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इरोम शर्मिला का संघर्ष

August 1, 2016


मणिपुर की लौह महिला इरोम शर्मिला

16 साल बाद अपना अनशन तोड़ेंगी ‘मणिपुर की लौह-महिला’ इरोम शर्मिला

मणिपुर में इरोम शर्मिला चानू को भूख हड़ताल करते हुए 16 साल हो चुके हैं। नवंबर 2000, में जब असम राइफल्स सिक्योरिटी फोर्सेस ने इम्फाल एयरपोर्ट के पास 10 नागरिकों की हत्या कर दी थी, तब एक कवि और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने विवादित अफ्सपा के खिलाफ प्रदर्शन करने का फैसला किया। भूख हड़ताल शुरू की। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर उनके ही कदमों पर चलते हुए अनशन किया था। उन्होंने कहा था- “महात्मा गांधी, देश के राष्ट्रपिता, ने कई अवसरों पर अपनी मांग पूरी करने के लिए अनशन किए थे।” डेढ़ दशक तक शर्मिला लगातार खाना और पानी के लिए नकारती रहीं।

शर्मिला के इतने लंबे और दुष्कर अनशन के बाद भी अफ्सपा के हटने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे। इरोम शर्मिला ने अब 9 अगस्त 2016 को अपना अनशन खत्म करने का फैसला किया है। 26 जून 2016 को उन्होंने मणिपुर की जिला अदालत में अपने अनशन को खत्म करने और विधानसभा चुनावों में उतरने के फैसले की जानकारी दी।

मणिपुरी कार्यकर्ता को भयंकर माने जाने वाले अफ्सपा के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 2007 में, उन्हें ग्वांगझु प्राइज फॉर ह्यूमन राइट्स से सम्मानित किया गया था। यह कहते हुए कि “शांति, लोकतंत्र और मानव अधिकारों की पैरवी और जागरुकता के लिए सक्रिय एक अविलक्ष व्यक्तित्व”। 2010 में, शर्मिला को एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन ने लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया। 2014 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर, एक लोकप्रिय ऑनलाइन पोल में उन्हें देश की शीर्ष महिला हस्ती के रूप में नामित किया गया। मानव अधिकार संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हें ‘प्रिजनर ऑफ कॉन्शिएंस’ कहा था, यानी एक ऐसा व्यक्ति जिसे एक विवादित मुद्दे पर अहिंसक आंदोलन के लिए जेल में डाल रखा हो।

दुनिया का सबसे लंबा अनशन

इरोम शर्मिला का अफ्सपा के खिलाफ अनशन अब 500 से ज्यादा हफ्ते पुराना हो चुका है। इसे “दुनिया के सबसे लंबी भूख हड़ताल” के तौर पर माना जाता है। इरोम शर्मिला को बार-बार आईपीसी की धारा 309 (आत्महत्या की कोशिश) के आरोप लगे और जेल भेजा गया। लेकिन “मणिपुर की लौह महिला” ने झुकने से इनकार करते हुए अपना अनशन जारी रखा। कुछ समय तक उन्हें और इम्फाल के जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल के वार्ड में रहना होगा, जहां उन्हें नाक में लगी नली के जरिए खाना खिलाया जाता है। इसी वार्ड को शर्मिला के लिए विशेष इंतजामिया जेल के तौर पर बनाया गया है।

भविष्य की योजनाएं-

16 साल से चल रही भूख हड़ताल खत्म करने के फैसले के बाद भी इरोम शर्मिला चानू की अफ्सपा के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है। उन्होंने अपने लिए एक अलग ही लड़ाई चुनी है। शर्मिला ने अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में उतरने का फैसला किया है। उन्होंने कहा- “मैं राजनीति में जाकर अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाती रहूंगी।” शर्मिला के इस फैसले ने कई लोगों को चकित कर दिया। समर्थकों के साथ ही परिजनों को भी। इतना ही नहीं, 2014 में उन्होंने कई पार्टियों (आप समेत) के प्रस्ताव को ठुकराया था। उनसे आग्रह किया गया था कि अनशन खत्म कर सांसद (लोकसभा चुनावों के लिए) के लिए एक सीट पर चुनाव लड़े।

राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के अलावा, 44 वर्षीय इरोम शर्मिला ने अपने बॉयफ्रेंड भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक से शादी करने की मंशा भी साफ कर दी है।

अफ्सपा के बारे में

सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (अफ्सपा) को सितंबर 1958 में पारित किया गया था। इसमें भारतीय सशस्त्र सेनाओं को देश के उन हिस्सों में विशेष शक्तियां मिल जाती हैं, जिन्हें “डिस्टर्ब एरिया” कहा जाता है। यह कानून देश की सशस्त्र सेनाओं को पूर्वोत्तर के राज्यों में एक तरह से असीमित अधिकार देता है। इस कानून को लेकर कई समूहों के साथ-साथ बड़े नेताओं ने भी समय-समय पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। इसे हटाने की पैरवी की है। उनकी चिंताएं भारतीय सशस्त्र सेनाओं को मिली असीमित शक्तियों को लेकर है। इसकी वजह से अत्याचार और मानव अधिकार उल्लंघन होते हैं।

जब सशस्त्र बल विशेष अधिकार अध्यादेश को 1958 में सबसे पहले लागू किया था, तब इसका असर सिर्फ असम और मणिपुर तक सीमित था। उस समय नगा उग्रवाद इस क्षेत्र पर हावी था। बाद में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में यह लागू हो गया। यानी अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में। 1971 में तक आते-आते कानून में बदलाव हुए और यह सभी राज्य उसके दायरे में आते चले गए। यह कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू है। पंजाब और चंडीगढ़ भी 1983 से 1997 के बीच इस कानून की परिधि में रहे।
इसे लागू करने के 18 साल बाद त्रिपुरा की राज्य सरकार ने अफ्सपा हटाने का फैसला किया। सुरक्षा बलों के साथ ही राज्य की मंत्रि परिषद की ओर से कानून-व्यवस्था की समीक्षा करने के बाद सरकार ने कहा कि राज्य में आतंकवाद अब नहीं बचा है और यह कानून अब लागू नहीं रहता। अफ्सपा के मुताबिक राज्य सरकारें इस कानून को वापस लेने की सिफारिश कर सकती है। हालांकि, इस कानून की धारा-3 के तहत राज्य के राज्यपाल को सिफारिश को अस्वीकार करने का अधिकार है।

मणिपुर विधानसभा चुनाव

मणिपुर राज्य के विधानसभा चुनाव 2017 में होने हैं। राज्य में 60 विधानसभा सीटें हैं। 2012 के राज्य चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने 42 सीटों पर कब्जा किया था और स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। 2014 में मणिपुर राज्य कांग्रेस पार्टी ने सत्ताधारी कांग्रेस में विलय कर लिया। इससे आईएनसी को पांच और विधायक मिल गए थे, जिससे उसकी ताकत बढ़कर 47 विधायकों की हो गई थी। भाजपा ने 2016 के विधानसभा उप-चुनावों में दो सीटें जीतकर विधानसभा में पदार्पण किया है। उसको भरोसा है कि असम की ही तरह वह मणिपुर में भी कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी। इस पूर्वोत्तर के राज्य में भाजपा के समर्थक बढ़ रहे हैं और एनडीए सरकार ने 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से इस राज्य में वोटबैंक खड़ा करने के लिए काफी कोशिशें की हैं।

इम्फाल नगर निकाय के चुनाव जून 2016 में हुए और इसमें भाजपा ने 27 में से 10 सीटें जीती। कांग्रेस ने 12 सीटों पर कब्जा किया, लेकिन यह साफ संकेत है कि भाजपा का जनाधार बढ़ रहा है क्योंकि 2011 में उसके पास महज एक सीट थी।

2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में मणिपुर की लड़ाई दिलचस्प रहने वाली है। इरोम शर्मिला भी एक मजबूत उम्मीदवार होगी। उन्हें हर बड़ी पार्टी अपने पाले में करने की कोशिश करेगी।यह भी संभव है कि वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े।

Sujatha