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क्या भारत में अंतर्जातीय विवाह को मिल रहा है पर्याप्त प्रोत्साहन?

August 21, 2017


Intercastओडिशा सरकार ने अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देने के लिए 17 अगस्त से नकद प्रोत्साहन राशि को बढ़ा दिया है। इससे पहले इस राशि के रूप में 50,000 रूपये का भुगतान किया जाता था लेकिन अब इस राशि की कीमत को दोगुना करके 1 लाख रूपये कर दिया गया है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े की आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना यह राशि प्रदान की जाएगी। हालांकि, इस राशि के उपयोग के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की गई हैं। राज्य सरकार के एक अधिकारी द्वारा पता चला है कि इस राशि का उपयोग केवल जमीन या भवन निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री खरीदने में किया जायेगा, जो घर बनाने में इस्तेमाल होगी।

सरकार क्या कहती है?

उड़ीसा सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास सचिव सुरेंद्र कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस वृद्धि को लागू किया गया है। यह सहायता राशि हर उस महिला और पुरूष को दी जाएगी जो अपनी जाति से बाहर विवाह करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रोत्साहन राशि से भारत में चल रही एक पुरानी परंपरा या अभ्यास – अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म करने में काफी सहायता मिलेगी। आखिरी बार 2007 में ओडिशा सरकार द्वारा इस राशि को बढ़ा दिया गया था। पहले इस प्रकार के विवाहों में 10,000 रूपये की राशि प्रदान की जाती थी।

भारतीय समाज में जाति का स्थान

भारतीय समाज की बात की जाए तो जाति विवाह के लिए हमेशा एक महत्वपूर्ण कारक है। बहुत ही समझदार और अच्छे माता-पिता अपनी संतान को अपनी जाति से बाहर विवाह करने की अनुमति नहीं देते हैं, वहीं सबसे बुरी बात यह है कि जाति से बाहर विवाह करने वाले जोड़ों को परिवार का सम्मान बचाने के लिए मार तक दिया जाता है। क्या यह कोई बात नहीं है कि, अपनी जाति से बाहर शादी करना कुछ अपवादों के साथ बिल्कुल अस्वीकार्य माना जाता है। भारत में कई ऐसे कानून हैं जो अंतर्जातीय विवाह को अनुमति देते हैं लेकिन यह कानून अंतर्जातीय विवाह करने वाले लोगों को वास्तव में किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं दे पाते हैं।

वित्तीय प्रोत्साहन का उद्देश्य

इसका क्या कारण है कि केन्द्र सरकार का सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इस प्रकार की प्रत्येक शादी के लिए 2.5 लाख रूपये की राशि की पेशकश कर रहा है। सरकार द्वारा प्रदान की जा रही इस प्रोत्साहन राशि से उम्मीद की जा रही है कि इससे अंतर्जातीय जोड़ों को अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी। इस प्रोत्साहन राशि को अंतर्जातीय विवाह के माध्यम से सामाजिक एकीकरण के लिए डा. अम्बेडकर स्कीम नामक एक कार्यक्रम से उपलब्ध कराया जाता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से केंद्र सरकार उम्मीद कर रही है कि अधिक लोग अपनी जाति से ऊपर उठकर दूसरी जाति में विवाह करेगें और इससे देश में प्रचलित जाति व्यवस्था को कम करने में मदद मिलेगी। ओडिशा के अलावा अन्य राज्यों में भी इस प्रकार की वित्तीय सहायताओं की पेशकश की जा रही है, जिनमें निम्नलिखित राज्य शामिल हैं –

  • हरियाणा
  • कर्नाटक
  • हिमाचल प्रदेश
  • बिहार
  • पंजाब
  • तमिलनाडु
  • राजस्थान

क्या यह प्रभावी होगा?

इस प्रकार के कार्यक्रम के पीछे एक आदर्श विचार है जिसमें किसी प्रकार का कोई शक नहीं है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक आश्चर्यजनक रूप से कार्य करेगा और अंतर्जातीय विवाह करने वाले लोगों को जीवन प्रारंभ करने में वित्तीय स्थिरता प्रदान करने में मदद करेगा- जिनके रिश्ते को सामाजिक दृष्टिकोण से अस्वीकार माना जाता है। लेकिन हमें यह पूछने की जरूरत है कि क्या लंबे समय तक इस योजना को चलाना सही है। अगर देखा जाए तो भारत में वैसे ही बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार फैला हुआ है, जहाँ पर पैसे की अहमियत व्यक्ति के मूल्यों और अच्छे गुणों से अधिक है। इस मामले में कुछ ऐसे असंतोषजनक सवाल हैं जिनको पूछे जाने की जरूरत है।

इस प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को पैसों हेतु विवाह करने के लिए बाध्य तो नहीं किया जा रहा है? इस बात की जिम्मेदारी कौन लेगा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग पैसा प्राप्त होने के बाद अपनी पत्नी का त्याग नहीं करेंगे? इन सबसे बाद इस प्रकार की योजनाओँ को भारत के उन क्षेत्रों में बहुमत से लागू नहीं किया जाता है, जो क्षेत्र महिलाओँ को समान अधिकार देने के मामले में सदियों पीछे हैं। क्या यह बेहतर नहीं है कि इस तरह के मुफ्त पैसे के बजाय लोगों को सामाजिक कार्यक्रमों और अभियानों से अवगत कराया जाये? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि जाति आधारित हिंसा को रोकने के लिए कड़े कानून बनाये जायें और उनको अच्छी तरह से लागू किया जाए?

अंत में, व्यावहारिक दृष्टिकोण से ध्यान देकर देखने पर पता चलता है कि यह एक शानदार कदम है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। यह एक कड़वा सच है जिसको मानना (अनुसरण करना) कठिन है।