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हड़प्पा सभ्यता के पतन के संभावित कारण

May 31, 2017


harappa-civilization-hindiदुनिया की सबसे आकर्षक और पहली शहरी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता थी, जो कि सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पास विशाल मैदानी इलाकों में विकसित हुई थी। हड़प्पा सभ्यता 2600 से 1900 ईसा पूर्व की है जो अब पाकिस्तान और भारत के भूभाग में स्थित है। इस सभ्यता में 50 लाख से अधिक की आबादी, अच्छी तरह से विकसित व्यापार प्रणाली, नगर, विकसित नालियाँ, धातु विज्ञान तकनीकि और कई अन्य गणितीय और वैज्ञानिक उपलब्धियाँ थीं।

लेकिन समय के साथ, हड़प्पा की सभ्यता में कमी आ गई। उदाहरण के लिए, इस सभ्यता का प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो पहले लगभग 85 हेक्टेयर भूमि पर विकसित था लेकिन बाद में केवल तीन हेक्टेयर तक ही सीमित रह गया। किसी वजह से हड़प्पा की जनसंख्या ने आसपास और बाहरी शहरों और स्थानों जैसे पंजाब, ऊपरी दोआब, हरियाणा आदि को जाना शुरू कर दिया। लेकिन हड़प्पा सभ्यता के पतन की वजह अभी भी एक रहस्य है।

हड़प्पा सभ्यता के पतन के बारे में प्रस्तावित सिद्धांत-

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन की वजह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, क्योंकि वर्तमान समय में कोई विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। पतन के बारे में हर निष्कर्ष इतिहासकारों के अनुमान पर आधारित है हालांकि पतन का कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन खुदाई के माध्यम से यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन 1800 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व के बीच हुआ था।

यह आमतौर पर माना जाता है कि अगले बसने वाले आर्य लोग थे। वे कुशल योद्धा थे, इसलिए हो सकता है उनके हमले ने हड़प्पा सभ्यता के विनाश को जन्म दिया हो। यहाँ तक ​​कि आर्यों ने अपने महाकाव्यों में महान शहरों पर अपनी जीत का वर्णन किया है। सिंधु घाटी की खुदाई से प्राप्त मानव अवशेष मृत्यु के कुछ हिंसक कारणों को इंगित करते हैं। कई इतिहासकार इस सिद्धांत पर विश्वास नहीं करते हैं, उनका कहना है कि आर्य लोग किसी भी ऐसे हमले में शामिल नहीं हो सकते हैं।

इस पतन का एक कारण, विशाल जलवायु परिवर्तन या प्राकृतिक आपदा के सिद्धांत ने विश्वसनीयता हासिल की है, यह पता चला है कि लगभग 2000 ईसा पूर्व सिंधु घाटी में कुछ प्रमुख जलवायु परिवर्तन होने लगे थे। इन परिवर्तनों के कारण मैदानों और शहरों में बाढ़ आ गई थी। इतिहासकारों ने इस सिद्धांत को साबित करने के लिए साक्ष्य दिये हैं। हड़प्पा सभ्यता के ज्यादातर शहर ऐसी स्थिति में पाए गए हैं जैसे कि पुराने शहर नष्ट हो चुके थे और फिर उनका पुनर्निर्माण किया गया।

उदाहरण के लिए, शहरों को पहली बार बहुत सावधानी से बनाया गया था, लेकिन इसके पुनर्निर्माण में टूटी ईंटों का इस्तेमाल किया गया था और पुनर्निर्माण के दौरान उचित पानी निकासी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं में से एक उचित नाली व्यवस्था थी।

फिर, शहरों की औसतन वर्षा में गिरावट आई, जिसने रेगिस्तान जैसी स्थिति पैदा कर दी। जिसने कृषि को प्रभावित किया और अधिकांश व्यापार इसी पर निर्भर था। इस कारण पूरी सभ्यता के नष्ट होने से सिंधु घाटी के लोग कुछ अन्य स्थानों पर जाने लगे थे। कुछ विद्वानों के अनुसार, पतन का कारण घेंगर-हरका नदी के जलमार्ग का परिवर्तित हो जाने से शुष्कता में वृद्धि भी है। लगभग 200 ईसा पूर्व, जिस स्थान पर सिंधु घाटी की सभ्यता के क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा हो गई थी वहाँ आज भी एक रेगिस्तान है।

कई सिद्धांत तैयार और प्रदान किए गए हैं, लेकिन सभी सिद्धांतों की एक प्रकार की आलोचना की गयी। पुरातात्विक साक्ष्य यह साबित करते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का कोई अचानक पतन नहीं हुआ था, बल्कि यह एक समय अन्तराल में धीरे- धीरे कमजोर हुआ अन्य सभ्यताओं के साथ मिश्रित हो गया।