Home / / 33 हजार नौकरियों के लिए सरकार 10 नए परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की योजना बना रही है

33 हजार नौकरियों के लिए सरकार 10 नए परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की योजना बना रही है

May 20, 2017


government-to-create-33,000-jobs-through-10-nuclear-reactors-hindi

भारत के घरेलू परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने स्वदेशी तरीके से फास्ट ट्रैक मोड पर 10 प्रेसराइज हेवी वॉटर रिएक्टर (पीएचडब्लूआर) का निर्माण करने की योजना बनायी है, इससे घरेलू परमाणु ऊर्जा को एक नया आयाम मिलेगा।

एनडीए सरकार अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर रही है और इसी समय केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने प्रेस के साथ बैठक में इस योजना की आकस्मिक घोषणा की।

सरकार के इस कदम से ‘मेक इन इंडिया’ की पहल को अभी तक का सबसे बड़ा प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है जिससे 33,400 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होने की संभावना है और इससे उद्योगों के लिये 70,000 करोड़ रुपये के व्यवसाय का उत्पादन होगा। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा डिजाइन किये गये इन 10 परमाणु रिएक्टरों में प्रत्येक की कुल क्षमता 700 मेगावाट होगी।

इन 10 रिएक्टरों का निर्माण चार स्थानों – कैगा (कर्नाटक), चुटका (मध्य प्रदेश), माही बंसवारा (राजस्थान) और गोरखपुर (हरयाणा) में किया जाएगा।

एल एंड टी, किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड और गोदरेज एंड बॉयस जैसी कंपनियों ने इस समाचार का स्वागत किया है, ये सभी कंपनियाँ सरकार से बड़े व्यवसाय की उम्मीद करती हैं।

घरेलू क्षमता को विकसित करने में चुनौतियाँ

यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब भारत चीन से प्रतिरोध का सामना कर रहा है, जो भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में प्रवेश करने से रोक रहा है। चीन परमाणु रिएक्टर विनिर्माण क्षेत्र पर कब्जा करने और हावी होने की महत्वाकांक्षी योजनाऐं बना रहा हैं, जैसा कि अब तक संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फ्रांस, कनाडा और रूस जैसे देश करते रहे हैं।

दिवालिएपन का सामना करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्टिंगहाउस (तोशिबा के स्वामित्व वाले) के कारण तोशिबा जैसी विशाल कंपनियों का बड़ा नुकसान हुआ है। लगभग अन्य सभी प्रमुख परमाणु रिएक्टर विनिर्माण कंपनियाँ गंभीर तनाव में हैं और अपनी लाभजनक स्थिति बनाये रखने के लिये संघर्ष कर रही हैं। चीन भी इस पर ध्यान दे रहा है। भारत सरकार ने पीएचडब्ल्यूआर के घरेलू डिजाइन के निर्माण को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। इसके तहत भारतीय परमाणु उद्योग को बढ़ावा दिया जायेगा और भविष्य में अन्य देशों के नागरिकों के उपयोग के लिये रिएक्टरों के निर्यात में सहायता की जायेगी।

भारत नाभिकीय अलगाव से जूझ रहा है

18 मई 1974, को भारत ने राजस्थान के पोखरण में एक परमाणु रिएक्टर का परीक्षण कर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। इसमें भारत ने कनाडा द्वारा दिए गए सीआईआरयूएस रिएक्टर का इस्तेमाल किया था, जो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दिए गए भारी जल पर चलाया गया था।

इस परीक्षण के परिणामस्वरूप, भारत को 34 वर्षों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी अलगाव का सामना करना पड़ा, जिसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने बिजली उत्पादन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित करने का कार्य शुरू किया। बाद में भारत ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महारत हासिल की और कम क्षमता वाले 220 मेगावाट, 540 मेगावाट और 700 मेगावाट की क्षमता वाले रिएक्टरों को विकसित किया। वर्तमान में भारत 22 परमाणु रिएक्टरों का संचालन कर रहा है, जिनमें से 18 भारी और 4 हल्के जल पर संचालित हैं।

भारी जल वाले रिएक्टर अधिक सुरक्षित, कुशल और लंबे समय तक उपयोग वाले होते हैं, क्योंकि इनमें पुन: ईंधन भरने के लिए बंद करने की आवश्यकता नहीं होती है।

भारत स्वच्छ ऊर्जा की राह पर  

वर्तमान में, भारत 6,780 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पन्न कर रहा है और अन्य 6,780 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पन्न करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। भारत छह एपी1000 रिएक्टरों की आपूर्ति के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्टिंगहाउस के साथ बातचीत कर रहा है। लेकिन दिवालिऐपन का सामना करने वाली कंपनियों के साथ, इस परियोजना का भविष्य खतरे में लग रहा है।

2016 की पहली तिमाही में, भारत में 300 जीडब्ल्यूई बिजली उत्पादन की क्षमता थी, जिसमें परमाणु ऊर्जा ने 7 जीडब्ल्यूई से कम का योगदान दिया था।

इस दीर्घकालिक लक्ष्य से यह सुनिश्चित करना है कि 2050 तक भारत की सभी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति में 25% हिस्सा परमाणु ऊर्जा से मिले।

फास्ट रिएक्टर और थोरियम ईंधन चक्र प्रौद्योगिकी के संचालन के लिए भारत को मान्यता प्राप्त है, देश को अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर नजर रखने के साथ इन्हें विकसित करने का एक अच्छा अवसर मिला है।

स्वदेशी परमाणु प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा देने के साथ सरकार ने, 10 पीएचडब्ल्यूआर की शुरूआत की घोषणा की है। भारतीय उद्योग आगामी अवसरों का एक बड़ा हिस्सा अपनाने के लिए तैयार हैं।

महत्वपूर्ण चिंताऐ – सुरक्षा और लाभ

जापान की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद, परमाणु सुरक्षा पर वैश्विक चिंता में तेजी आई है। दुनिया ने पहले ही अप्रैल 1986 में रूस की चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना देखी थी जिसके परिणामस्वरुप, भारत सरकार और उनके व्यवसाय को उच्च स्तर की सुरक्षा और बैक-अप उपायों की स्थापना के लिए अधिक परेशानी उठानी पड़ेगी।

तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र को सुरक्षा चिंताओं पर कई स्थानीय विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ रहा है ऐसा ही भारत के अन्य स्थानों पर हो रहा है। यह कुछ ऐसा है जिसे सरकार को समय पर संभालना होगा।

लाभप्रदता एक और प्रमुख चिंता का विषय है। ज्यादातर परमाणु उपकरण विनिर्माण कंपनियां विश्व स्तर पर बढ़ती महँगाई का सामना कर रही हैं, जिसके कारण उनको नुकसान उठाना पड़ रहा है। परमाणु ऊर्जा स्वच्छ है लेकिन यह उच्च लागत पर आती है, इसलिऐ किसी न किसी को इस लागत को सहन करना पड़ता है। उद्योग अपनी सफलता के लिये अन्य स्वच्छ प्रौद्योगिकियों जैसे सौर और पवन के साथ प्रतिस्पर्धात्मक लागतों को व्यवस्थित करने में लगे रहते हैं।

सौर उद्योग की लागत को प्रतिस्पर्धी स्तर तक पहुँचने के लिए दो दशकों से अधिक का समय लग गया, जहाँ तापीय शक्ति से प्रतिस्पर्धा की जा सकती है। जब तक परमाणु ऊर्जा प्रतिस्पर्धी कीमतों और सरकारी सब्सिडी के बिना वितरित होती रहेगी, तब तक देश में परमाणु ऊर्जा का भविष्य सुरक्षित नहीं हो पाएगा।

हम आशा करते हैं कि भारत इस चुनौती से ऊपर उठे, जैसा कि उसने पहले भी कई बार किया है।