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विजय रूपाणी बने गुजरात के नए मुख्यमंत्री

August 10, 2016


विजय रूपाणी बने गुजरात के नए मुख्यमंत्री

विजय रूपाणी गुजरात के नए मुख्यमंत्री

भाजपा ने 61 वर्षीय विजय रूपाणी को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है। यह एक ऐसा कदम है, जिसने राज्य के साथसाथ बाहर भी कई लोगों को चकित कर दिया। इस फैसले से सबसे ज्यादा धक्का तो नितिन पटेल को लगा है, जिन्हें एक दिन पहले तक सभी अगला मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे।

यह सवाल उठता है कि एक जैनबनिया विजय रूपाणी ने एक पाटीदार यानी नितिन पटेल को इस मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में पीछे कैसे छोड़ दिया? जवाब अमित शाह के राजनीतिक दांवपेंच में छिपा है। उन्होंने सोचीसमझी रणनीति के तहत जोखिम उठाया और ऐसा दांव चला कि उनके विरोधियों के लिए भी उसकी कल्पना करना बेहद मुश्किल था।

रूपाणी अमित शाह की पहली पसंद होने के साथ ही, कई मामलों में पटेल से आगे हैं। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में जिस आधार पर मुख्यमंत्रियों का चुनाव हुआ, उसी तर्ज पर यहां भी काम हुआ। परंपरा तो यही रही है कि जिस राज्य में जिस समुदाय की आबादी ज्यादा हो, उसके प्रतिनिधि या बड़े नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए। लेकिन इस सोच को भाजपा ने पीछे छोड़ा और रूपाणी को चुना।

जाटबहुल हरियाणा में भाजपा ने गैरजाट को मुख्यमंत्री चुना। इसी तरह झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में एक गैरआदिवासी को और मराठाओं के प्रभुत्व वाले महाराष्ट्र में गैरमराठा को मुख्यमंत्री बनाया गया। इस रणनीति ने भाजपा को काफी हद तक लाभ भी पहुंचाया। इसी तर्ज पर आगे बढ़ते हुए गुजरात में ऐसे मुख्यमंत्री उम्मीदवार को चुना गया, जो राज्य की पाटीदार आबादी से नहीं है।

विजय रूपाणी गुजरात के नए मुख्यमंत्री – जोखिम भरा जुआं या सोचासमझा कदम?

लेकिन अमित शाह का यह कदम गुजरात में सिर्फ अन्य राज्यों की रणनीति को दोहराने के लिए नहीं है। यह एक सोचीसमझी राजनीतिक गणना और जुआं है। गुजरात में भाजपा के उभार की पृष्ठभूमि और मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को समझना बेहद जरूरी है। इसके बाद ही आप समझ पाएंगे कि अमित शाह ने अगले मुख्यमंत्री के तौर पर नितिन पटेल की जगह विजय रूपाणी को क्यों चुना है।

जब नरेंद्र मोदी ने 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार ग्रहण किया था, तब उसकी पृष्ठभूमि में भाजपा की राज्य इकाई की गुटबाजी और अंदरूनी कलह थी। नरेंद्र मोदी ने सक्षम नेतृत्व और आक्रामक विकास एजेंडा की बदौलत गुजरात में पाटीदार समेत सभी समुदायों का समर्थन हासिल किया। पाटीदार राज्य का प्रभावशाली समुदाय है, जो उसके बाद के चुनावों में भाजपा के समर्थन में रीढ़ बन चुका है।

जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आए और प्रधानमंत्री बने, तो मोदी ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पाटीदार समुदाय की ही एक नेत्री आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना। पाटीदार समुदाय के पटेलों की दो उपजातियां होती हैं, लेवा और कडवा। आनंदीबेन पटेल मूल रूप से लेवा पटेल घर में जन्मीं और कडवा पटेल में ब्याही है।

पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग के साथ आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे हार्दिक पटेल ने आनंदीबेन पटेल को काफी परेशान किया। हार्दिक खुद एक कडवा पटेल हैं और नितिन पटेल भी, जिन्हें राज्य का उपमुख्यमंत्री चुना गया है। अमित शाह ने विजय रूपाणी को चुनकर एक पत्थर से दो निशाने लगाए हैं। इस कदम से उन्होंने पाटीदारों को यह संदेश भी दे दिया कि पार्टी एक स्तर तक ही उनके साथ चल सकती है। हालांकि, नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाकर यह भी जता दिया कि वह पाटीदारों का समर्थन पूरी तरह खत्म नहीं करना चाहते, जो राज्य की आबादी में 18 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं।

राजकोट के एक मधुरभाषी जैन बनिया रूपाणी को चुनने से अमित शाह को दलितों की नाराजगी दूर करने में भी मदद मिलेगी। स्वयंभू गौरक्षकों ने पिछले दिनों कुछ दलित युवकों को पीट दिया था, जिसके बाद से दलित आंदोलन कर रहे हैं। गुजरात में 2017 में राज्य विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में अमित शाह को पटेल के साथसाथ दलित समुदायों में भी सेतु बनाना होगा। दोनों ही समुदायों के समर्थन के बिना भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती। तेजी से उभर रही कांग्रेस की चुनौती का सामना करना उसके लिए मुश्किल साबित होगा। न्यूकमर आम आदमी पार्टी (आप) भी तेजी से जनाधार पकड़ रही है और उसका नुकसान भाजपा को ही होगा। भले ही जैन समुदाय की आबादी राज्य में महज एक प्रतिशत है, लेकिन वे रईस हैं और प्रभावशाली भी। ऐसे में यह कदम पार्टी के हितों को आगे बढ़ा सकता है।

विजय रूपाणी के तौर पर भाजपा के पास ऐसा चेहरा है जो ज्यादातर समुदायों और धड़ों में स्वीकार्य है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल उनके पक्ष में है, क्योंकि इस दौरान उन्होंने पार्टी में अपनी स्वीकार्यता और पकड़ मजबूत की है।

नितिन पटेल एक्सफेक्टर साबित हो सकते हैं

विजय रूपाणी को भले ही नया मुख्यमंत्री चुना गया है, 2017 के विधानसभा चुनावों में अमित शाह के लिए प्रमुख किरदार होंगे नितिन पटेल। पटेल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चढ़ने का सुनहरा मौका गंवा दिया है, लेकिन वह आने वाले समय में नई सरकार में एक्सफेक्टर रहने वाले हैं।

अमित शाह चाहते हैं कि नितिन पटेल के राजनीतिक कौशल के बूते पाटीदारों का समर्थन दोबारा हासिल किया जाए। ऐसे में अगले दोतीन महीने नितिन पटेल के साथसाथ भाजपा के लिए महत्वपूर्ण रहने वाले हैं।

हार्दिक पटेल के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन उग्र हो गया था। ऐसे में आनंदीबेन के नेतृत्व वाली सरकार आर्थिक आधार पर गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को मजबूर हुई थी। इस फैसले से पटेल कुछ हद तक अपनी मांग पर झुक भी गए थे, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया। ऐसे में पाटीदार नए सिरे से आंदोलन करना चाहते हैं। वहीं, अमित शाह चाहते हैं कि किसी भी तरह का आंदोलन अब नहीं होना चाहिए।

तो क्या नितिन पटेल ऐसे मोर्चे पर कुछ कर पाएंगे, जहां आनंदीबेन पटेल नाकाम साबित हुई? अमित शाह को लगता है कि नितिन पटेल कर सकते हैं। उनकी रणनीति यही है कि नितिन पटेल पाटीदारों को पार्टी से जोड़ने के लिए काम करें और विजय रूपाणी दलितों के साथ ही अन्य समुदायों को पार्टी से जोड़ने के अभियान में जुट जाए।

इस समय, प्रधानमंत्री मोदी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। उनके पास गुजरात का किला अमित शाह और उनकी टीम के हवाले करने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव भाजपा के लिए मुश्किल रहने वाले हैं। गुजरात में यदि हारे तो नुकसान बहुत बड़ा होगा। विजय रूपाणी यह जानते हैं और वह उन मोर्चों पर सफल होने की कोशिश करेंगे, जहां आनंदी बेन नाकाम रहीं।

देखते हैं कि गुजरात आगे भी ‘वाइब्रंट’ बना रहता है या नहीं…