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मदर टेरेसा घोषित हुईं कलकत्ता की सेंट टेरेसा

September 9, 2016


मदर टेरेसा घोषित हुईं कलकत्ता की सेंट टेरेसा

मदर टेरेसा घोषित हुईं कलकत्ता की सेंट टेरेसा

पोप फ्रांसिस ने रविवार, 4 सितंबर 2016 को मदर टेरेसा को संत की उपाधि से सम्मानित किया। कैथोलिक चर्च की ओर से किसी व्यक्ति को दिया जाने वाला यह सबसे बड़ा सम्मान है। “सेंट ऑफ द गटर्स” के नाम से पहचान रखने वाली मदर टेरेसा ने कोलकाता को अपना अध्यात्मिक घर बना लिया था। पोप ने अपने उद्बोधन में मदर टेरेसा की भरपूर तारीफ की। उन्होंने कहा कि जिस तरह मदर ने समाज से ठुकराए तबके की बेहतरी के लिए काम किया, वह काबिले तारीफ है।

उन्होंने यह भी कहा कि मदर ने अपने काम से उन सभी ग्लोबल लीडर्स को शर्मिंदा कर दिया है जिनकी हरकतों की वजह से गरीबी इस स्तर तक पहुंची है। पोप फ्रांसिस ने मदर की इस बात के लिए भी तारीफ की कि उन्होंने एक चर्च को अस्पताल में तब्दील कर दिया। अध्यात्मिक और भौतिक गरीबी से जूझ रहे लोगों को जीने की राह दिखाई। बुनियादी समस्याओं के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की प्रेरणा बनीं।

यह सब कैसे हुआ?

कैनोनाइजेशन समारोह का आयोजन सेंट पीटर्स स्क्वेयर पर किया गया। इसमें करीब 1,20,000 लोगों ने भाग लिया। हालांकि, जब मदर टेरेसा को सेंट जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया था, तब 3,00,000 लोग मौजूद थे। समारोह में लोगों की कम मौजूदगी की एक बड़ी वजह सुरक्षा और वित्तीय हालात भी हैं, जो यूरोप में इस्लामिक आतंकवाद के हमलों के बाद से चिंताजनक स्तर पर हैं। इन हमलों की वजह से यूरोप में आने वाले धर्मालुओं ने अपनी यात्राओं की संख्या घटा दी है।

हकीकत तो यह है कि समारोह को लेकर ऐसी घबराहट थी कि 3,000 से ज्यादा सुरक्षा अधिकारी जमीन के साथ-साथ हवा में भी सुरक्षा पर नजर रखे हुए थे। भले ही लोगों की संख्या कम हो, इस समारोह को मर्सी या दया के पवित्र वर्ष का केंद्रबिंदु माना जा सकता है। पोप फ्रांसिस ने इसे जुबली वर्ष भी करार दिया है। समारोह में पूरा ध्यान मर्सी यानी दया पर केंद्रित होगा। जुबली वर्ष इस साल नवंबर में खत्म हो जाएगा। निश्चित तौर पर सुरक्षा व्यवस्थाएं उस वक्त तक बनी रहेंगी।

पोप फ्रांसिस ने किस क्षेत्र पर जोर दिया

एक धार्मिक नेता के तौर पर पोप फ्रांसिस ने हमेशा खुद को समाज के हाशिये पर पड़े तबके के लिए समर्पित किया। इनमें वैश्याएं, कैदी, शरणार्थी, बेघर लोग और उनके जैसे ही अन्य लोग भी शामिल हैं। इसे हम इस तथ्य से भी जोड़ सकते हैं कि मदर टेरेसा को कोलकाता की सेंट टेरेसा के तौर पर कैनोनाइज किया गया है। यह मूल रूप से उनकी जिंदगी का जश्न ही है। साथ ही यह भी बताता है कि पोप फ्रांसिस के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्र क्या हैं।

इतना ही नहीं, पोप फ्रांसिस ने इसके लिए गुलदस्ते और उतने ही पत्थर भी हासिल किए हैं। हालांकि, खुद को पूरी तरह मदर टेरेसा की तरह मॉडल किया है। वह बेहद साधारण जीवन जीते हैं। गरीबों की निःस्वार्थ सेवा करते हैं। वह उनके जैसे कद के व्यक्ति के लिए बने अपोस्टोलिक पैलेस में नहीं रहते, बल्कि शरणार्थियों के लिए बने होटल के कमरे में रहना पसंद करते हैं। एक ऐसे युग में जब अजन्मे, बुजुर्ग और गरीब को तुच्छ नजरों से देखा जाता है और खुद के महिमामंडन पर ही ध्यान दिया जाता है, ऐसी बातों पर प्रश्न उठाने के बजाय इनका सम्मान किया जाना चाहिए।

मदर टेरेसा पर धर्मोपदेश

पोप ने मदर टेरेसा के उन कार्यों का भी उल्लेख किया, जहां उन्होंने ठुकराए जा चुके लोगों और बीमारों की सेवा की। मदर टेरेसा गर्भपात के खिलाफ थी। इसी वजह से दुनियाभर के प्रगतिशील लोगों ने उनका विरोध किया। हालांकि, पोप फ्रांसिस ने उनकी इस भावना का सम्मान किया। स्वागत किया और सराहना भी की। पोप ने मदर टेरेसा की इस बात के लिए तारीफ की कि उन्होंने ऐसे लोगों के लिए काम किया जिन्हें सड़क किनारे छोड़ दिया गया था।

पोप फ्रांसिस के मुताबिक, मदर ने ऐसा किया क्योंकि उन्हें इसमें दिव्यता दिखती थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मदर टेरेसा के सौम्य और मृदुभाषी व्यक्तित्व की वजह से उन्हें भी उनसे डर लग रहा था। जब वे 2014 में अल्बानिया गए थे, तब उन्होंने कहा था कि वह मदर टेरेसा के मातहत इसलिए काम नहीं करना चाहते थे कि वह एक दृढ़ निश्चयी महिला थी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उनकी ममता और मासूमियत के बारे में विचार करते हुए उन्हें हमेशा सेंट टेरेसा के बजाय मदर टेरेसा के तौर पर ही याद किया जाएगा।

अपने धर्मोपदेश में, पोप फ्रांसिस ने वहां मौजूद लोगों से कहा कि वे अपने दिल में खुशनुमा बने रहे और यही भावना अन्य लोगों में भी जागृत करें। खासकर उन लोगों में जो इस सफर में उन्हें मिलते हैं और वे किसी न किसी तरह से पीड़ित हैं।

मदर टेरेसा का जीवन

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को एंग्नेस गोंक्सहे बोजक्सियु के तौर पर हुआ। 1929 में लोरेटो ऑर्डर के साथ एक सिस्टर के तौर पर भारत आई थीं। 1946 में उन्हें कोलकाता (उस समय का कलकत्ता) में आने का दिव्य अवसर मिला। उन्हें ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिला, जिन्हें कोई प्यार नहीं करता था और त्याग दिया गया था। वह लोग सामाजिक पायदान में सबसे नीचे थे। उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी का गठन किया। ननों की एक समर्पित संस्था। यही संस्था आगे चलकर पूरी दुनिया में सेवा क्षेत्र के लिए मशहूर हो गया।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी में अब 4,000 सिस्टर हैं। वह सभी ट्रेडमार्क नीली बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनती हैं। वह सभी मदर के निर्देशों पर काम करती हैं- “छोटी-छोटी बातें लेकिन पूरे प्यार से”।

यह नन, ब्रदर्स, प्रीस्ट और को-वर्कर्स के साथ एक ग्लोबल ऑर्डर बन गया। यह सभी आम लोग थे। उन्होंने 1979 में नोबल पुरस्कार मिला था। उनके निधन के बाद सेंट जॉन पॉल द्वितीय ने उनके संतत्व की प्रक्रिया शुरू की।

डार्क खुलासे

यह कहा जाता है कि वयस्क जीवन का अधिकांश हिस्सा उन्होंने अध्यात्मिक अवरोध में बिताया। उन्हें लगता था कि भगवान ने उन्हें छोड़ दिया है। इसी वजह से जब पोप फ्रांसिस ने गरीबों के लिए किए मदर टेरेसा के काम और प्रतिबद्धता का जिक्र किया, तो विरोधाभास भी जाहिर हुआ। हालांकि, मदर टेरेसा का 1997 में निधन हुआ, तब यह खुलासा हुआ कि उन्होंने एक अवधि अकेलेपन, गुमनामी और खुद पर अविश्वास के तौर पर बिताई। इसे धार्मिक बोल-चाल में आत्मा की गहरी काली अंधेरी रात कहा जाता है। कई लोगों के जीवन में ऐसा हुआ है और उसके बाद उन्होंने एक महान जीवन भी जिया। मदर टेरेसा के लिए यह अवधि 50 साल तक चली, जिसके बारे में उनसे पहले कभी नहीं सुना गया था।

कनाड़ा के रेवरेंड ब्रायन कोलोडिएजचुक ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिलवाने के लिए अभियान चलाया। उन्हें लगता है कि इस खुलासे से यह साफ है कि मदर टेरेसा संतत्व की कितनी बड़ी दावेदार हैं। चूंकि उन्होंने भौतिक और अध्यात्मिक बीमारी का भी सामना किया है और इस बीमारी से पीड़ित लोगों की मदद भी की। मदर टेरेसा के लिए अपने धर्मोपदेश में पोप फ्रांसिस को उनकी जिंदगी के इस पहलू का उल्लेख नहीं करना चाहिए था।

कोलकाता में जश्न

कैनोनाइजेशन समारोह का सीधा प्रसारण किया गया था। इसे कोलकाता में हजारों घरों में लाखों लोगों ने देखा। जब मदर को संत की उपाधि से विभूषित किया गया तब तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा शहर ही गूंज उठा। उनके मकबरे को सजाया गया था। उनकी जिंदगी के बाद के हिस्से की तस्वीरें लगानी थी। एक मोमबत्ती और कई फूल लगाए गए थे। जो भी लोग मौजूद थे, वे इस ऐतिहासिक समारोह के साक्षी बने। जिसमें मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी गई।

मदर टेरेसा की आलोचना- चर्च की प्रतिक्रिया

क्रिस्टोफर हिचंस अब तक मदर टेरेसा के सबसे प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने हमेशा मदर टेरेसा पर तानाशाहों से पैसे लेने का आरोप लगाया था। यह एक ऐसा आरोप है, जिसका खंडन अब तक कैथोलिक चर्च करता आया है। इसके बजाय पोप फ्रांसिस ने दुनिया के अन्य शक्तिशाली नामों के साथ किए कामों का जिक्र किया है। आलोचकों को शिकायत रही है कि जो लोग मदर टेरेसा के बनाए आश्रम में रहते हैं, वहां बहुत नारकीय हालात हैं। बदहाली के उदाहरण भी देते हैं। वे मदर टेरेसा को संत कहे जाने पर भी सवाल उठाते हैं। खासकर उनके चमत्कारों पर भरोसा नहीं करते। उन्हें चुनौती देते हैं।

समारोह में मिशनरीज ऑफ चैरिटी

समारोह में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सैकड़ों सिस्टर्स ने भाग लिया। स्पेन की महारानी सोफिया समेत 13 राष्ट्रों के प्रमुख मौजूद थे। उनके साथ ही 1500 बेघर लोग भी मौजूद थे। गैबन से आए यह लोग मास में आए थे। पोप फ्रांसिस ने वैटिकन ऑडिटोरियम में बेघरों के लिए लंच का आयोजन किया था। नेपल्स के पिज्जा मेकर ने पिज्जा सप्लाय किए थे। वे अपने ओवन के साथ समारोह में भाग लेने पहुंचे थे।