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भारत में 5 सबसे खराब मानव निर्मित आपदाएँ

July 7, 2018


भारत में 5 सबसे खराब मानव निर्मित आपदाएँ

वर्षों से भारत ने विभिन्न आपदाओं को झेला है। जिसके कारण देश के कई लोगों ने अपनी जिन्दगी खो दीं। जबकि मानव के हाथों में प्रकृति की गतिविधि नहीं है। लेकिन इसके द्वारा लायी गई आपदाओं के प्रभाव को कम करना निश्चित रूप से मानव के हाथ में है।

परन्तु सबसे बड़ी चिंता का विषय मानव निर्मित आपदाएं हैं जो मानवीय लापरवाही, उदासीनता, दूरदर्शिता और नियोजन की भारी कमी का परिणाम हैं। जिससे बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की मृत्यु हुई है। अब इन आपदाओं का निवारण होना आवश्यक है।

यह देखना भयावह है कि सरकार प्रत्येक त्रासदी से कुछ भी नहीं सीखती है। और सरकार आपदाओं के बाद मानव जीवन के लिए थोड़ी चिंता करती है या मुआवजा दे देती है। जिससे मानव जीवन सुचारु रुप से आगे बढ़ने लगता है। लेकिन अकेले सरकार को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। आखिरकार हम लोग ही हैं जो सरकार को थोड़ी जवाबदेही या दंड के साथ आगे बढ़ने की इजाजत देते हैं। जो राजनीतिक, नौकरशाही या व्यापारिक स्तर पर सत्ता में हैं, उनको जवाबदेही के लिए समय दे देते हैं।

भारत में 5 सबसे खराब मानव निर्मित आपदाएँ  का विवरण यहाँ दिया जा रहा है।

1.भोपाल गैस त्रासदी

भोपाल में 2-3 दिसंबर सन् 1984 की रात जो लोग वहाँ मौजूद थे, वे जब भी उस रात का स्मरण करते हैं तो काँप जाते हैं। उस रात को यूनियन कार्बाइड के स्वामित्व वाले कारखाने से विषैली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस लीक हो गई थी। यह गैस कारखाने के आसपास घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई।

लोग जाग गए और बाहर सांस लेने के निकले जिससे बाहर मौजूद घातक गैस सांस के द्वारा शरीर में पहुँच गई। कई लोग तो नींद में ही मर गए। जबकि कुछ लोग अंधे हो गए। कई लोग अधिक समय तक मानसिक बीमारियों से पीड़ित रहे। जबकि कई लोग आज भी मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं।

विश्व स्तर पर यह सबसे खराब रासायनिक आपदाओं में से एक थी। जिसके परिणामस्वरूप 10,000 (वास्तविक संख्या विवादित है) से अधिक लोगों ने अपना जीवन खो दिया और 5.5 लाख से ज्यादा लोग अपाहिज हो गए।

यह त्रासदी कारखाने में मानव त्रुटि और खराब पर्यवेक्षण का परिणाम थी। दुर्भाग्य से, भारत में कई उद्योग अभी भी प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार सुरक्षा प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन पर बहुत कम सरकारी दबाव के साथ संचालित किये जा रहे हैं।

2.एएमआरआई अस्पताल, कोलकाता की आग

वो वक्त कोलकाता में दिसम्बर की शुरुआत का था, जब कोलकाता के ढक्कुरिया इलाके में एएमआरआई अस्पताल के तहखाने में आग लग गई थी। यह हादसा 9 दिसंबर 2011 की सुबह लगभग 9 बजे हुआ था। जब ज्यादातर मरीज और अस्पताल के कर्मचारी सो रहे थे।

आग ऊपर से फर्श पर तेजी से फैल रही थी। मरीज वार्ड के अंदर फंस गए और कोई भी निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था। क्योंकि सभी खिड़कियों में जाली लगी हुई थी। साथ में तेजी से फैलने वाला धुआँ आग की तुलना में अधिक नुकसान पहुँचा रहा था।

प्रोटोकॉल की वजह से अस्पताल के कर्मचारी धीमी गति से प्रतिक्रिया कर रहे थे। और तुरंत अग्निशमन विभाग को बुलाया गया।

पहली प्रतिक्रिया के रूप में अस्पताल के बगल में रहने वाले झुग्गी वासियों ने रोगियों को बचाने की पहल शुरू की थी, जो ग्रिल को तोड़कर खिड़कियों के माध्यम से अस्पताल तक पहुँचे और कई रोगियों और कर्मचारियों को बचाया। अंत में अस्पताल के अंदर 160 व्यक्तियों में से 89 लोगों ने अपना जीवन खो दिया था। जिनमें से 85 मरीज और 4 कर्मचारी सदस्य थे।

यह प्रबंधन और परिचालन कर्मचारियों की लापरवाही का एक उत्कृष्ट मामला था, जिन्होंने सरकार द्वारा निर्धारित किए गए अधिकतम अनिवार्य अग्नि सुरक्षा मानदंडों को लागू नहीं किया। तात्पर्य यह है कि स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रियाओं की कमी की वजह से इस तरह की आपात स्थितियां पैदा होती हैं।

कुछ लोग सबक सीख गए हैं। क्योंकि कोलकाता और अन्य शहरों में कई अस्पतालों और सार्वजनिक भवनों में संभावित टिंडर बॉक्स लगे हुए हैं।

3.गिरीश पार्क कोलकाता फ्लाईओवर ढहना

हाल ही में 31 मार्च को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर मानव निर्मित आपदा हुई। जब निर्माणाधीन विवेकानंद रोड फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिरीश पार्क क्रासिंग पर गिर गया। जिसमें 18 लोगों की मौत हो गई और 78 से ज्यादा लोग घायल हो गए। कई लोगों के अवशेष अभी भी नीचे दफन हैं। 2.2 किलोमीटर के फ्लाईओवर पर निर्माण कार्य 2009 में शुरू हुआ था। लेकिन समय सीमा निकल जाने के बाद भी निर्माण कार्य आधूरा रह गया। बताया यह गया है कि परियोजना लागत में सालाना काफी बढ़ोतरी हुई थी और बिल्डर ने धनराशि जारी करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार पर दबाव डाला था। जो कि राशि या समय सारिणी के अनुसार उपलब्ध नहीं हुआ।

मुख्य रूप से परियोजना को पूरा करने में देरी का कारण कई भू-अधिग्रहण याचिकाएँ थीं। जिनके साथ सरकार को निपटना पड़ रहा था। लेकिन पिछले कई महीनों से परियोजना को पूरा करने के लिए आईएवीआरसीएल के सैद्धांतिक ठेकेदार, हैदराबाद के एक निर्माता पर राज्य सरकार दबाव डाल रही थी।

हालांकि केवल एक विस्तृत तकनीकी जाँच इस त्रासदी के पीछे कारणों का खुलासा करेगी। लेकिन इसमें सभी हितधारकों की दोषिता पर कोई संदेह नहीं है, जो परियोजना को पूरा करने की कोशिश में सावधानी और तकनीकी तर्क रखता है।

अब यह निष्कर्ष निकला है कि खराब डिजाइन और खराब निर्माण सामग्री ने इस त्रासदी के लिए योगदान दिया। लेकिन यह स्पष्ट है कि अधिकारियों की ओर से पर्यवेक्षण की कमी ठेकेदार के नेतृत्व के रूप में निर्माण प्रगति की गुणवत्ता की निगरानी पर ढील दी गयी थी।

जबकि यह फ्लायओवर ढहना कोलकाता और भारत में पहली बार नहीं था, क्या हम विश्वास से कह सकते हैं कि यह आखिरी होगा?

4.ललिता पार्क भवन दुर्घटना

15 नवंबर 2010 को पश्चिम दिल्ली के ललिता पार्क में एक पाँच मंजिला आवासीय भवन भीड़ भरे इलाके में ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। जिसमें 66 लोगों की जान गई और 80 लोग घायल हो गए। ढहने का कारण निर्माण की खराब गुणवत्ता अतिरिक्त अवैध भू-तल और शहर में आयी बाढ़ को जिम्मेदार ठहराया गया। सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार दुर्घटनाग्रस्त इमारत में योगदान दे रहे थे।

इस घटना ने एक बार फिर अवैध निर्माण और मौजूदा इमारतों की खराब निगरानी के प्रति आधिकारिक उदासीनता को उजागर किया है जो कि खतरा पैदा कर रहे हैं।

इसी तरह की घटनाएँ शहरों में नियमित अंतराल पर होती रहती हैं, जिसके बाद भी किन्हीं निवारक उपायों को अपनाया नहीं गया है।

5. महाकुंभ मेला इलाहाबाद में भगदड़ और इसके बाद

गरीब लोगों के प्रबंधन और बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाले आयोजनों की निगरानी और प्रबंधन के लिए अप्रियापत बुनियादि ढाँचे की वजह से भगदड़, विशेष रूप से धार्मिक अवसरों के दौरान कुछ सबक सिखाने के साथ साथ,भारत मे शाप बन गयी है।

3 फरवरी 1954 को स्वतंत्रता के तुरंत बाद इलाहाबाद में महाकुंभ के अवसर पर सबसे खराब घटना हुई। परिणामस्वरूप भगदड़ में 820 लोगों की मौत हो गई। और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।

इसी तरह 26 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के जिले सातारा के वाई में मधेर देवी मंदिर में एक घटना हुई। परिणामस्वरूप भगदड़ में 350 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे।

कई वर्षों में कई अन्य भगदड़ों के घातक परिणाम सामने आए हैं।

ऐसे और कितने हादसों के बाद विभिन्न प्रदेशों के अधिकारियों की नींद खुलेगी और वह अपने प्रदेश के प्रति अपना उत्तर-दायित्व निभाएंगे और ऐसे हादसे नही होने का आश्वासन देंगे।