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सरकार करेगी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी – घरेलू उद्योग को बढ़ावा

August 14, 2017


oil-helps_hindiभारत पारंपरिक रूप से दुनिया का सबसे बड़ा पाम ऑयल (ताड़ का तेल) और सोयाबीन तेल का खरीददार रहा है। हमारे देश में लोगों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले 70 प्रतिशत खाद्य तेल का निर्यात किया जाता है। यदि पिछले समय की बात की जाए तो सन् 2001 और 2002 में हम कुल माँग का केवल 44 प्रतिशत तेल आयात करते थे। इन खाद्य तेलों की माँग में वृद्धि दिखने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम घरेलू तेलों का उपयोग करने के लिए लोगों को जागरुक करने में असमर्थ रहे और लगातार वर्ष प्रति वर्ष विदेशी तेलों का उपयोग करते रहे तथा विदेशों से लगातार तेल आयात करते रहे। 11 अगस्त 2017 को भारत की सरकार ने निर्णय लेकर घोषणा की है कि कच्चा तेल और रिफाइन्ड पॉम ऑयल (भारत में सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले खाद्य तेलों में से एक) के आयात शुल्क में वृद्धि की जाएगी। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड की एक अधिसूचना के मुताबिक कच्चे पॉम ऑयल (जो कि भारत में रिफाइनरी के लिए कच्चा माल है) पर आयात शुल्क 7.5 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाएगा, जबकि तैयार पॉम ऑयल (रिफाइन्ड) पर शुल्क 15 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगा। पॉम ऑयल एकमात्र खाद्य तेल है जिस पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी होगी। सोया और सूरजमुखी के कच्चे तेल पर आयात शुल्क 12.5 प्रतिशत से बढ़कर 17.5 प्रतिशत हो गया है।

आयात शुल्क में बढ़ोतरी क्यों जरूरी है?

देश में तिलहन के उत्पादन में पिछले दो सालों में काफी कमी देखी गई है। भारत में कुछ प्रमुख तिलहन फसलों के उत्पादन वाले राज्यों में सूखे जैसी स्थिति है – गुजरात (ग्राउंडनट या मूँगफली), राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा (रेपसीड, सोयाबीन और सरसों) कर्नाटक और महाराष्ट्र (सूरजमुखी) की फसलों की बर्बादी के कारण किसानों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस वर्ष, समय पर मानसून के लिए धन्यवाद, मानसून के समय पर आने के कारण उत्पादन एक बार फिर से बढ़ रहा है। हालांकि, मानसून का समय पर आना भारतीय किसानों और तेल उत्पादकों के लिए कोई अच्छी खबर नहीं रही। देश में खाद्य तेल की कीमत एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के नीचे पहुँच गई है।

एमएसपी एक ऐसा मूल्य है जो भारत सरकार के द्वारा किसानों को दिया जाता है इसमें फसलों की कीमतों में तेजी से आने वाली गिरावट से बचाने के लिए उनके उत्पाद की खरीद करने की पेशकश की जाती है। जब किसानों की फसल का उत्पादन भरपूर होता है और अधिक उत्पादन के कारण जब कीमतों में गिरावट आ जाती है, तब सरकार एमसपी की घोषणा करती है जो किसानों पर आने वाले बिक्री संकट को कम करती है। हालांकि, तिलहनों के उत्पादकों को एमएसपी का आश्वासन दिया जाता है, लेकिन इस तरह के सरकारी हस्तक्षेप से किसानों को ज्यादा लाभ नहीं होता है।

आसान भाषा में कहा जाए तो इसका अर्थ यह है कि तिलहन के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन इन फसलों की कीमतें काफी कम हैं। आयात तेलों का अधिक उपयोग तथा प्राथमिकता के कारण घरेलू तेल का उत्पादन करने वाले उद्योग परेशान हैं, इसलिए सरकार ने निर्यात को कम करने और इसमें हस्तक्षेप करने का फैसला लिया है।

हाल ही में हुए परिवर्तन

भारत में हर साल करीब 14.5 मिलियन टन वनस्पति तेल आयात किया जाता है। इसमें खाद्य (खान-पान में उपयोग किए जाने वाले तेल) और गैर-खाद्य (अन्य कार्यों में उपयोग किए जाने वाले) तेल शामिल हैं। ज्यादातर सस्ते वनस्पति तेल इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किए जाते हैं। इस साल जून तक, आयात 15 प्रतिशत बढ़कर 1.34 मिलियन टन तक हो गया। यह बढ़ोत्तरी एक अलार्म घंटी (चेतावनी) की तरह बजी और वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में एक अंतर-मंत्रालयी पैनल का गठन किया गया था ताकि बढ़ते आयात की स्थिति की समीक्षा की जा सके और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए दिशा-निर्देशों का सुझाव दिया जा सके। इस समिति की सिफारिशों को एक समिति को सौंप दिया गया, जिसके बदले सस्ते खाद्य तेल के आयात पर लगाए गए आयात शुल्क पर गौर किया गया। आखिरकार केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने सभी कच्चे और परिष्कृत (रिफाइन्ड) खाद्य तेलों के आयात पर आयात शुल्क बढ़ाने के निर्णय के साथ ही घरेलू उत्पाद और आयात के बीच मूल्य में समानता लाने का निर्णय लिया है। जबकि अभी भी अंतिम उपयोगकर्ता को अपनी पसंद का तेल चुनने की अनुमति है।

सरकार इस कार्यवाही से प्रशंसा प्राप्त करना चाहती है

सरकार के निर्णय घरेलू खाना पकाने के तेल उत्पादन उद्योग को बढ़ावा देने के कार्य को सभी ने सराहा है। उद्योग संगठन, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (1963 में स्थापित) ने नियमित रूप से आयात पर भारत की बढ़ती निर्भरता पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आगे और नए सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए आयात शुल्क में वृद्धि पर खुशी जाहिर की है। जबकि आयात में वृद्धि का मौजूदा स्तर घरेलू उद्योग का समर्थन करने के लिए पर्याप्त हो सकता है, एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने कहा है कि आयात कच्चे खाद्य तेल और परिष्कृत (रिफाइन्ड) तेल के बीच 12.5 से 15 प्रतिशत का अंतर देश में तेल रिफाइनरी का समर्थन करेगा।

कमोडिटीज मार्केट को फिर से आगे ले जाने के लिए

पिछले कुछ दिनों में यह देखा गया है कि कमोडिटी बाजार में खाद्य तेलों पर अनिश्चितता कम हुई है। एनसीडीईएक्स पर कच्चे तेल और सोया तेल के कारोबार में जून और जुलाई 2017 में काफी गिरावट देखी गई है। ऐसा लगता है कि अब यह परिदृश्य बदल जाएगा और हम सोमवार को इन वस्तुओं के व्यापार में सक्रिय बदलाव देख सकते हैं। हमें यह भी लग रहा है कि दो अन्य कृषि वस्तुएं चीनी और गेहूं पर भी जल्द ही आयात शुल्क के संशोधन पर विचार किया जा सकता है।