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लिपस्टिक अंडर माय बुर्का ” मूवी रिव्यू – हर औरत की कहानी

July 22, 2017


lipstick-under-my-burkha-movie-reviewआइए देखें, नारीवाद के विषय पर एक “ए” प्रमाणित बहुत ही विवादास्पद फिल्म, जो बहुत ही लंबे संघर्ष के बाद सामने आई, इसमें “बुर्का” का काफी जिक्र किया गया है, इसके बारे में जानने की इच्छा तो स्वाभाविक रूप से काफी तेज लगती है। तो आइये बिना कोई देर किये लिपस्टिक अंडर माय बुर्का देखते हैं। यह बहुत ही साहसिक मुद्दा है और अलंकृता श्रीवास्तव ने इसको बखूबी बनाया है।

कलाकार – कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक, आहना कुमरा, प्लबिता बोरठाकुर, सुशांत सिंह, वैभव तातवावाडी

निर्देशक – अलंकृता श्रीवास्तव

निर्माता – प्रकाश झा

पटकथा और कहानी – अलंकृता श्रीवास्तव

संगीत – ज़ेबुनिसा बंगाश

बैकग्राउंड स्कोर – मंगेश धाकदे

छायांकन – अक्षय सिंह

संपादित – चारु श्री रॉय

प्रोडक्शन हाउस – प्रकाश झा प्रोडक्शन

अवधि – 2 घंटे 12 मिनट

सेंसर प्रमाणन –

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का चार महिलाओँ – ऊषा परमार उर्फ बुआजी (रत्ना पाठक शाह), रिहाना (प्लबिता बोरठाकुर), लीला (अहाना कुमरा) और शिरीन (कोंकणा सेन शर्मा) की कहानी है, जो निचले मध्यम वर्गीय परिवार में साधारण महिलाओँ की तरह दमनकारी जिंदगी जी रही हैं। यह दमन और नैतिक संहिताओँ की भावना है, जो परिभाषित करती है कि महिलाओँ को कौन (क्या) होना चाहिए और उनको कैसे कपड़े पहनने चाहिए, इससे उनकी समान्तर जिदंगी तेज कामुकता और विद्रोह में बदल जाती है। आइये इस पर सीधे-साधे बात करते हैं। यहाँ पर शायद दमन के प्रतीक के रुप में बुर्के का उपयोग किया गया है जिसने सेंसर बोर्ड को इस फिल्म पर चुप्पी साधने के लिए प्रेरित किया, शुरू में इसी कारण इस फिल्म को मंजूरी नहीं मिल पाई। हालांकि चार महिला पात्रों में से केवल दो पात्र मुस्लिम हैं। दूसरे दो पात्र हिंदू हैं, इसमें बुर्का अपने अजीब अस्तित्व को दिखाने के लिए केवल एक प्रयोक्ति है। जबकि लिपिस्टिक को स्वतंत्रता और विद्रोह के प्रतीक के रुप में दिखाया गया है।

कथानक –

यह फिल्म बहुत ही कामुक और उत्तेजक उपन्यास की नायिका रोजी के साथ आगे बढ़ती है। लेकिन रोजी एक आदर्श महिला है।

रिहाना कॉलेज में पढ़ने वाली एक युवा लड़की है जो जींस पहनना और लेड जेपेलीन के गीत स्टेयरवे टू हेवन को सुनना पसंद करती हैं। लेकिन उसको दुनिया की नजरों से बचाने वाले बुर्के को सिलना और पहनना पड़ता है। वह मेकअप और कपड़ों के लिए चोरी का सामना करती है क्योंकि यह उसका सपना है।

रोजी ही लीला है, एक ब्यूटीशियन गरीब और संघर्षरत माँ के साथ जबरन शादी करना चाहता है, जो एक फोटोग्राफर के साथ अपनी कामुक कल्पनाओं को जन्म देती है।

रोजी ही शिरीन है, यह एक सेल्स गर्ल है जो अपने पति के लिए एक सेक्स की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं है। उसको एक लाभकारी नौकरी के वादे पर अनचाहा गर्भधारण और जिंदगी भर की उलाहनाएं मिलती हैं। इन चीजों को जिंदगी से तौला जाता है।

रोजी ही बुआ जी है, एक अधिक उम्र की विधवा जो सब कुछ जानती है लेकिन अपना नाम भूल गई है। इससे सत्संगों में जाने और कुल माता का रोल करने की उम्मीद कौन करता है, उसकी इच्छाएं उसे युवा तैराकी कोच के साथ फोन सेक्स करने के लिए प्रेरित करती हैं।

लाल लिपिस्टिक जो उन सभी को एकजुट करती है वह एक ऐसी स्वतंत्रता की प्रतीक है जिसकी हर महिला चाहत करती है।

अच्छा क्या है बुरा क्या है?

चारों प्रमुख महिलाओँ का प्रदर्शन उदाहरण के योग्य है। रत्ना पाठक शाह इन सभी के टैलेंट को बाहर निकालने में सफल रहे। जितनी आसानी से इन महिलाओं ने इतनी भीषण भूमिकाएं निभाई हैं, वे देखने में बहुत ही प्रसन्न करने वाली हैं। निराशाजनक स्थितियों में हंसी की लहर बहाने का श्रेय फिल्म निर्माता अलंकृता श्रीवास्तव को देना चाहिए जिसके बगैर फिल्म अंधकारमय हो सकती थी।

संगीत हवा के जैसा हल्का है। इस फिल्म के तीन गानों – जिगी जिगी (मालिनी अवस्थी द्वारा गाया गया), ले ली जान (ज़ेबुनिसा बंगाश द्वारा गाया गया) और इश्किया (नीति मोहन द्वारा गाया गया) के कारण जरूर देखना चाहिए। ये तीनों गाने बहुत ही हल्के और ताजगी से भरपूर हैं। गीत की लेखक अंविता दत्त का प्रदर्शन सराहनीय है और पाकिस्तानी संगीतकार ज़ेबुनिसा बंगाश का प्रदर्शन उससे भी अच्छा है।
हालांकि फिल्म में कई कमियाँ हैं। दुकान से किसी सामान की चोरी करना उतना आसान नहीं है जितना पर्दे पर दिखाई देता है। दबाव में दबी महिला के मन में गुस्सा तो होता है लेकिन सेक्स करने की भावना नहीं होती है, धूम्रपान करना आजादी की निशानी नहीं है। क्लाइमेक्स पर कहानी बिलकुल बेकार लगती है और संपादन निश्चित रुप से काफी कठिन और मेहनत भरा हो सकता है।

हमारा फैसला

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ज्यादा प्रतीक्षा और प्रशंसा की जाने वाली फिल्म है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसकी थीम बहुत ही मजबूत है। यह अच्छी तरह से तैयार करके सुंदरता के साथ निष्पादित की गई है। कलाकार बहुत ही प्रासंगिक हैं, इसलिये यदि आप सप्ताहांत में एक औरत समझकर फिल्म देखने बाहर जाते हैं, तो आप कुछ चीजों की उम्मीद कर सकते हैं, जैसे आप सोच सकते हैं कि आप अकेले नहीं हैं। लाखों महिलायें एक ही प्रकार के दुःख से पीड़ित हैं जो आप प्रतिदिन देते हैं। औसतन फिल्म देखने वाले या बॉलीवुड के फैन इस फिल्म की आत्मा तक पहुँचने में असफल हो सकते हैं क्योंकि बीच में बुर्के की परतें आ जाती हैं।

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यह कोई असाधारण फिल्म है। यदि हम पुराने समय में वापस जाकर नारीवाद के विषय पर बनी फिल्में जैसे मिर्च मसाला (1987) या रुदाली (1993) को याद करें, तो पायेंगे कि वे फिल्में इस फिल्म से ज्यादा मशहूर थीं। आखिरकार यह एक ऐसी फिल्म है जिससे उम्मीद की जा सकती है कि इसमें फोन कार्यवाई की जरूरत नहीं है।

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का आगे आने वाली उम्र (जो कुछ समय के बाद वयस्क हो जायेंगे) के लिए एक फिल्म है। यह सही समय है जब माता-पिता, बच्चे, पति-पत्नी और दोस्त यह महसूस कर लें कि वह महिला जिसका दमन किया जा रहा है, एक ऐसी ज्वालामुखी है जो फटने का इंतजार कर रही है। सिर्फ इसी वजह से फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में एकत्र की जाने वाली प्रशंसाओं की हकदार है।

हालांकि, भारत में ऐसा डर है कि सेक्स के बारे बात करने, अनैतिक काम या गाली देने से इज्जत घट सकती है।

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का एक अच्छी फिल्म है लेकिन यह सभी को पसंद नहीं आ सकती।