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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस – हमारे लिए इसका अर्थ?

June 29, 2017


women-day-hindiअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आईडब्ल्यूडी) अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखता है, क्योंकि कुछ लोग इसे त्यौहार के रूप में मनाते हैं और कुछ अन्य लोग कार्रवाई के लिए गुहार लगाते हैं। सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन की आवश्यकता है, क्योंकि महिलाओं द्वारा की गई प्रगति को मान्यता की आवश्यकता है, महिलाओं को अधिक सशक्तीकरण की आवश्यकता है, महिलाओं को सम्मान की आवश्यकता है, महिलाओं को प्रत्येक जगह समानता की आवश्यकता है केवल हिंसा को छोड़कर। यह वायदा करना ही एक वायदा है: 2013 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने की कार्रवाई का समय’ संयुक्त राष्ट्र (संयुक्त राष्ट्र) द्वारा दिया गया है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस द्वारा घोषित वर्ष का विषय ‘लिंग एजेंडा: गति प्राप्त करना’ है। हालांकि समाज बदल रहा है और दोनों लिंगों के समान अधिकार की ओर प्रगति कर रहा है। फिर भी इस दिशा में एक स्थायी परिवर्तन की आवश्यकता है। महिलाओं की प्रगति और उपलब्धि का जश्न सिर्फ एक दिन ही नहीं बल्कि संपूर्ण वर्ष मनाया जाना चाहिए।

इस दिन का जश्न मनाने का उद्देश्य महिलाओं के प्रति प्यार और आभार प्रकट करना है। शुरू में यह दिन समाजवादी राजनीतिक घटना के रूप में शुरू हुआ था। समय के साथ-साथ कई देशों में राजनीतिक घटनाओं के साथ संबंध कमजोर पड़ गए हैं और लोगों ने आईडब्ल्यूडी का जश्न एक अवसर या त्यौहार के रूप में मनाना शुरू कर दिया है। आस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विटजरलैंड ऐसे पहले राष्ट्र हैं जहाँ 18 मार्च 1911 को पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आईडब्ल्यूडी) मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को पश्चिम में प्रमुखता 1977 के बाद मिली थी, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में महिलाओं के अधिकारों को विश्व शांति के लिए घोषित किया था। अब लगभग 100 देश अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आईडब्ल्यूडी) का जश्न मना चुके हैं और कुछ देशों ने तो इस दिन को आधिकारिक छुट्टी के तौर पर घोषित कर दिया है। कुछ देशों में इस दिन महिलाओं को उपहार देने की एक परंपरा है और इन देशों में आईडब्ल्यूडी को मदर्स डे या वेलेंटाइन डे की तरह मनाया जाता है।

लेकिन महिलाओं की वास्तविक स्थिति क्या है? महिलायें अब भी संघर्ष कर रही हैं और कार्रवाई के लिए गुहार लगा रही हैं। ऐसा लेख लिखने की आवश्यकता क्यों है, जहाँ लोगों को महिलाओं को सम्मान देने का आग्रह किया जाता है? हमें पुरुषों से संबंधित ऐसा कोई लेख नहीं मिलता है। वर्तमान दिनों में समाज में, विशेष रूप से भारत में, महिलाओं की प्रतिष्ठा पर बार-बार प्रश्न उठाया जाता है और हम अपने आप को सांत्वना देते हैं कि सब कुछ ठीक है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। हालांकि कई भारतीय महिलाएं उच्च विभागों में कार्य करती हैं, उनके समान अधिकार हैं, लेकिन उनमें से आधे से ज्यादा महिलाओं को भेदभाव, सामाजिक अपराध, हिंसा और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मनुष्य की तुलना में एक महिला का जीवन अधिक जटिलता और कठिनाइयों से भरा है। एक परिवार में एक आदमी काम करने जाता है, वापस आ जाता है, भोजन करता है और सो जाता है। जबकि उसी परिवार में एक महिला काम करती है, सुबह जल्दी उठती है, सभी के लिए नाश्ता तैयार करती है, दोपहर का भोजन तैयार करती है, घर के अन्य काम करती है, फिर रात का खाना तैयार करती है, अपने परिवार को भोजन परोसती है और अपने बच्चों और परिवार की देखभाल करती है। इस प्रकार आप जान सकते हैं कि कौन अधिक काम कर रहा है यह बिल्कुल स्पष्ट है, लेकिन फिर भी उसे वह सम्मान नहीं मिल रहा है, जिसका वह सही मायने में हकदार है।

वैदिक काल में हमारा समाज और संस्कृति हमारे तथाकथित आधुनिक समाज की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर था। वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ समान दर्जा भी दिया जाता था, इनकी शादी परिपक्व उम्र पर ही की जाती थी और इनको पति का चयन करने का पूर्ण अधिकार था। लेकिन भारत में इस्लामी आक्रमण और मनुस्मृति के कारण महिलाओं की प्रतिष्ठा में गिरावट आयी थी। जिसमें महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता को कम कर दिया गया था। मध्यकालीन समय में महिलाओं की प्रतिष्ठा में काफी गिरावट आयी और कई अवांछित पद्धतियों जैसे सती प्रथा (पति के मृत्यु के समय विधवा को अपने आप को जलाना), बाल विवाह, विधवाओं का पुन: विवाह न होना, घूंघट प्रथा, महिलाओं के खिलाफ शारीरिक और यौन उत्पीड़न जैसी कुरीतियों द्वारा महिलाओं को काफी प्रताड़ित किया जा रहा था। इसने महिलाओं को अन्दर से तोड़कर उनकी आत्मा को अलग कर दिया। इस तरह के रिवाज हमारे समाज का हिस्सा है, हालांकि पूरी तरह से नहीं, लेकिन दूरदराज के क्षेत्रों में लड़कियों को अपनी उम्र से दोगुने उम्र वाले लड़कों के साथ शादी करनी पड़ती है, महिलाओं को गर्भ गिराना पड़ता है और विधवाओं को एक दुखी जीवन व्यतीत करना पड़ता है।

समय-समय पर भारत के कई सुधारक जैसे राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, पीरी चरण सरकार आदि ने महिलाओं की स्थित में सुधार करने के लिए काफी प्रयास किया था। समाज की बाधाओं के खिलाफ बनाये गये कानून द्वारा किए गए प्रयासों के कारण भी महिलाओं की स्थित में कुछ हद तक सुधार हुआ था लेकिन कई व्यक्ति अपने आप को महिलाओं का देवता मानते हैं, इन पुरुषों और महिलाओं की खुद की सोच, भारत की महिलाओं की समस्या का मूल कारण है।

यद्यपि आज, भारतीय महिलाएं खेल, शिक्षा, विज्ञान, आईटी, राजनीति और ड्राइविंग आदि जैसे कई क्षेत्रों में भाग ले रही हैं। लेकिन फिर भी दहेज, यौन उत्पीड़न, महिलाओं के खिलाफ अपराध, बलात्कार, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, छेड़खानी और लिंग संबंधी गर्भपात जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे निपटने की आवश्यकता है। कई महिलाओं को समाज के गलत रीति-रिवाजों से बाहर निकलने के लिए मदद की जरूरत है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जीवन में महिलाओं के महत्व को याद रखने का एक शानदार तरीका है, लेकिन आईडब्ल्यूडी का जश्न सिर्फ इस लिए नहीं मनाया जाता है कि अन्य देशों में इसका उत्सव मनाया जा रहा है बल्कि हमें भी कुछ करना होगा, क्योंकि इस तरह समस्या का हल नहीं निकलेगा। न केवल ऐसे रुझानों का पालन करें बल्कि आँख बंद करके उनके साथ जुड़े महत्व को जानने की कोशिश करें। महत्व स्पष्ट हो जाने के बाद उद्देश्य स्पष्ट हो जाएगा। इसलिए यदि हम वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का जश्न मनाना चाहते हैं और हम अपनी माँ, बहन, पत्नी और बेटी से प्यार करते हैं, तो हमें एक प्रतिज्ञा करनी होगी कि हम पूर्णरूप से समाज की प्रत्येक महिला का सम्मान करेगें और हम महिलाओं के प्रति महान सम्मान, प्रशंसा और सम्मान का एक उदाहरण स्थापित करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।