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भारत-चीन सीमा तनाव – भारत खतरे का सामना करने के लिए तैयार

July 11, 2017


indo-china-dispute-hindiऐसा लगता है कि भारत,चीन की धौंस भरी युक्ति के नीचे दबने वाला नहीं है

भारत-भूटान-तिब्बत के संगम त्रि-जंक्शन के कोने पर स्थित एक क्षेत्र दोकलम में भारत-चीन आमने-सामने हैं। यह विवाद तब शुरू हुआ जब जून के पहले हफ्ते में चीन दोकलम पठार के माध्यम से सड़क का निर्माण कर रहा था, यह चीनी सैनिकों द्वारा पहला सीमा विवाद है, जिसने 1962 के युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच में चल रहे शान्तिपूर्ण माहौल को खत्म करके आमने-सामने खड़ा कर दिया है। एक महीने से भी ज्यादा समय बीत चुका है और ऐसा नहीं लग रहा है कि भारत-चीन का विवाद जल्द ही खत्म हो जाएगा। इसका अर्थ यह है कि दोकलम में गैर-संघर्षपूर्ण तरीके से तैनात भारतीय सैनिकों ने चीन के धमकाने पर आत्मसमर्पण नहीं किया, अंग्रेजी अखबार ग्लोबल टाइम्स सहित कई दैनिक चीनी समाचार पत्रों ने भारत को अक्सर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। उन्होंने भारत को 1962 में अपनी अपमानजनक हार से सबक लेने की चेतावनी भी दी है। भारत में चीनी राजदूत लुओ ज़हाओहुई ने नई दिल्ली पर शांति के लिए सैनिकों को वापस बुलाने के लिए दबाव डाला। इसके बाद भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने के लिए, चीनी सैनिकों ने तिब्बत में युद्ध अभ्यास का खेल शुरू कर दिया, जबकि चीनी मीडिया ने अपने उत्तेजक समाचार की शाखा ग्लोबल टाइम्स के नेतृत्व में चीन के व्यापारियों और चीनी लोगों को भारत से जुड़ने और भारत की यात्रा करने से बचने की चेतावनी दी है। मौजूदा तनाव को देखते हुए संभावना है कि चीनी विदेश मंत्रालय, अपने नागरिकों को भारत की यात्रा न करने की सलाह जारी कर सकता है। लेकिन भारत ने अभी तक इस घटनाक्रम पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। चीन की चुनौतियों का सामना और देश के दृढ़ संकल्प को पूरा करने के लिए भारतीय सेना के चीफ बिपिन रावत भारतीय सैनिकों की तैयारियों की देखरेख और निरक्षण करने के लिए सिक्किम यात्रा पर गए हैं। हाल ही के दिनों में, अधिक सैनिकों को भारत-चीन सीमा क्षेत्र में ले जाया गया है। वित्त मंत्रालय के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय के अध्यक्ष अरुण जेटली ने स्पष्ट कर दिया है कि 2017 का भारत 1962 के भारत से अलग है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नई दिल्ली दोकलम पर अपना सख्त रुख अपनाए हुए है।

भारत सड़क निर्माण का विरोध क्यों कर रहा है?

दोकलम, वास्तव में भूटान के क्षेत्र में पड़ता है, जोकि मुख्य विवादित स्थल है, यह मुर्गे की गर्दन की आकृति का है। दोकलम भारत की मुख्य भूमि से लगभग 20 कि.मी. दूर है। यदि भारत चीन के दबाव में आता है, जो दावा करता है कि इस क्षेत्र को ब्रिटेन और चीन के बीच 1890 समझौते के अनुसार सुलझाया गया है, नई दिल्ली एक दिन चीन के सैनिकों को भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने और देश के बाकी हिस्सों में सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा पर कब्जा करते हुए देख सकता है। पहले भी पूर्वी क्षेत्र में दो मौकों पर चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों से युद्ध भड़काने और युद्ध थोपने की कोशिश की थी। लेकिन हर बार जब वे ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें करारा जबाब मिलता है। 1967 में सिक्किम के क्षेत्र में चो ला के नजदीक तनाव (विवाद) के कारण भारतीय सैनिकों ने 300 से ज्यादा चीनी सेना कर्मियों को मार गिराया था। इसी प्रकार 1986 में चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में सुमदोरोंग चू घाटी में प्रवेश किया और सड़कों और अन्य स्थायी बुनियादी ढांचों का निर्माण किया जिसमें हेलीपैड भी शामिल था। जब भारत ने इसका विरोध किया तब चीन ने इस बात से इनकार कर दिया और बताया कि उसकी सेना ने इस क्षेत्र में प्रवेश ही नही किया। 1987 में, सुंदरजी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पूरे पूर्वी मोर्चे के साथ एक आक्रामक रुख अपनाया, उन्होंने भारतीय सेना की एक पूरी वाहिनी को जिमथांग भेजा, जिसने चीनी सैनिकों को सूमदोरोंग चू घाटी के निकटतम हेलीपैड और क्षेत्र से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। इसलिए, भारतीय सेना का खतरे के दौरान दबाव में आने का कोई इतिहास नहीं है। दूसरी ओर, भारत पर दबाव डालने के लिए, चीन ने तथ्यों को नष्ट करने की आदत विकसित कर ली है। चीन यह दोहराता रहता है कि 1890 एक समझौता है और दोकलम पठार के पास सड़क बनाने से चीनी सेना को बाधित करके, भारत ने ब्रिटेन-चीन समझौते का उल्लंघन किया है। लेकिन भूटान ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि दोकलम उसके क्षेत्र में आता है और भूटान किसी भी समझौते के तहत तथा किसी भी देश को अपने क्षेत्र के किसी भी भाग पर अधिकार नही करने देगा।  2007 के भारत-भूटान मैत्री संधि के तहत छोटे हिमालयी देशों की सुरक्षा करना भारत की जिम्मेदारी है और यह भी स्पष्ट है कि “भूटानी क्षेत्र के अंदर सड़क का निर्माण करना 1988 और 1998 के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष उल्लंघन है जो थिम्पू और बीजिंग के बीच हस्ताक्षरित है।”

भूटान के लिए भी चीन का दावा?

दोकलम पठार पर चीन का दावा भूटान के क्षेत्रीय हित के लिए खतरनाक है। चीनी सैनिकों का सामना करने के लिए भूटान के पास कोई सैन्य शक्ति नहीं है। इस दृश्य में, कुछ विश्लेषकों के अनुसार, चीन त्रि-जंक्शन पर अपनी मांग को स्वीकार करने के लिए भूटान पर दबाव डालने का प्रयास करेगा। संभावना है कि दोकलम पर अपने रुख के माध्यम से, चीन कूटनीतिज्ञ संबंधों के लिए भूटान पर दबाव डाल सकता है, जिससे थिंपू अब तक बचता रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि चीन भूटान में कूटनीतिज्ञ मिशन स्थापित करता है, तो ऐसा संभव है कि छोटे हिमालयी देशों पर भारत की लापरवाही के कारण बीजिंग इन क्षेत्रों पर अपना कब्जा कर ले।

निष्कर्ष

सिक्किम के आस-पास के हालात को सुधारने के लिए भारत को राजनयिक तरीकों से प्रयास करना चाहिए। हालांकि, भारत को दोकलम पठार से अपनी सेना वापस बुलाए बिना ऐसा करना चाहिए। दुनिया इस मामले को गंभीरता से देख रही है। इसलिए यह भारत के लिए एक इज्जत का मामला होगा कि वह चीन को अपने खिलाफ कोई कदम उठाने का अवसर न दे।