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‘गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’ – बुक रिव्यु

November 28, 2018


‘गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' – बुक रिव्यु

हाल ही के वर्षों में गांधी जी को या तो ऊंचे दर्जे के पाखंडी या संगत विरोधी स्थिति के लिए महान अपराधियों में से एक माना गया है। विशेष रूप से उनके जाति और अन-स्पर्शशीलता के विचारों के लिए। हालांकि, गांधी के अपने शब्दों में उनकी निष्ठा निहित है, “मेरा लक्ष्य किसी दिए गए प्रश्न पर मेरे पिछले वक्तव्यों के साथ सुसंगत होना नहीं, बल्कि सत्य के साथ संगत होने के कारण यह किसी भी क्षण मेरे सामने उपस्थित हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप मैंने सच्चाई से सच्चाई को विकसित किया है।“  यह न्यानुसार भी है! वे सैद्धांतिक रूप से वर्णाश्रम धर्म, जो कि जाति व्यवस्था का विचारधारात्मक आधार है, के समर्थक थे, परंतु व्यावहारिक तौर पर उन्होंने वर्णाश्रम धर्म की सभी वर्जनाओं को तोड़ दिया था। इस तरह से महात्मा गांधी पंथ, जाति, परंपरा और समुदाय के बीच होने वाले संवाद का समझौता करने वाले एक महान व्यक्ति थे।

गांधी: द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’ 1914-1918 नामक यह पुस्तक रामचंद्र गुहा की गांधी बिफोर इंडिया नामक पुस्तक की अगली कड़ी है, जिसमें गांधी के प्रारंभिक वर्षों के बारे में लिखा गया था। गुहा की इस पहली पुस्तक में, इंग्लैंड में गांधी जी के अध्ययन, दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष से लेकर जनवरी 1915 में भारत में उनके आगमन तक का विवरण दिया गया है। इस पुस्तक में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय गोखले की राजनीतिक कार्यवाही को भी दर्शाया गया है। इसमें गांधी जी के द्वारा देश भर की यात्राओं के साथ-साथ जनता की परिस्थितियों में जागरूकता की उनकी शुरुआत के बारे में भी जानकारी दी गई है। इसमें गांधी जी द्वारा किसानों और मजदूरों के आंदोलनों में सफलता प्राप्त करने के लिए कुशलता पूर्वक किए गए इनके अपने उद्यमों के बारे में भी बताया गया है। इसके साथ ही यह भी दिखाया गया है कि कैसे गांधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक सार्वजनिक आंदोलन में बदल दिया था और इसके परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वास्तव में जन-आधारित पार्टी में परिवर्तित हो गई थी। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के पूरे विद्रोह के साथ विभाजन, सामाजिक सुधार में गांधी जी के द्वारा किए उद्यमों तथा इनके व्यक्तिगत प्रयोग और शासकों के साथ सामूहिक संघर्ष तथा ज़िंदादिल पेंडुलम, आदि सभी उत्साहजनक बातों को विस्तार से समझाया गया है।

स्रोतों की विस्तृत विविधता जिसे लेखक ने वास्तविकता में संदर्भित किया है और इस पुस्तक में महात्मा गांधी की कहानी एक व्यापक रुप से फिर से सुनाई गयी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांधी जी ने, अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में फैले दुनिया भर में कई लेखकों/ बुद्धिजीवियों/ पुरोहितों और कार्यकर्ताओं पर अपना पूरा असर और प्रभाव डाला है। आप उनसे नफरत या प्यार तो कर सकते हैं लेकिन उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते। उनका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उन्होंने 1924 में केवल एक बार आईएनसी की अध्यक्षता की लेकिन कभी भी सार्वजनिक कार्यालय नहीं रख। गांधी जी दो दशकों से भारतीय लोगों के सबसे महत्वपूर्ण प्रतिनिधि थे। वे उत्पीड़न और अपहरण की शक्तियों के खिलाफ शांति, सद्भाव, अहिंसा और पर्यावरणीय स्थिरता के प्रतीक बन गए थे।

हालांकि पुस्तक अपने उद्देश्य और आकार के पैमाने पर प्रभावशाली और श्रेष्ठ है, लेकिन कुछ ऐसा लगता है कि इसमें गहनता और ज्ञान विस्तार का बहुत अभाव है। लेकिन इसकी महान विचारधारा और दार्शनिक संदर्भ में गांधी के निजी और सार्वजनिक जीवन के आस-पास की घटनाओं को रखने के लिए यह सीमित प्रयास है। गांधीवादी विचारों की एक पूरी किताब हैं जिसपर शिक्षाविदों और विचारकों द्वारा गंभीरता पूर्वक कार्य किया जा रहा है। अफसोस की बात यह है कि इस पुस्तक में इस वाद-विवाद का विवरण बुरी तरह से छूटा हुआ है। इसके अलावा, इस पुस्तक की समीक्षा में टिप्पणी गांधी के उल्लेखनीय लेखक फैसल देवजी ने की है यह पश्चिमी दर्शकों से अपील करने के इरादे से कुछ तरीकों से है। यह नहीं कहना है कि दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ उनकी बातचीत के पहलू स्फूर्तिदायक और अंतर्दृष्टि न होकर भी भी अतिसंवेदनशील हैं। इसके अलावा, लेखक के पास धारणाओं और झुकाव के लिए एक और मजबूत प्रवृत्ति है जो विशेषरुप से सरलादेवी चौधरानी के साथ इनके रिश्ते के संबंध में इनकी इच्छापूर्ण सोच का के बारे ब्याख्या करती है। इस प्रकरण के साथ उदारतापूर्वक अविवाहित गांधी के जीवन में नाटकीय रूप से महान बार्ड टैगोर की भतीजी के साथ रोमांटिक भयावहता के मुठभेड़ के साथ छेड़छाड़ की गई। लेखक, गांधी के ब्रह्मचारी जीवन को नाटकीय रूप से महान कवि टैगोर की भतीजी के साथ रोमांटिक दृश्य को लेकर निश्चित रूप से भ्रमित है।

मैं लेखक द्वारा किए गए कुछ निर्णयों के साथ हूँ जिसमें कुछ आपत्तियां हैं। निस्संदेह, जिन्ना भारत के मुसलमानों का सबसे महत्वपूर्ण नेता हो सकता है लेकिन उनके नेतृत्व को केवल मुसलमानों के मताधिकार द्वारा प्रमाणित किया गया था (मतदाता वयस्क आबादी का केवल 14% शामिल था)। अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों के साथ सीटों में उनका नेतृत्व निर्विवाद था। लेकिन इसी के साथ यह अनारक्षित सीटों के बारे में और न ही बड़े पैमाने पर भारत के मुसलमानों की संख्या को लेकर कुछ कहा जा सकता है। इसके अलावा, लॉर्ड माउंटबेटन को उपमहाद्वीप के लिए दिखाई गई भलाई को तटस्थ और निष्पक्ष, सहानुभूति के रूप में चित्रित किया गया है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिंए कि माउंटबेटन कोई संत नहीं था और उसने आसानी से दोनों पक्षो को एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल किया। उन्होंने ‘फूट डालो शासन करो’ के समय-परीक्षण साम्राज्यवादी दांव-पेंच के आगे भारत के विभाजन को बढ़ा दिया।

गांधी एकमात्र नेता रहे हैं जिनका निजी जीवन उनके सार्वजनिक जीवन के रूप में ज्यादा रुचिकर रहा है। ब्रम्हचर्य के साथ-साथ शाकाहारी होने, गांव के नवीनीकरण और कताई के  प्रति जुनून और अपने विचारों के लिए अच्छी तरह से जाने जाते हैं। राजनीतिक आजादी के रूप में ‘स्वराज’ के लक्ष्य में भी ये उतने ही महत्वपूर्ण थे। अपनी बड़ी भतीजी मनु गांधी के साथ उनके द्वारा किए गए ‘ब्रह्मचर्य‘ के परीक्षण की वजह से वह अपवादो में रहे। लेखक ने इस प्रकरण को बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से शोध करके प्रस्तुत किया है। इस घटना को लेकर क्रोध करने के दौरान इस महान महान मूर्खता, जिसका अनुसरण गांधी ने सावधानी बरतने के बावजूद किया, को कम करने के कारणों की जांच की कोशिश की गई है। हालांकि, कम से कम हमें इस बात की पहचान बाद में तो हुई कि गांधी एक आदरणीय वृद्ध पुरुष थे लेकिन पवित्र नहीं। उनमें उत्कृष्ट गुण थे लेकिन कुछ गंभीर दोष भी थे।

संक्षेप में कहा जाए तो गांधी एक संत / महात्मा तो थे, लेकिन बैरागी नहीं थे। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने स्वयं को सार्वजनिक जीवन की तरह जीने से नहीं रोंका। लेकिन वास्तव में, वे भारतीयों के राजनीतिक और व्यक्तिगत विकास दोनों में ही पूर्ण रुप से शामिल थे। गुहा ने अपने अंतिम शब्दों के साथ गांधी के विरासत को संक्षेप में सारांशित किया है – “सत्याग्रह के साथ अंतर्निष्ठा सद्भाव, पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी, ब्रिटिश साम्राज्य का अंत और अस्पृश्यता के लिए न्याय करना, कार्य के लिए काफी हद तक सफल खोज तथा सच्चाई, जो गांधी की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि है। “अब हम जो कष्टमय समय में रहते हैं, उसके लिए अपनी विरासत को नवीनीकृत करने और पुनर्जीवित करने के लिए पहले से कहीं अधिक समय है।

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गांधी: द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' 1914-1918 नामक यह पुस्तक रामचंद्र गुहा की गांधी बिफोर इंडिया नामक पुस्तक की अगली कड़ी है, जिसमें गांधी के प्रारंभिक वर्षों के बारे में लिखा गया था। गुहा की इस पहली पुस्तक में, इंग्लैंड में गांधी जी के अध्ययन, दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष से लेकर जनवरी 1915 में भारत में उनके आगमन तक का विवरण दिया गया है।
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