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जीएसटी विधेयक किस तरह कई सेक्टरों और आम आदमी को प्रभावित करेगा

July 23, 2018


जीएसटी विधेयक किस तरह कई सेक्टरों और आम आदमी को प्रभावित करेगा

जीएसटी विधेयक किस तरह कई सेक्टरों और आम आदमी को प्रभावित करेगा

जीएसटी बिल क्या है

कई वर्षों तक चली बहस चली। गुड्स और सर्विस टैक्स या वस्तु और सेवा कर या जीएसटी के हर पहलू पर चर्चा हुई। पक्ष-विपक्ष में कई तरह के तर्क दिए गए। आखिरकार 3 अगस्त 2016 को जीएसटी से जुड़े संविधान (संशोधन) विधेयक ने राज्यसभा की बाधा भी पार कर ली।

इसे भारत में अब तक के सबसे बड़े आर्थिक सुधार के तौर पर देखा जा रहा है। एक देश, एक टैक्स वाली अर्थव्यवस्था। उद्योग और कारोबार इस महत्वपूर्ण सुधार की मांग लंबे समय से कर रहे थे और आखिरकार भारत भी एकल टैक्स से एक बाजार की शक्ल लेने को तैयार है।

अभी काम पूरा नहीं हुआ

ज्यादातर विपक्षी पार्टियों की मांग है कि सेंट्रल जीएसटी बिल और इंटीग्रेटेड जीएसटी बिल को संसद के दोनों सदनों में वित्त विधेयक के तौर पर पेश किया जाए, मनी बिल के तौर पर नहीं। इसकी एक वजह यह है कि मनी बिल को लोकसभा में सामान्य बहुमत के जरिए भी पारित किया जा सकता है। विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर आगे भी बहस को जारी रखना चाहती है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हालांकि कोई वादा नहीं किया और सिर्फ यह ही कहा कि जीएसटी काउंसिल को बनाना अभी शेष है। प्रस्तावित जीएसटी बिल का मसौदा भी तैयार किया जाना है।

सरकार ने कांग्रेस की मांग को मानते हे एक प्रतिशत अतिरिक्त उपकर लगाने का प्रस्ताव वापस ले लिया है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम चाहते थे कि जीएसटी की अधिकतम दर 18 प्रतिशत तय की जाए, लेकिन अरुण जेटली ने इस पर भी कोई वादा नहीं किया। यह भी कह गए कि कई राज्य जीएसटी के लिए ज्यादा दर की मांग कर रहे हैं।

केंद्र सरकार ने वादा किया है कि जीएसटी शुरू करने के बाद शुरुआती पांच वर्षों तक राज्यों को आर्थिक मदद देगा। यह मदद उस नुकसान के भरपाई के तौर पर होगी, जो राज्यों को मौजूदा टैक्स व्यवस्था से मिल रहे राजस्व के मुकाबले नई व्यवस्था से होगी। इस समय तंबाकू, अल्कोहल और पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है।

भारतीय अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था विकसित देशों के मुकाबले न कम है और न ही ज्यादा। ज्दातर विकसित देशों में 15-20 प्रतिशत का यूनिफार्म रेट है। जबकि भारत 18-20 प्रतिशत के बीच जीएसटी व्यवस्था स्वीकार करने की तैयारी में है।

अब आगे क्या… जीएसटी हकीकत कब बनेगा

संविधान संशोधन विधेयक अब राष्ट्रपति को भेजा जाएगा, जो जांच के लिए लोकसभा भेजेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति इसे मंजूरी के लिए संबंधित राज्य विधानसभाओं को भेजंगे। 29 में से कम से कम 15 राज्यों में इसे मंजूरी मिलना जरूरी है। राज्य की विधानसभाओं से मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति इस पर सहमति देंगे।

नई जीएसटी परिषद को बनाया जाएगा, जो जीएसटी बिल के मसौदे को लेकर सिफारिश करेंगी और केंद्र सरकार को भेजेगी। केंद्र बिल का मसौदा तैयार करेगा और संसद भेजेगा। वह बिल वित्त विधेयक होता है या मनी बिल, उसके हिसाब से संसद में बहस होगी और तब केंद्रीय और इंटीग्रेटेड बिल्स पास किए जाएंगे। इस बीच, राज्यों को भी अपने जीएसटी बिल पारित करने होंगे। इसके बाद यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून की शक्ल लेगा।

जीएसटी बिल के उद्देश्य

प्रस्तावित जीएसटी बिल का उद्देश्य देश में एक समान और पारदर्शी टैक्स व्यवस्था को लागू करना है। ताकि कारोबार करना आसान हो सके। टैक्स बेस बढ़ सके और सरकार का राजस्व बढ़ सके। पूरी प्रक्रिया सुधरे और कई स्तरों पर लगने वाले टैक्स से मुक्ति मिले। कारोबारियों के लिए टैक्स जमा करना आसान हो। मुद्रास्फीति कम हो और जीडीपी को गति मिले।
नई जीएसटी व्यवस्था एक्साइज ड्यूटी, काउंटरवेलिंग टैक्स, सर्विस टैक्स जैसे 17 केंद्रीय और राज्यों के सेल्स टैक्स, वैट, ऑक्ट्राई और लग्जरी टैक्स जैसे अप्रत्यक्ष करों की जगह ले लेगी।

जीएसटी से अपेक्षित लाभ

1- ज्यादातर वस्तुओं की रिटेल कीमत कम होगी
2- जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की वृद्धि होगी
3- लंबी अवधि में मुद्रास्फीति घटेगी
4- रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा होंगे
5- मार्केट में ई-कॉमर्स की स्थिति मजबूत होगी
6- दायरा बढ़ने से अप्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ेगा
7- लंबी अवधि में कर संग्रह का लक्ष्य अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष करों की होगा
8- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा सुधरेगा

जीएसटी के तहत सेक्टर के हिसाब से किसे फायदा और किसे नुकसान होगाः

ज्यादातर विनिर्मित वस्तुओं की कीमतें कम होंगी, जिससे उनकी मांग बढ़ेगी। हालांकि, कुछ सेवाओं की लागत जरूर बढ़ जाएगी। जहां उपभोक्ताओं को ज्यादा खर्च करना होगा। हम यहां बता रहे हैं कि सेक्टर के हिसाब से किसे फायदा और किसे नुकसान होगाः

गेनर्सः

1- लॉजिस्टिक्स (परिवहन)
2- तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स के साथ ‘मेक इन इंडिया’ की बढ़ती मौजूदगी से लॉजिस्टिक्स में काम कर रही कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, इंटरग्लोब एविएशन, ऑलकार्गो, एजिस लॉजिस्टिक्स, अदानी एसईजेड, गुजरात पिपावाव जैसी कंपनियों में तेजी आएगी।

ऑटोमोबाइल्स

छोटी कार बनाने वाली कंपनियों, जैसे- मारुति, हुंडई और टाटा मोटर्स के साथ ही हीरो होंडा, आइशर, बजाज ऑटो को भी बहुत लाभ मिलने वाला है। इससे कीमतों में गिरावट तय है।

एफएमसीजी

हिंदुस्तान लीवर्स, पीएंडजी, गोदरेज और आईटीसी जैसी बड़ी एफएमसीजी कंपनियां भी बड़े पैमाने पर टैक्स और लॉजिस्टिक्स लागत कम कर सकेंगी।

उपभोक्ता उत्पाद

इस सेक्टर की ज्यादातर कंपनियों को टैक्स और लॉजिस्टिक्स की लागत कम होने का फायदा मिलेगा। सफेद सामान बनाने वाले, इलेक्ट्रिकल अप्लायंसेस के सेक्टर को सबसे ज्यादा लाभ होगा।

सीमेंट

बुनियादी ढांचे में सीमेंट एक महत्वपूर्ण घटक है। ज्यादातर सीमेंट कंपनियों को मांग में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। जीएसटी की वजह से लागत कम होने का फायदा मांग बढ़ने के तौर पर मिलेगा। इससे भारत में बुनियादी ढांचे की लागत कम होगी।

इन्हें होगा नुकसान

लग्जरी कार निर्माता

लग्जरी कारों का निर्माण महंगा होगा, जिससे इस पर कम बिक्री का दबाव भी बढ़ सकता है।

मोबाइल फोन

मोबाइल फोन खरीदारों को अपने फोन पर ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है।

रेस्टोरेंट्स

बाहर खाना खाने महंगा पड़ने वाला है। खासकर वेतनभोगी परिवारों को ही इसका नुकसान होगा।

ब्रांडेड ज्वेलरी

ब्रांडेड ज्वेलरी भी महंगी हो जाएगी। इससे टाइटन जैसी कंपनियों को नुकसान होगा, जो पहले ही सोने के आयात की भारी-भरकम कीमत चुका रही हैं।

फार्मास्युटिकल्स

ज्यादातर फार्मा कंपनियों को ज्यादा अप्रत्यक्ष कर चुकाना होगा। आने वाले समय में इसे लेकर प्रदर्शन शुरू हो सकते हैं।

उपयोगी सामग्री

इलेक्ट्रिसिटी की बिक्री को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। कोयला-आधारित बिजली और नवीनीकृत ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों की लागत बढ़ सकती है।

तेल और गैस

एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ), हाई-स्पीड डीजल, कच्चा तेल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। यदि अप्रत्यक्ष करों को कम न किया गया तो नई व्यवस्था में निश्चित तौर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ेगी।

जीएसटी व्यवस्ता को लागू करने में आने वाली चुनौतियां

2013 में, नया गुड्स और सर्विस टैक्स नेटवर्क (जीएसटीएन) स्थापित किया गया था। इसे जीएसटी की रीढ़ बनाने के लिए आईटी का बुनियादी ढांचा तैयार करने को कहा गया था।
29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों को एक बाधारहित प्लेटफार्म पर लाना इतना आसान नहीं है। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, रिटर्न फाइलिंग, मॉनीटरिंग और सेटलमेंट की व्यवस्था को पुख्ता बनाना होगा।
समस्या यह है कि कई राज्यों में आईटी के बुनियादी ढांचे में बहुत बड़ा अंतर है। टेक्निकल दक्षता में भी काफी अंतर है। आईटी के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ राज्यों में उपलब्ध स्टाफ की दक्षता भी एक चुनौती होगी। उन्हें प्रशिक्षित करना होगा। जीएसटी में उन्हें कुशल बनाने के लिए ज्यादा वक्त भी नहीं मिलेगा।

सरकार चाहती है कि एक अप्रैल 2017 से जीएसटी लागू किया जाए। ऐसे में जीएसटीएन एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होगी।

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