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सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली के बारे में मेरा अनुभव

May 23, 2017


डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों को छोड़कर कोई भी अस्पताल जाना नहीं चाहता। हाल ही में मेरे डॉक्टर  ने मेडिकल काल द्वारा सर गंगा राम अस्पताल में अम्नियोसिंटेसिस टेस्ट करने की सिफारिश की थी जो कि पूरी दिल्ली में एकमात्र अस्पताल है जहाँ अम्नियोसिंटेसिस टेस्ट बहुत सावधानी और विशेषता के साथ किया जाता है।

मैं और मेरे पति बहुत जल्दी अस्पताल पहुँचे ताकि अस्पताल में किसी भी प्रकार की भीड़ न हो लेकिन जिस डॉक्टर से मुझे मिलना था वो 11:30 बजे आए। अतः मैंने सोचा कि भीड़ से बचने के लिए पहले से अपॉइंटमेंट लेना बेहतर होता, अब कर भी क्या सकते थे इसलिये जैसे-तैसे अपनी बारी का इंतजार करने लगे। यहाँ पर लगभग देश भर के और विदेशों के भी, समाज के सभी स्तर के मरीज थे। एक महिला मेरे पास बस बैठी थी जो बहुत बातून थी और वह प्रत्येक रोगी से बात कर रही थी। मैं एक ड़ेढ साल के एक बच्चे को देखकर उदास थी जिसकी लम्बाई नहीं बढ़ रही थी लेकिन बाकी क्रियायें सक्रिय थी। इसलिये उसकी माँ चिंतित थी जो जबलपुर से आयी थी। फिर एक और लगभग 36 वर्ष की महिला आ गई जो दूसरी तरफ मेरे बगल में बैठी। मैं आम तौर पर अजनबियों से इतनी आसानी से बात नहीं करती हूँ लेकिन उससे बात करने के लिए एक पहल की। वह तीसरी बार गर्भावस्था में थी। पहले उसकी दो बेटियाँ थीं और उसका परिवार अब एक बेटा चाहता था इसलिये उसे तीसरे बच्चे से बहुत आशा थी। सच कहूँ तो मुझे इस पर बहुत गुस्सा आया लेकिन मैंने उसे महसूस नहीं होने दिया, हालांकि मैंने उससे पूछा कि जब लड़के और लड़कियां बराबर हैं तो आप परीक्षण और गर्भावस्था से संबंधित दर्द और जोखिम को क्यों उठा रही हो? उसने कहा कि यह भारतीयों की मानसिकता है  जो हमेशा लड़की की नहीं लड़के की इच्छा रखते हैं।

फिर उसने मुझसे पूछा, “क्या आपका कोई बच्चा है?” मैंने कहा, “हाँ”। दूसरा सवाल “बेटा या बेटी?” मैंने कहा “बेटा”। उसने कहा,”ओह तो आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।”  लेकिन मेरे और मेरे परिवार के लिए ऐसा कोई पूर्व विचार नहीं था कि हमें एक लड़का या लड़की चाहिए, क्योंकि हम लोग बस एक स्वस्थ बच्चा चाहते थे इसलिये सिर्फ बेटी होने पर आपको दुखी नहीं होना चाहिए। एक बार मैंने परिवारों की खुशियों पर एक सर्वेक्षण पढ़ा और यह निष्कर्ष निकाला कि एक दो बेटियों का परिवार सबसे खुश है लेकिन हमारा मन इस तरह से सोचने के लिए प्रशिक्षित नहीं है। हम जीवन भर किसी चीज़ के लिए भटकते रहें। यही कारण है कि ज्यादातर भारतीयों में ऐसी मानसिकता है कि एक पुरुष बच्चे के जन्म के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। हमें एक बेटे की आवश्यकता क्यों है? सिर्फ इसलिए कि वह बुढ़ापे में अपने माता-पिता के साथ रहेगा और उनकी देखभाल करेंगा जबकि शादी के बाद लड़कियां दूसरे घर में चली जाएंगी। इतना ही नहीं, कई माता-पिता यह मानते हैं कि बेटे की शादी में बहू के साथ निसन्देह दहेज भी मिलेगा। लेकिन मैंने देखा है कि शादी हो जाने के बाद भी लड़कियाँ अपने माता-पिता की देखभाल करती है जब भी उन्हें उनकी ज़रूरत होती है, हालांकि उनके साथ नहीं रह पाती हैं। लेकिन ज्यादातर लड़के शादी हो जाने के बाद तीसरी पार्टी बन जाते हैं और अपनी पत्नियों की सुनते हैं। अतःसिर्फ इसलिए कि यह हमारे पूर्वजों द्वारा होता चला आया है और हमें उस कार्य के अनुसार ही कार्य करना होगा, क्या यह सही है? इन बंधनों से निकलें, अपना विचार बदलें और अपनी लड़की को जीवन दें और तथाकथित पुरुष-वर्चस्व वाले समाज में दृढ़ रहें।

अस्पताल वापस आते हुए सोचा, कि यह एक अच्छी तरह से व्यवस्थि और विभिन्न विभागों में डॉक्टरों की अनुभवी टीमों के साथ एक बहु विशेषता वाला अस्पताल है। एक पूर्ण विभाग अनुसंधान और विकास के लिए समर्पित है। जिनसे मैं मिली थी वो डॉक्टर आई.सी. शर्मा, जेनेटिक्स विभाग के प्रमुख और अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ थे। इसके अलावा जिस डॉक्टर ने अम्नियोसिंटेसिस परीक्षण किया था, वह बहुत अनुभवी था कि मुझे सुई का अंदर जाना भी महसूस नहीं हुआ। लेकिन दूसरी ओर अस्पताल बहुत महँगा है। अम्नियोसिंटेसिस परीक्षण करवाने में कुल खर्चा 13000 रुपये +1000 सांत्वना शुल्क(व्यक्तिगत रूप से बाहर से आए) डॉक्टर के लिए + अल्ट्रासाउण्ड के लिए 3000 रुपये है। सामान्य अल्ट्रासाउंड जिसकी लागत 800 रुपये है वहाँ पर 3000 रुपये खर्च होते हैं। तो कैसे एक सामान्य व्यक्ति इन महँगे परीक्षणों और अस्पताल का खर्च उठा पायेगा?