भारत की सबसे बड़ी बैंक चोरियाँ
ऐसा कहा जाता है कि ईमानदारी से पैसा कमाना कठिन होता है। चोरी और डकैती भले ही आसान हों, मगर अधिकतर मामलों में अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और चोरी की वस्तुएं बरामद कर ली जाती हैं। बैंकों के मामले में, लूटने या छीनने को प्रोत्साहित करने के लिए बैंकों में अधिक मात्रा में धन उपलब्ध होता है, लेकिन सुरक्षा उपाय भी बहुत कड़े होते हैं। हालांकि बैंक डकैतियों और चोरियों के मामलों में दो कारणों की वजह से मीडिया को सूचना नहीं दी जाती है- पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों द्वारा लुटेरों को गिरफ्तार करने के लिए बनाई गई कोई भी योजना मीडिया रिपोर्ट की वजह से बाधित हो सकती है। साथ ही, भारत जैसे संवेदनशील देश में यह बैंकिंग की मुख्य शाखा में धन के आवागमन के लिए बैंकों द्वारा विश्वसनीयता बनाए रखने के प्रयासों में बाधा है और दूसरा कारण यह है कि संभावित चोर और लुटेरों को सुरक्षा विवरणों और पूर्व योजनाओं तक पहुँचने से रोकने के लिए ज्यादातर बैंक चोरियों की सूचना मीडिया को नहीं देते। यहाँ नीचे 6 बैंक डकैतियों की सूची दी गई है जिनकी सूचना मीडिया को या तो इस्तेमाल की जाने वाली विधियों या अभूतपूर्व रकम की वजह से दी गयी थी।
दिल्ली कैश वैन डकैती
दिनाँक: 24 नवंबर 2015
दिल्ली में इसको सबसे बड़ी चोरी कहा गया है, 24 नवंबर 2015 को एक्सिस बैंक में तैनात नकदी वैन चालक 22.5 करोड़ रुपये की नकदी के साथ एटीएम को दोबारा से भरने के लिए निकला। यहाँ वैन विकासपुरी शाखा से पैसे ले रही थी और उसके बाद वैन चालक एक गार्ड के साथ वैन लेकर निकला, कुछ दूर जाने के बाद वैन चालक ने शौच का बहाना बनाकर वैन को रोक दिया और नकदी का बक्सा लेकर फरार हो गया। दिल्ली पुलिस ने तुरन्त कार्रवाई शुरू कर दी और ड्राइवर को तीन दिनों के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया। लगभग सभी रूपये बरामद कर लिये। चालक ने कपड़े और घड़ी खरीदने के लिए कुछ रूपये इस्तेमाल कर लिए थे। वैन चालक को गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन के निकट एक गोदाम से गिरफ्तार किया गया था।
सोनीपत बैंक रॉबरी
दिनांक: 27 अक्टूबर, 2014 (खुलासा हो गया)
अक्टूबर 2014 के आखिरी सप्ताह में, एक सहासी चोर हरियाणा के सोनीपत की शाखा गोहाना में स्थित पंजाब नेशनल बैंक के अन्दर बड़ी चालकी से छुप गया जिससे वह उसी में बन्द हो गया। चोर ने लगभग 100 करोड़ रुपये चोरी किए और 89 लॉकर साफ कर दिए। वास्तव में उसका काम करने का ढंग बहुत ही आश्चर्यजनक था। लुटेरों ने बैंक के स्ट्रॉँग रूम से 2.5 फुट चौड़ी और 125 फुट लंबी सुरंग खोदने में कामयाबी हासिल कर ली और यह कार्य किसी भी प्रकार की आवाज के बिना किया, किसी को तनिक भी संदेह नहीं हुआ। हालांकि, कुछ दिनों के भीतर पुलिस द्वारा इस मामले का खुलासा करने के बाद अधिकतम सोना बरामद कर लिया गया। बैंक चोरी के मुख्य आरोपी महिपाल ने आत्महत्या कर ली और उसके बाकी साथी सुरेंद्र, बलराज और सतीश को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। इस डकैती की कार्यप्रणाली के कारण इस पर अधिक ध्यान दिया गया- बहुत ही सावधानीपूर्वक चोरों ने लंबे समय से सुरंग को बिजली के तार, टेलीफोन, या पानी की लाइन को बिना छेड़छाड़ के खोदा था। चोरी होने तक किसी को इस सुरंग का पता नहीं लगने दिया।
कार्बेनाक ऑनलाइन चोरी
दिनांक: 2013
ऑनलाइन कार्बेनाक चोरी या साइबर चोरियों की श्रृंखला भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। न ही देश में साइबर बैंकिंग प्रौद्योगिकी के उपयोगकर्ताओं के बीच आतंक को रोकने के लिए मीडिया में इसकी सूचना दी गयी थी। हालांकि, ऑनलाइन डकैतियों का पैमाना चौंका देने वाला है। 2013 की शुरुआत में, ऑनलाइन धोखेबाज लोगों के कार्बेनाक समूह ने विभिन्न देशों में कई बैंकों को लक्षित करना शुरू कर दिया और इन बैंकों से धन हस्तांतरित करना शुरू कर दिया। इनके निशाने पर संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी, भारत, रूस, कनाडा, हांगकांग, फ्रांस, स्पेन, नॉर्वे और कई अन्य देशों के बैंक शामिल थे। बैंकिंग सिस्टम स्व-निर्मित विकसित वायरस से संक्रमित होते थे, जिससे धोखेबाज लाखों डॉलर का हस्तांतरण कर लेते थे। धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए बैंकों को लगभग 2-4 महीने लग गए, ऐसा माना जाता है कि इन लूट का कुल मूल्य 1 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है। 2013 की अन्तिम मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, साइबर अपराधियों के गिरोह की जाँच करने और पकड़ने के लिए कैस्परस्काई लैब, इंटरपोल और यूरोपोल के अधिकारियों ने एक टीम बनाई थी।
एनसीआर में लगातार बैंक चोरियाँ
दिनांक: 2008 और 2009 के बीच
2008 और 2009 के बीच लुटेरों ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की गुड़गाँव शाखा से लगभग 1.5 करोड़ रूपये लूटे और गजियाबाद में एसबीआई की गाजियाबाद शाखा में एक असफल प्रयास रहा और एक अन्य चोरी ओरिएंटल बैंक की हरिद्वार शाखा में की थी। उपरोक्त चोरियों के साथ इस लूट श्रृंखला के पीछे उत्तर भारत के प्रतिबंधित बैंक समूह खलिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) का हाथ था। इनमें से ज्यादातर पंजाब पुलिस के अधिकारियों की वेशभूषा में केसीएफ सदस्यों द्वारा लाए थे। इस मामले का खुलासा 2009 में हुआ जब दिल्ली की एक विशेष टीम ने बलजिन्दर सिंह, राज कुमार शर्मा, सचिन कुमार और गजेंद्र सिंह को एक विस्तृत जाल बिछाकर गिरफ्तार किया था।
चेलेम्ब्रा बैंक चोरी
दिनांक: 30 दिसंबर, 2007
बॉलीवुड फिल्म धूम से प्रेरित होकर, केरल के कोझिकोड के चार लोगों ने केरल के मलप्पुरम जिले की दक्षिण मालाबार ग्रामीण बैंक की चेलेम्ब्रा शाखा से 80 किलो सोना और 80 लाख रुपए चुरा लिए। इस चोरी के वास्तविक मूल्य के बारे में 8 करोड़ 25 लाख रुपये का अनुमान लगाया गया है। वनियमपुरक्कल जोसेफ उर्फ बाबू और उसके तीन सहयोगियों ने उस इमारत के भूतल पर स्थित रेस्तरां में एक कमरा किराए पर लिया, जिसके ऊपर बैंक स्थित था और रविवार की रात छत के माध्यम से एक छेंद बनाकर पहली मंजिल पर स्थित स्ट्रांग रूम में घुसकर चोरी की। कई बाधाओं के बावजूद, पुलिस ने लुटेरों का पता लगा लिया और खोए हुए सोने और नकदी में से अधिकांश को पुनः प्राप्त कर लिया और अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया।
केसीएफ बैंक चोरियाँ
दिनाँक: 12 फरवरी 1987
इस डकैती के लगभग 3 दशकों के बाद भी लोग इसके बारे में चर्चा करते हैं। खालिस्तान कमांडो फोर्स के सदस्यों ने खालिस्तान आंदोलन के दौरान पंजाब नेशनल बैंक के मिलर गंज शाखा (लुधियाना) से लगभग 5.7 करोड़ रूपए चोरी कर लिये। उस समय, यह राशि एक अभूतपूर्व राशि थी और यह लूट भारत की सबसे बड़ी बैंक डकैती के रूप में जानी जाने लगी। हालाँकि, केसीएफ के सदस्यों ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए कहा कि उनका किसी को चोट पहुँचाने या मारने का इरादा नहीं था बल्कि उन्होंने हथियारों और गोला-बारूद के लिए बैंक को लूटा। लगभग 25 वर्षों के बाद, 2012 में, मुख्य आरोपियों में से 12 को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। इस डकैती में शामिल अन्य दस लोग हिंसा और आतंकवाद की घटनाओं में मारे गए थे।