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माजुली- दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप- अब बन गया एक जिला

September 16, 2016


माजुली- दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप- अब बन गया एक जिला

माजुली- दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप- अब बन गया एक जिला

पहले पहल, माजुली द्वीप के बारे में तकरीबन कुछ भी खास नजर नहीं आता। इतना ही काफी है कि यह ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में 875 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला एक गुमनाम-सा द्वीप है। हालांकि, असम का यह खूबसूरत द्वीप पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में हैं। एक सितंबर 2016 को माजुली ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाई। उसे दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप घोषित किया गया। इससे पहले तक ब्राजील के माराजो द्वीप के पास यह खिताब था। गिनीज बुक में यह भी कहा गया कि माजुली द्वीप में 1.60 लाख लोग रहते हैं। इसी साल 8 सितंबर को यह द्वीप एक बार फिर सुर्खियों में था। भारत के पहले द्वीपीय जिले के तौर पर। इससे पहले तक माजुली असम के जोरहट जिले का एक उप-विभाग था। अब यह राज्य का 35वां जिला बन चुका है।

स्थान और पहुंचने का रास्ता

माजुली विशाल ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ा एक द्वीप है। यहां ब्रह्मपुत्र की एक शाखा खेरकुतिया क्षुती के तौर पर निकलकर एक छोटी नदी सुबानसिरी से मिलती है। यह द्वीप नदी किनारे से 2.5 किलोमीटर दूर स्थित है और इसकी असम के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर गुवाहाटी से दूरी 300 किलोमीटर है।

निकटतम बड़ा शहर जोरहट है। इसी शहर से होकर देश का बाकी हिस्सा माजुली से जुड़ता है। जोरहट एयरपोर्ट गुवाहाटी और कोलकाता एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। कमर्शियल फ्लाइट्स का संचालन होता है। ट्रेन के जरिए भी जोरहट पूरे भारत से जुड़ा हुआ है। आप एक बार जोरहट पहुंच जाए तो वहां से आपको बस की दचकों वाली यात्रा के लिए तैयार होना होगा (खासकर राज्य की खराब सड़कों की वजह से)। नीमती घाट तक पहुंचने के लिए इसी खराब रास्ते से गुजरना होगा। यहां से, हर दिन मेजर सापोरी के लिए दो फेरी निकलती हैं। सुबह 10 बजे और दोपहर तीन बजे। लेकिन आप स्थानीय ऑपरेटरों से समय की पाबंदी की उम्मीद नहीं कर सकते। अब मेजर सापोरी के फेरी घाट से आपको एक बस लेनी होगी, जो आपको एक अन्य फेरी घाट तक ले जाएगी। इसके बाद छोटी फेरी राइड से आप माजुली पहुंच जाएंगे।

एक बार आप माजुली पहुंच गए तो आपकी पूरी थकान काफूर हो जाएगी। राज्य की परिवहन व्यवस्था पर आपका गुस्सा भी पूरी तरह उतर जाएगा। माजुली कनेक्टिविटी के लिहाज से भले ही बहुत अच्छा न हो, यह उसकी प्राकृतिक सुंदरता, लगाव और समृद्ध संस्कृति को कायम रखने में कामयाब रहा है। बोगीबील ब्रिज के पूरे होने और धोला-सदिया ब्रिज का निर्माण (अगले साल तक) पूरा होने के बाद माजुली पहुंचना और आसान हो जाएगा।

माजुली द्वीप के बारे में और जानकारी

यदि ब्रह्मपुत्र के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे काफी नहीं है तो आगे जाइये और इस द्वीप पर 21 शास्त्रों (वैष्णव मंदिरों) का भ्रमण कीजिए। माजुली असम के नव-वैष्णव संस्कृति का हब है। इनमें से ज्यादातर शास्त्रों ने नाच-गाने की संस्कृति को जीवित रखा हुआ है। इस द्वीप पर कला और संस्कृति भी खूब पनपी। राज्य के माइजिंग, देवरी और सोनोवाल कचरी आदिम जातियों के लिए यह इलाका घर है। हर साल यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों को देखने भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। असमी के अलावा यहां के स्थानीय नागरिक माइजिंग और देवरी भाषाएं भी बोलते हैं। यदि आप पूर्वी भारत की इन भाषाओं को नहीं जानते तो यहां एक स्थानीय गाइड अपने साथ रखना बेहद मददगार साबित होगा।

मुख्यमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र

माजुली द्वीप की पहचान सिर्फ एक पर्यटन आकर्षण के तौर पर नहीं है। इससे भी बढ़कर है। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल का निर्वाचन क्षेत्र होना भी माजुली की एक पहचान है। यहीं से जनता ने उन्हें चुनकर विधानसभा भेजा है। इससे समझ जाता है कि मुख्यमंत्री इस द्वीप पर नियमित आते हैं और इससे जुड़े विकास कार्यों के लिए कितने सजग और प्रयत्नशील हैं। माजुली को एक अलग जिला घोषित करते वक्त उन्होंने कहा था- “माजुली एक संभावनाओं और क्षमताओं का खजाना है। इसे जिला बनाने से कई तरह के विकास कार्यों को गति मिलेगी। खासकर कला एवं संस्कृति, पीडब्ल्यूडी, टूरिज्म, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और खेल, कृषि, जल संसाधन और मृदा संरक्षण जैसे मुद्दों पर ध्यान देने में मदद मिलेगी। असम राज्य के लिए इस द्वीप का महत्व इस बात से पता चलता है कि मुख्यमंत्री ने अपनी कैबिनेट को इस द्वीप से संबोधित किया था।

कटाव और पर्यावरणीय क्षति

माजुली द्वीप की खूबसूरती और प्राकृतिक सुंदरता बेजोड़ है। सांस्कृतिक खजाना अद्भुत है। इसी वजह से यह जगह अब यूनेस्को की संभावित वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की सूची में है। सभी उपलब्धियों के बाद भी यह द्वीप एक भयंकर संकट का सामना कर रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ और उसकी वजह से किनारों को होने वाले कटाव से असम ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार को भी सजग होने की जरूरत है। लेकिन यह तथ्य खबरों से दूर ही है। मीडिया का ध्यान इस गंभीर कटाव की ओर गया ही नहीं है। हर साल बाढ़ की वजह से कई लोगों की जान जाती है। डूबने की वजह से हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति बर्बाद हो जाती है। इसके बाद भी कटाव के तौर पर सबसे बड़ी चुनौती सामने हैं। 1990 के दशक में यह द्वीप 1256 वर्ग किलोमीटर था। 2014 तक इसका एक-तिहाई हिस्सा ब्रह्मपुत्र के साथ बह गया। अभी भी इसका कटाव तेजी से हो रहा है।

एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक इस द्वीप के करीब 10,000 परिवार अपना घर गंवा चुके हैं। पुनर्वास के लिए उन्हें वहां से हटाना ही पड़ा। केंद्र सरकार ने 250 करोड़ रुपए इस द्वीप को बचाने के लिए मंजूर किए हैं। लेकिन इसके संरक्षण के लिए जो काम कर रहे हैं, वह इस द्वीप को गायब होने से रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसी भी स्तर पर उन्हें कोई सफलता नहीं मिली है।

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