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इनकम डिक्लेरेशन स्कीम 2016

September 9, 2016


इनकम डिक्लेरेशन स्कीम 2016

इनकम डिक्लेरेशन स्कीम 2016

भारत में टैक्स नहीं चुकाने वालों या कर चोरी करने वालों के लिए काले धन का स्वैच्छिक खुलासा करने और क्षमादान की योजनाएं नई नहीं हैं। 1990 के दशक तक काला धन और कर चोरी को व्यापक पैमाने पर एक धब्बा समझा जाता था; लेकिन जब तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जून और दिसंबर 1997 के बीच स्वैच्छिक आय खुलासा योजना (वॉल्युएंटरी डिस्क्लोसर ऑफ इनकम स्कीम या वीडीआईएस) की घोषणा की, तब यह धारणा बदल गई। अघोषित आय का खुलासा करने पर कर चोरी और उस पर क्षमा कोई अपवाद नहीं रहा, बल्कि नियम ही बन गया।

इस साल भी, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एक इनकम डिक्लेरेशन स्कीम (आईडीएस), 2016 लॉन्च की है। यह स्कीम एक जून 2016 से प्रभावी है। अब इस स्कीम की अवधि खत्म होने के करीब (30 सितंबर 2016 तक चलेगी) है। आईडीसी 2016 के तहत कोई भी आयकरदाता अपने रिटर्न में ऐसी संपत्तियों या आय का खुलासा कर सकता है, जिसका उल्लेख उसने अपने पुराने आयकर रिटर्न्स में नहीं किया। इसके मायने यह है कि टैक्सपेयर चाहे तो अब तक अघोषित रही संपत्ति और आय का खुलासा कर अपनी संपत्ति को नियमित कर सकता है।

जब बात कर चोरी या विदेशों में रखी संपत्ति की आती है, तो एनडीए सरकार, खासकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ज्यादा सख्ती दिखाते हैं। केंद्रीय आम बजट 2016 में वित्त मंत्री जेटली ने चार महीने की क्षमादान योजना की घोषणा की थी, जो कर चोरों और काला धन रखने वालों के लिए थी। इसके तहत जो भी लोग सामने आएंगे उनकी अघोषित आय पर आयकर, पेनल्टी और सेस लगाने का प्रावधान योजना में रखा है। इससे आईडीएस 2016 के तहत अघोषित आय घोषित करने पर उसका 45 प्रतिशत भुगतान करना पड़ेगा।

आईडीएस 2016 की प्रमुख बातें-

इनकम डिक्लेरेशन स्कीम या आय खुलासा योजना, 2016 का उद्देश्य है- पिछले कुछ बरसों में यदि करदाता ने टैक्स सिस्टम से संपत्ति और आय छिपाई है तो उसे सामने लाना। ताकि देश में काले धन और कर चोरी पर अंकुश लगाया जा सके। आईडीएस, 2016 के तहत घोषित संपत्ति या आय का मौजूदा वित्त वर्ष (2017-18) के पूर्व के किसी भी असेसमेंट ईयर में टैक्सेबल होना जरूरी है। कोई व्यक्ति आगे आता है और वह अघोषित संपत्ति या आय का खुलासा करता है तो उसे वेल्थ टैक्स एक्ट 1957, इनकम टैक्स एक्ट 1961, बेनामी ट्रांजेक्शन (प्रोहिबिशन) एक्ट 1988 के तहत सजा या मुकदमे से छूट दी जाएगी। यदि कोई व्यक्ति आईडीएस का इस्तेमाल कर आय या संपत्ति की घोषणा करता है, जो 30 प्रतिशत टैक्स ब्रैकेट में आती है तो उसे उस पर उतना ही कर चुकाना होगा। इसके अलावा, उस व्यक्ति को 25 प्रतिशत सरचार्ज देना होगा। इसके अलावा टैक्स राशि पर 25 प्रतिशत का दंड भी चुकाना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि अघोषित आय पर उस व्यक्ति को 45 प्रतिशत राशि चुकानी होगी। यदि आईडीएस का इस्तेमाल करते हुए कोई व्यक्ति 45 प्रतिशत टैक्स, पेनल्टी और सरचार्ज का भुगतान किसी और अघोषित संपत्ति या आय से करता है तो उसे कोई राहत नहीं मिलेगी। उसके खिलाफ कोर्ट केस भी चल सकता है और उसे सजा भी हो सकती है।

सरकार की शुरुआती घोषणा के मुताबिक 30 सितंबर तक आईडीएस घोषणा करनी होगी। जिस पर समूचा टैक्स, पेनल्टी और सरचार्ज 30 नवंबर तक जमा किया जा सकता है। कुछ ही दिन पहले सरकार ने तय किया कि भुगतान की तारीख को आगे बढ़ाया जाए। साथ ही पेनल्टी को किस्तों में जमा कराने की छूट भी दे दी। अब 30 नवंबर 2016 तक जिस राशि का भुगतान करना है, उसमें से न्यूनतम 25 प्रतिशत का भुगतान करना अनिवार्य कर दिया गया है। अन्य 25 प्रतिशत राशि का भुगतान 31 मार्च 2017 तक किया जा सकता है। शेष राशि का भुगतान 30 सितंबर 2017 तक किया जा सकता है। यानी एक तरह से करदाता को राशि का भुगतान करने के लिए पूरे एक साल का वक्त मिल जाएगा।

राहत या छूट को समझना

आईडीएस के जरिए घोषणा या खुलासा करने वाले को छूट की गारंटी है। सरकार की घोषणा के मुताबिक, ‘कोई भी लोक सेवक अपने आधिकारिक दायित्व का निर्वहन करने के दौरान स्कीम में वैध खुलासा होने पर उसके पास आए दस्तावेज या रिकॉर्ड या कोई भी सूचना या कम्प्युटराइज्ड डाटा या उसका कोई हिस्सा किसी भी व्यक्ति या संस्था के सामने न रखें।’ आम भाषा में समझे तो आईडीएस के तहत जिस भी सामग्री का खुलासा होगा, उसे गोपनीय रखा जाएगा। ऐसी ‘गोपनीय सामग्री’ को कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। सिर्फ किसी अन्य टैक्स संबंधी अपराध के लिए उस सामग्री का इस्तेमाल जांच या मुकदमा चलाने के लिए किया जा सकेगा। यदि आईडीएस का इस्तेमाल किसी कंपनी या पार्टनरशिप फर्म ने किया तो डायरेक्टरों और पार्टनर्स को इस तरह की छूट की गारंटी दी जाएगी।

आईडीएस अलग कैसे है?

इनकम डिक्लेरेशन स्कीम 2016 अन्य क्षमादान योजनाओं से भिन्न है, जिन्हें पूर्व की सरकारों ने पेश किया था। सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि आईडीएस 2016 के तहत टैक्स और जुर्माने की राशि पिछली योजनाओं की तरह खुलासे पर लगने वाले कर या जुर्माने से कम नहीं है। 1951 और 1997 के बीच के बरसों में, भारत सरकार ने 10 अलग-अलग क्षमादान योजनाएं निकाली। उनका उद्देश्य काले धन को सफेद करना था। इनमें से ज्यादातर योजनाएं घोषणा करने पर टैक्स की राशि में छूट देती थी। इनमें से कुछ वीडीआईएस (स्वैच्छिक आय खुलासा योजनाओं) को सफल भी माना गया। हालांकि, उनकी वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान भी उठाना पड़ा। उदाहरण के लिए 1997 में वीडीआईएस ने 33 हजार करोड़ रुपए जुटाए, लेकिन यदि संपत्ति की घोषणा कर टैक्स वसूला जाता तो इससे दोगुना राजस्व सरकार को मिलता। इससे इमानदार करदाता बेहद नाराज भी हुए। उन्हें लगा कि उनकी इमानदारी का उन्हें नुकसान हुआ है। कर चोर कम टैक्स चुकाकर भी आसानी से बच निकले। इसका इमानदार करदाताओं पर प्रतिकूल असर पड़ा।

मौजूदा आय खुलासा योजना इस मामले में बहुत अलग है। इसमें टैक्स में कोई राहत या छूट नहीं दी गई है। बल्कि जो इस योजना का फायदा उठाएंगे उन्हें ज्यादा टैक्स चुकाना होगा। आईडीएस न केवल कर चोरों के लिए है, बल्कि उन लोगों के लिए भी है जो जाने-अनजाने वास्तविक आय नहीं बता पाए और सही कर जमा नहीं कर पाए। एक तरह से उनके लिए यह पिछली गलतियों को सुधारने का मौका है। इसमें किसी मकान या जमीन को बेचने से हुई आय पर कैपिटल गेन टैक्स न चुकाने जैसी गलतियां भी शामिल हैं।

अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री जेटली ने कहा था कि चार महीने के वक्त के बाद भी यदि कोई कर नहीं चुकाता और कर चोरी पकड़ी जाती है तो 90 प्रतिशत टैक्स वसूली के साथ ही उसे 7 साल तक की सजा भी हो सकती है।

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