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जीका वायरसः इतिहास, तथ्य, लक्षण, रोकथाम और उपचार

May 31, 2017


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पिछले हफ्ते, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषणा की है कि भारत में जीका संक्रमण के तीन मामले पाए गए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा इस दावे की पुष्टि की गई थी। ये तीनों मामले देश में इस तरह के संक्रमण के पहले मामले हैं। इसकी सूचना गुजरात में अहमदाबाद (बापूनगर क्षेत्र) से मिली और नवंबर 2016 और फरवरी 2017 के बीच इसे पाया गया। डेंगू परीक्षण के लिए नियमित निगरानी के दौरान तीनों मामलों का पता चला था।

आइए हम जीका वायरस से उत्पन्न खतरे को गंभीरता से समझने के लिए, पूरी तरह से एक नजर डालें। जीका मच्छर जनित वायरस है जो एडीज मच्छर के काटने से मनुष्यों में फैलता है यह मच्छर दिन के दौरान सक्रिय रहता है। इसके प्रभाव का अध्ययन 1947 के समय में जीका को सबसे पहले जानवरों के समुदाय (बंदरों) में पता चला, जब पूर्व अफ्रीका में युगांडा के जंगल में यह संक्रमण फैला था। 1952 में मनुष्यों में पहला जीका संक्रमण पाया गया। 2007 तक, जीका संक्रमण केवल अफ्रीका और एशिया के हिस्सों में पाया जाता था। 2007 में, ओशिनिया (याप के द्वीप, माइक्रोनेशिया के संघीय राज्यों) से एक बड़े प्रकोप की सूचना मिली थी। 2016 में, जब ब्राजील (दक्षिण अमेरिका) में कई मामलों का पता चला, डब्ल्यूएचओ ने वायरस के प्रसार को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये आपातकाल घोषित कर दिया।

जीका मनुष्य को कैसे प्रभावित करता है?

वयस्क मानव पर जीका वायरस अपना कोई स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ता है। कुछ रोगियों में बुखार, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, और लाल चकत्ते पड़ने की शिकायत होती है, लेकिन ये कुछ दिनों के भीतर स्पष्ट हो जाते हैं। इसका कोई परिचित इलाज नहीं है और इससे प्रभावित लोग पर्याप्त आराम करके स्वस्थ हो सकते हैं। हालांकि, भ्रूण या अजन्मे बच्चे पर जीका वायरस द्वारा उत्पन्न गंभीर खतरे का अधिक प्रभाव पडता है। जब एक गर्भवती महिला वायरस से ग्रस्त हो जाती है, तो उसके गर्भ में पल रहा अजन्मा बच्चा माइक्रोसेफली से प्रभावित हो सकता है। इस स्थिति में पैदा होने वाले बच्चों का सिर असामान्य रूप से छोटा होता है और मस्तिष्क का विकास भी अवरूद्ध हो जाता है। यह उसके विकास में अवरोध, बहरापन, अंधापन और अन्य स्थायी जटिलताओं का कारण बनता है। जीका यौन संचरित होने के कारण पूरी पीढ़ी को प्रभावित कर सकता है।

हम जीका संक्रमण को कैसे रोक सकते हैं?

हर साल, भारत में गर्मियों के महीनों में डेंगू, मलेरिया, और चिकनगुनिया के प्रकोप का खतरा बना रहता है। इस तरह के प्रकोपों ​​की व्यापक प्रकृति को देखते हुए, भारतीयों को अब डर है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मच्छरों के प्रजनन के कारण जीका को भी खतरनाक सूची में जोड़ा जा सकता है। पिछले साल फरवरी में हैदराबाद स्थित एक फार्मास्युटिकल कंपनी ने दावा किया था कि खतरनाक जीका वायरस से निपटने के लिए दो वैक्सीन तैयार हैं। हालांकि इस वर्ष, आवश्यक परीक्षण और विनियामक मंजूरी मिलने के बाद व्यावसायिक रूप से ये टीके उपलब्ध करा दिए जाएंगे। तब तक इस प्रकोप को रोकने का एकमात्र तरीका है कि भारतीय एक स्वच्छ और शुष्क वातावरण बनाए रखें। कचरा और स्थिर पानी को नियमित रूप से साफ करें, मच्छरदानी और विकर्षक वस्तुओं का प्रयोग करने जीका को नियंत्रित किया जा सकता है।

इस तरह की घोषणाओं के प्राकृतिक डर के बावजूद हम यह अच्छी तरह से ध्यान रखें, कि भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया प्रणाली बहुत ही दुरूस्त है। सरकार ने वैश्विक विकास और वायरस के प्रसार पर नजर रखने के लिए, एक पैनल की स्थापना की है जिससे हवाई अड्डों को वायरस और अन्य वेक्टर से उत्पन्न बीमारियों के बारे में अवगत कराया जाता है। जीका वायरस की उपस्थिति का परीक्षण करने के लिए, कई परीक्षण प्रयोगशालाओं को अध्ययन करने के लिए सुसज्जित किया गया है। टेस्ट किट का वितरण किया गया है और जिस जिले में जीका  फैलने की सूचना दी जा रही है, उन जिलों को बारीकी से देखा जा रहा है। हमारे परिवार और समाज की भलाई के लिए हम लोग समान रूप से जिम्मेदार हैं। मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए, हमें आसपास के वातावरण को साफ रखने का प्रयास करना चाहिए।