर्म भारत के इतिहास में नए युग के सबसे शक्तिशाली धर्मों में से एक धर्म है। सिख धर्म ने भारत को कुछ ऐसे असाधारण पुरूष दिए जो समाज और सच्चाई के कल्याण हेतु अपने प्राणों को त्यागने पर तैयार थे। यह महापुरूष साहस और पराक्रम की चट्टान बन गये और देश तथा समाज का बचाव किया। गुरुद्वारा सिख धर्म के पवित्र तीर्थ के रूप में धर्म की बुनियाद को प्रतिबिंबित करता है। जहाँ आध्यात्मिक शान्ति के अलावा, लंगरों के रूप में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का अनुभव प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में असंख्य गुरुद्वारे हैं लेकिन भारत के सबसे पुराने और बड़े गुरुद्वारों में से कुछ निम्नलिखित हैं।

गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब, पंजाब (स्वर्ण मंदिर)

श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा भारत में सिख धर्म के सबसे प्रसिद्ध गुरूद्वारों में से एक है, यह पंजाब के अमृतसर में स्थित है। इस गुरूद्वारे की नींव 1588 ई0 में सिख धर्म के पाँचवें गुरू श्री अर्जुन सिंह जी के द्वारा रखी गई थी।

1606 ई0 में, गुरु अर्जुन सिंह जी ने श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे के अन्दर गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के साथ पवित्र ग्रंथ गुरूग्रन्थ साहिब को स्थापित किया था। 19 वीं शताब्दी में, इस पवित्र स्थान की रक्षा के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने ऊपरी मंजिल को स्वर्ण (सोने) की चादरों से ढक दिया, जिससे इस गुरूद्वारे का नाम स्वर्ण मंदिर पड़ गया। श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे (स्वर्ण मंदिर) में एक संग्रहालय है जिसमें सिखों की घटनाओं, संतों के चित्र और शहीदों के समृद्ध अतीत को प्रदर्शित किया गया है और प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए सभी सिख सैनिकों की याद में शिलालेख भी बने हैं। स्वर्ण मंदिर के लंगर में प्रत्येक दिन हजारों गरीब और अमीर लोग आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

तख्त श्री पटना साहिब, बिहार

सिख धर्म के लोग तख्त श्री पटना साहिब को गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म स्थान मानते हैं इसलिए यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अन्तिम गुरू थे। 1780 ई0 में महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु गोबिंद सिंह जी के स्मरण में इस गुरूद्वारे का निर्माण करवाया था। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म स्थान होने के अतिरिक्त, पटना साहिब दुनिया भर के सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि गुरु तेग बहादुर भी पटना गए थे और उसी जगह पर ठहरे थे।

गुरुद्वारा बांग्ला साहिब,  नई दिल्ली

गुरुद्वारा बांग्ला साहिब दिल्ली के केंद्र में स्थित है और भारत की राजधानी शहर के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यह गुरूद्वारा 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच में बनाया गया था। पहले इस स्थान पर महाराजा जय सिंह के स्वामित्व वाला एक बंगला था। 1664 ई0 में सिखों के आठवें गुरू हरकृष्ण इस जगह पर आकर ठहरे थे, उस समय दिल्ली के लोग चेचक और हैजा (महामारी) से ग्रसित थे, सिख धर्म की शिक्षा के अनुसार उन्होंने सभी बीमार और परेशान लोगों की पड़ोसी कुएं से पानी देकर सहायता की। हालांकि, गुरू हरकृष्ण को भी बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया और यहीं उनका स्वर्गावास हो गया। महाराजा जय सिंह ने 18 वीं शताब्दी में गुरु हरकृष्ण और उनके महान कर्मों की स्मृति में इस बंगले को गुरुद्वारे में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने उस कुएं पर एक तालाब का निर्माण करवाया जिसमें से गुरु ने बीमारों को पानी दिया था। यह माना जाता है कि इस तालाब के पानी में चिकित्सीय गुण हैं जो बीमारों को ठीक कर देता है।

गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब, उत्तराखंड

सिख धर्म के दसवें गुरू श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित यह गुरुद्वारा, समुद्र तल से 4000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर उत्तराखंड के चमोली जिले में  स्थित है। इस गुरुद्वारे की वास्तुकला को प्रचलित मौसम और जगह की ऊँचाई को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इस गुरुद्वारे का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित महान कार्य, दसम ग्रंथ में मिलता है। यह गुरुद्वारा सात पर्वत चोटियों से घिरी हुई हिमनदी झील पर स्थित है, प्रत्येक चट्टान निशान साहिब द्वारा सुशोभित है और वास्तव में आध्यात्मिकता को पुनः परिभाषित करती है।

तख्त सचखण्ड श्री हजूर अचलनगर साहिब गुरुद्वारा,  महाराष्ट्र

हजूर साहिब गुरुद्वारा सिख धर्म के पाँच पवित्र तख्तों (पवित्र सिंहासन) में से एक का घर है और सिख समुदाय की एकता का प्रतीक है। यह पाँचों तख्त सिख समुदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। तख्त सचखण्ड श्री हजूर अचलनगर साहिब गुरुद्वारा नांदेड़ में स्थित है। दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह ने नांदेड़ में अपनी अंतिम सांस ली और 1832 ई0  में महाराजा रणजीत सिंह ने इस जगह पर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया, जो कि सिख समुदाय में अत्यधिक सम्मानित है। गुरुद्वारे के अंदर स्थित कमरे को सचखंड या सत्य का दायरा कहा जाता है, यहाँ पर यह माना जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी अंतिम सांस ली थी, उस स्थान को अंगीथा साहिब भी कहा जाता है।