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इसरो ने भारत का पहला निजी निर्मित सैटेलाइट लॉन्च किया

September 1, 2017


इसरो ने भारत का पहला निजी निर्मित सैटेलाइट लॉन्च किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक प्राइवेट सेक्टर द्वारा निर्मित नेविगेशन सैटेलाइट को लॉन्च करने के तैयारी में है। यह पहली बार हुआ है कि एक सैटेलाइट का प्रक्षेपण प्राइवेट सेक्टर के सहयोग से शुरू होने जा रहा है। 31 अगस्त 2017 को शाम 7 बजे आईआरएनएसएस-1 एच नाम का सैटेलाइट लॉन्च किया जाएगा। इसे श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा जाएगा।

आईआरएनएसएस -1 एच (इंडियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम) के सहयोगी

भारत के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब सैटेलाइट के परीक्षण में प्राइवेट सेक्टर की कंपनियाँ सीधे तौर पर शामिल हुई हैं। सैटेलाइट का निर्माण अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज के नेतृत्व में एक सहायता संघ द्वारा किया गया है, जो कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में स्थित है। हालांकि, इसरो के 70 वैज्ञानिकों के सहायता संघ ने निरीक्षण का काम किया।

आईआरएनएसएस -1 एच (इंडियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम) के प्रक्षेपण के पीछे कारण

आईआरएनएसएस -1एच सैटेलाइट मूल रूप से आईआरएनएसएस 1ए की जगह लेगा।

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन सैटेलाइट प्रणाली की सात सैटेलाइटों में से एक, आईआरएनएसएस 1 ए की परमाणु घड़ियों ने काम करना बंद कर दिया है। परमाणु घड़ियां सैटेलाइट की महत्वपूर्ण घटक हैं क्योंकि वे स्थिति का शुद्ध विवरण प्रदान करती हैं। इस खराबी ने नए सैटेलाइट को लॉन्च करना आवश्यक बना दिया।

आईआरएनएसएस -1 एच की विशेषताएं

यह नवीनतम प्रक्षेपण, आईआरएनएसएस -1 एच (इंडियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम) बहुत सी उन्नत सुविधाओं के साथ बनाया गया है।

शुरू में नए सैटेलाइट का वजन काफी है और यह लगभग 1,425 किलो का है। आईआरएनएसएस-1 एच का शुभारंभ पीएसएलवी-सी 339 के समीप किया जाएगा, जिसका उपयोग मूल रूप से नेविगेशन आधारित अनुप्रयोगों के लिए किया जाएगा।

दूसरे सैटेलाइट की तरह, आईआरएनएसएस -1 एच में भी दो प्रकार के पेलोड हैं। यह रैंगिंग पेलोड और नौवाहन पेलोड हैं।

रैंगिंग पेलोड में सी-बैंड ट्रांसपोंडर शामिल है। यह ट्रांसपोंडर बेहद उपयोगी है, क्योंकि यह उपग्रह की सीमा को अच्छे तरीके से निर्धारित करने में सहायता करेगा।

नेविगेशन पेलोड एस-बैंड और एल 5-बैंड में काम करेगा। यह पेलोड उपयोगकर्ताओं को नौवाहन सेवा संकेतों को प्रसारित करने में सक्षम होगा।

ऐसी कल्पना की जा रही है कि आईआरएनएसएस -1 एच, पिछले सैटेलाइट से अधिक लचीला और अपनी सेवाओं के लिए अधिक सुसंगत है।

आईआरएनएसएस -1 एच के कार्य

यह सैटेलाइट ऐसे अनेक कार्य करेगा जो मछुआरों, व्यापारी बेड़ों, यात्रियों और साथ ही साथ पैदल यात्रियों के लिए उपयोगी होगा। यह यात्रियों के लिए नेविगेशन (नौसंचालन) को सहायता प्रदान करेगा। यह विशेष रूप से चालकों (नौचालकों) के लिए उपयोगी होगा क्योंकि यह चालकों के लिए दृश्य एवं श्रव्य जैसी सेवाओं की पेशकश करेगा। इसके द्वारा दी जाने वाली अन्य सेवाएं ट्रैकिंग और बेड़े प्रबंधन, समुद्री और स्थलीय नेविगेशन और आपदा प्रबंधन में मदद हैं। यह रेलवे के लिए काफी आसान होगा और यह स्थान-आधारित सेवाओं की पेशकश करेगा।

एक प्रगतिशील कदम

यह एक प्रगतिशील कदम है और इसके साथ ही भारत में सैटेलाइट निर्माण में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी का एक नया युग शुरू होगा। यह निजी सहयोग निश्चित रूप से भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम को एक विस्तृत बढ़ावा प्रदान करेगा। निजी कंपनियों की भागीदारी होने से, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को एक नया दृष्टिकोण मिलेगा। इससे पहले, निजी कंपनियां केवल घटकों (पार्ट्स) की आपूर्ति कर रही थीं लेकिन नवीनतम प्रक्षेपण से पता चलता है कि उनकी भूमिका अधिक विविध हो गई है और अब वे उपग्रह निर्माण में भी शामिल होंगी। यद्यपि, निजी सहायता संघ का काम इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित किया जाता है लेकिन यह बताया गया है कि अधिकारी संतुष्ट हैं और निजी क्षेत्र की भूमिका को प्रशंसनीय बताया हैं।

यह बताया गया है कि समय के साथ निजी क्षेत्र की और भी अधिक कंपनियाँ आकर सैटेलाइट गतिविधि सभा में शामिल हो जाएंगी। उनकी भागीदारी सैटेलाइटों को तेजी से तैयार करने में मदद करेगी।