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महादाई जल विवाद अधिकरण – कर्नाटक का दावा खारिज

May 19, 2017


What-is-Mahadayi-Water-Dispute-hindi

27 जुलाई 2016 को कर्नाटक को  एक बड़ा झटका लगा। उत्तरी कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पेयजल की जरूरतों को पूरा करने के लिए, महादाई जल विवाद अधिकरण (एमडब्ल्यूडीटी) ने महादाई नदी के पानी पर कर्नाटक के दावे को खारिज कर दिया ताकि महादाई नदी घाटी से मालप्रभा नदी तक 7.56 टीएमसीटी पानी का आदान-प्रदान किया जा सके।

हालांकि यह घोषणा सभी पक्षों की पूरी सुनवायी के बाद की गयी, न्यायाधिकरण के अंतिम फैसले में एक और वर्ष लग सकता है।

कावेरी नदी जल विवाद

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य अधिकरण के कारण खारिज हुए, कर्नाटक के मामले (महादाई जल विवाद) को समझने का प्रयास करेगी और फिर अगले चरण में राज्य फैसला करने के लिए एक सर्व-दलीय बैठक बुलायेगा। हालांकि उन्होंने कहा है कि वे गोवा के साथ मामले को सुलझाने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप की मांग करेंगे।

इस बीच, कर्नाटक में किसानों और समर्थक कन्नड़ समूहों ने नेल्गुंड, हबबाली, बेलागवी, मंड्या, नर्गुंड, गदग और कई अन्य स्थानों में हिंसक विरोध प्रदर्शन किया जिसकी वजह से शुक्रवार को नर्गुंड और हुबली में विद्यालय और कॉलेज बंद कर दिये गये।

गोवा को एक ट्रिब्यूनल (समिति या पैनल) की मांग

वर्ष 2002 में, गोवा और कर्नाटक के बीच महादाई नदी जल विवाद को हल करने के लिए एक ट्रिब्यूनल (समिति या पैनल) के गठन के लिए, अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 की धारा 3 के तहत, केंद्र सरकार से अपील की थी।

अधिनियम के अनुसार,अगर केंद्र सरकार को ठीक लगा तो जल साझाकरण विवादों को हल करने के लिए एक ट्रिब्यूनल स्थापित करने में हस्तक्षेप कर सकती है।

अप्रैल 2006 में, केंद्र सरकार ने कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई जो सभी हितधारक राज्यों के मामलों को हल करने के लिए थी लेकिन गोवा अपनी बात पर अड़ा रहा और उसी साल सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ट्रिब्यूनल स्थापित करने की अपील की थी।

16 नवंबर 2010 को, केंद्र सरकार ने महादाई जल विवाद ट्रिब्यूनल (एमडीडीडीटी) का गठन किया था।

 महादाई जल विवाद क्या है?

गोवा में, महादाई नदी को मंडोवी नदी कहा जाता है वास्तव में, यह नदी कर्नाटक में भीमगढ़ के समीप 30 झरनों के एक समूह से निकलती है और बेलगाम जिले के खानपुर तालुका के देगांव गाँव में एक नदी के रूप में बन जाती हैं।

मुख्य रूप से महादाई नदी बारिश पर आश्रित है जो मानसून के महीनों के दौरान अपने चरम रूप में बहती है। अरब सागर में प्रवाहित होने से पहले, यह नदी कर्नाटक से 35 कि.मी. और गोवा से 52 कि.मी. की दूरी पर बहती है।

महादाई नदी का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 2,032 कि.मी. का है और महाराष्ट्र के पास महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी शामिल है।

 कर्नाटक और गोवा के बीच विवाद की वजह

उत्तरी कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा के सीमावर्ती इलाकों के लोग परंपरागत रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है, इस क्षेत्र के लोगों ने पेयजल और सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए, बांधों के निर्माण द्वारा वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए कुछ निवेश किया है।

यह क्षेत्र महादाई नदी की घाटी पर निर्भर है घाटी में पानी की क्षमता 220 टीएमसीएफटी के आस-पास है,जो गोवा से गुजरने के बाद लगभग 200 टीएमसीएफटी के करीब अरब सागर में बहती है।

मानसूनी वर्षा में अनिश्चितता को देखते हुए, इस क्षेत्र के लोग कृषि के लिए सिंचाई तथा पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने की माँग कर रहे हैं।

अप्रैल 2002 में, नई दिल्ली में जल संसाधन मंत्रालय और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान से अनुमोदन मिलने के बाद, राज्य सरकार ने कर्नाटक की महादाई नदी की दो सहायक नदियों कालसा और बंदूरी, पर पानी की आपूर्ति करने के लिए दो बैराज बनाने की घोषणा की, जिससे कि हुबली-धारवाड़, बादामी, नर्गुंद, रॉन, नौलगुंड और गदग क्षेत्र में रहने वाले लोग को पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

चूंकि महादाई नदी जून और अक्टूबर के बीच बहुत अधिक वर्षा के कारण उफान पर होती है और जिससे कर्नाटक द्वारा किए गए पानी के किसी भी परिवर्तन से गोवा के लोगों की पानी की जरूरतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

इसलिए, गोवा की राज्य सरकार ने सितंबर 2002 में इस योजना के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था, और दावा करते हुए कहा था कि पानी का कोई भी परिवर्तन गोवा के लोगों को पानी की जरूरतों से वंचित करेगा, पश्चिमी घाट के अत्यधिक संवेदनशील पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा|।

2006 में, गोवा ने एक ट्रिब्यूनल की स्थापना के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपनी बात रखी थी जिसकी वजह से न्यायमूर्ति जेएम पांचाल ने 2010 में एमडब्लयूडीटी की स्थापना की।

हाल की घोषणा के साथ, कर्नाटक और गोवा दोनों को न्यायाधीश के अंतिम फैसले का इंतजार करना होगा।

सामान्य विचार

वहाँ के राज्यों के बीच चल रहे जल विवाद का कारण सभी हितधारकों के लिए एक वैध मुद्दा है क्योंकि नदी का पानी एक प्राकृतिक संसाधन है और इसमें सभी राज्यों की हिस्सेदारी होनी चाहिए।

लेकिन राज्य सरकारों से पूछा जाने वाला बड़ा सवाल यह है कि उन्होंने अपने राज्यों में वर्षात के पानी की क्षमता को निवेश और निर्माण करने के लिए क्या किया है?

कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र में पर्याप्त वर्षा होती है, फिर भी तीनों राज्यों में मानसून से पूर्व ग्रीष्म ऋतु के दौरान गंभीर जल संकट बना रहता हैं।

तो क्या यह सच है कि ये राज्य और भारत में दूसरे राज्यों, ने वर्षा जल संचयन चेक बांध, मिनी-बाँध और सूक्ष्म-तालाबों को स्थापित करने में विवेकपूर्ण तरीके से निवेश नहीं किया है, यदि ऐसा नही है तो, क्या सामूहिक रूप से राज्य संकट की अवधि के दौरान, लोगों की जरूरत के एक बड़े हिस्से को पूरा कर सकते हैं?

सभी तीनों राज्यों में छोटे-बडे सभी जलाशयों को भरने के लिए पर्याप्त वर्षा होती है, जिन राज्यों के अंतर्गत बारिश की कमी वाले क्षेत्रों में पाइपलाइनों के माध्यम से पानी दे सकते हैं। अधिकांश राज्यों ने इन समाधानों में थोड़ा निवेश किया है और नदी के पानी पर विवाद जारी है। और ऐसे मामलों में जहां कुछ निवेश किया गया है, वह ज्यादातर भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं द्वारा हजम कर लिया गया है। कई राज्य इस के दोषी हैं और लोग सरकार की उदासीनता से पीडित हैं।

2002 में शुरू हुए इस विवाद को सुलझाने के लिए, यदि गोवा और महाराष्ट्र की सरकारों ने बुद्धिमानी से निवेश किया होता तो महादाई नदी के पानी पर निर्भरता कम हो गयी होती। इस प्रकार के विवाद का हल निकालनें के लिए सभी हितधारकों को अधिक प्रयास करना होगा।

 राज्यों के बीच समरूप नदियों के पानी बंटवारे का विवाद

 कृष्णा नदी

  • आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र

 गोदावरी नदी

  • आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और ओडिशा

 नर्मदा नदी

  • महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात

 कावेरी नदी

  • तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी

 वंशधारा नदी

  • आंध्र प्रदेश और ओडिशा

 रवि और ब्यास नदी – सतलुज-यमुना लिंक नहर

  • पंजाब और हरियाणा