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हमारे सरकारी अस्पतालों में आपातकाल को कैसे नियंत्रित किया जाता है?

August 14, 2017


Govt-hospitals_hindiउत्तर प्रदेश (यूपी) के गोरखपुर के एक सरकारी अस्पताल में 11 अगस्त को, देश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में सॉरी जैसे खेदजनक शब्द बोले जाने वाली स्थिति से निपटने तक, 48 घंटों में 30 बच्चों की मौत हो गई। यह दुखद हादसा बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में घटित हुआ है। इन मौतों की जानकारी जिला मजिस्ट्रेट राजीव रोटेला ने  मीडिया को प्रदान की लेकिन इतने कम समय में इतने सारे बच्चों की मृत्यु क्यों हो गई, इसका सही कारण बताने से वह परहेज कर गए। उन्होंने मीडिया को बताया कि अस्पताल के नवजात वार्ड में 17 बच्चों की मौत हो गई थी, उनमें से पाँच गंभीर इन्सेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित थे और 8 बच्चों की मौत जनरल वार्ड में हो गई थी।

गोरखपुर में बच्चों की मौत की बाढ़

बाद में मीडिया ने 11 अगस्त की सुबह दो बच्चों की मौत की पुष्टि की। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह तथा तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (सीएम) योगी आदित्यनाथ से मिले और 12 अगस्त की सुबह उन्होंने अस्पताल का दौरा किया। सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी भी बच्चे की मौत नहीं हुई है। उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि इस घटना के लिए जिन लोगों को जिम्मेदार पाया जाएगा उनको किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जायेगा।

बढ़ती मृत्यु दर और राजनीतिक प्रतिघात

कथित रूप से, अस्पताल में अब तक 63 बच्चों की मौत हो चुकी है और इस गंभीर मुद्दे को सत्ताधारी पार्टी पर निशाना साधते हुए राजनीतिक प्रतिघात किया जा रहा है। ऐसे मामलों पर हमेशा की तरह, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सवाल किया है कि इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी खमोश क्यों हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा है कि इस मामले में अपराधियों के विरूद्ध कठोर कार्यवाई की जानी चाहिए। यह आरोप लगाया गया है कि बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है।

चर्चाएं?

तिवारी ने कहा है कि पूरे मामले में स्पष्ट रूप से दो पक्ष हैं। उन्होंने कहा है कि अस्पताल प्रशासन, जिला प्रशासन और ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता जैसी संस्थाएं इस मामले में आपराधिक दोषी हैं। उन्होंने इस मामले में विशेष रूप से जिला प्रशासन को एकजुट कर दिया है क्योंकि उनके अनुसार, उनके अधिकार क्षेत्र में अस्पतालों और वहाँ के कामकाज की निगरानी करना उनकी ही जिम्मेदारी है। कांग्रेस प्रवक्ता ने इस मामले में मुख्यमंत्री को भी नैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने उन लोगों पर भी निशाना साधा है जिन पर आपराधिक दोषी होने का आरोप लगाया जा सकता है जो कि अनैच्छिक हत्या के रूप में दिखता है।

उपसंहार

इस मामले में पूछा जाने वाला पहला सवाल उन सभी समस्याओं की जिम्मेदारी ले रहा है जो हर गुजरते दिन के साथ भयावह स्थिति को जन्म दे रही हैं। जबकि हम सपना देख रहे हैं कि एक दिन भारत महाशक्ति के रूप में उभरेगा, लेकिन यह कुछ ऐसे बुनियादी मुद्दे है जो लगातार भारत पर हमला कर रहे हैं और शायद यही देश की तरक्की में बाधा बन रहे हैं। स्वास्थ्य लाभ जैसी चीजें हर नागरिक का मूल अधिकार हैं और सरकार का कर्तव्य है कि वह इसे जनता को मुहैया करवाए। दुर्भाग्य से, जब सामाजिक सुरक्षा में लाभ की बात की जाती है तो वास्तव में हमारी सरकारों में, किसी एक या अन्य कारणों से, हमेशा एक कमी बनी रहती है, गोरखपुर घटना इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण है।

आजकल बहुत सारे निजी अस्पताल खुल रहे हैं और ज्यादातर लोग इसका फायदा उठा रहे हैं। इन्हें कौन दोषी ठहरा सकता है? फीस अधिक होने के बावजूद इन अस्पतालों में बुनियादी ढाँचे के साथ-साथ समग्र व्यावसायिकता भी पाई जाती है और लोगों को ऐसा लगता है कि यहाँ पर उपलब्ध इन सुविधाओं से उनका बेहतर तरीके से इलाज हो सकेगा। दूसरी तरफ, सरकारी अस्पताल तीसरी दुनिया (विकासशील देश) के देश के एक ऐसे स्वास्थ्य व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कभी भी कुछ भी गलत कर सकता है।

अब सवाल यह उठता के कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए? तो इसका जवाब बहुत सरल है। इससे संबंधित सभी लोगों को आगे आकर जिम्मेदारी लेने की जरूरत है। उन्हें अपने स्थान पर यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि क्या उनके द्वारा किए जा रहे प्रयास सबसे सर्वश्रेष्ठ हैं, जो किसी के स्वास्थ्य के लिए किए जा रहे हैं। उनको काम नहीं लेना चाहिए और इसके साथ मिलने वाले लाभों के लिए अनुदान प्राप्त करना चाहिए। सरकारें हमेशा कानून और अध्यादेश बना सकती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से भारत जैसे बड़े देश में यह हमेशा संभव नहीं है कि सभी सरकारी अधिकारी और मंत्री हमेशा दौरा करते रहें और ये निरीक्षण करते रहें कि क्या सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है या नहीं।

हमेशा हर चीज के लिए प्रशासन को दोष देना आसान होता है लेकिन इस संदर्भ में यह भी समझना चाहिए कि शायद जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों को भी जवाबदेह होना चाहिए। हमें केवल प्रशासकों को ही दोषी ठहराकर चुपचाप नहीं बैठना चाहिए। हाँ मानते है कि वे भी इसके लिए जिम्मेदार हैं लेकिन वह अकेले जिम्मेदार नहीं हैं। जब किसी मशीन का हर भाग अच्छी तरह से काम करता है तो पूरी व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है और इसी तरह से सभी स्तरों में सहयोग और आपसी सम्मान आवश्यक है।