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पीएम मोदी का बलूचिस्तान कार्ड

August 18, 2016


पीएम मोदी का बलूचिस्तान कार्ड

पीएम मोदी का बलूचिस्तान कार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान और गिलगिटबाल्टीस्तान के स्थानीय लोगों की समस्याओं पर बात कर नया आधार तलाश लिया है। अब इन दोनों ही इलाकों के लोग अपनी आजादी की लड़ाई में सहयोग के लिए भारत की ओर टकटकी लगाकर बैठे हैं।

किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में बलूचिस्तान और गिलगिटबाल्टीस्तान के मुद्दे पर बोलना चौंकाता नहीं है। लेकिन यह कूटनीतिक तौर पर विदेश नीति में नई राह पकड़ने का संकेत जरूर देता है। अब तक भारत में इन विवादित इलाकों पर सीधी चर्चा नहीं होती थी। इनसे बचा जाता था।

मोदी के इस कदम ने अचानक लोगों का ध्यान खींचा। खासकर पाकिस्तान के इन इलाकों और स्वनिर्वासन में यूरोप और अमेरिका रह रहे वहां के लोगों का। प्रधानमंत्री मोदी के अपने भाषण में जिक्र करने भर से इन अलगथलग पड़े समूहों को अपनी आजादी की लड़ाई के लिए नई ताकत मिल गई है।

भारत में एक बड़ा तबका अपने हाथ मसलते हुए आनंदित हो रहा है। यह सोच रहा है कि बरसों तक कश्मीर घाटी में हिंसा को बढ़ावा देने और प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान को करारा जवाब देने के लिए भारत जाग गया है।

भारत में एक तबका ऐसा भी है जो बलूचिस्तान और गिलगिटबाल्टीस्तान को पाकिस्तान से आजादी के लिए और वित्तीय, सामग्री और प्रशिक्षण के संबंध में सीधा सहयोग करने की मांग कर रहा है। कई कट्टरपंथी तो अब बांग्लादेशजैसा सहयोग देने की मांग कर रहे हैं, ताकि जिस तरह पूर्वी पाकिस्तान से अलग करते हुए बांग्लादेश को बनाया, वैसे ही गिलगिटबाल्टीस्तान और बलूचिस्तान को आजाद कराया जा सके।

युद्ध की ओर बढ़ रहे पाकिस्तान से निपटने के लिए भारत की स्थिति और रणनीति क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के बाद भी पाकिस्तान के इन तनावग्रस्त इलाकों में लोगों को सहयोग करने की मांग भारत के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है। जम्मूकश्मीर के मसले पर अब तक भारत उच्च नैतिक मापदंड अपनाता आया है, ऐसे में मौजूदा हालात इसके खिलाफ जा सकते हैं।

1971 के मुकाबले आज की भूराजनैतिक परिस्थितियां बहुत अलग है। उस समय बांग्लादेश को अलग राष्ट्र बनाने के लिए भारत ने अमेरिका और चीन के खिलाफ जाकर फैसला किया था। उस समय पाकिस्तान एक औसत सैन्य शक्ति था। दो मोर्चों पर भारत से लड़ने के लिए उसके पास संसाधन भी सीमित थे। भारतीय सेना के हस्तक्षेप का समर्थन स्थानीय लोग भी कर रहे थे। उस वक्त भारत को कई तरह के लाभ थे। बाकी सब तो इतिहास हो चुका है।

बदलती भूराजनैतिक परिस्थितियां

2016 में आइए और आप पाएंगे कि आज भूराजनैतिक परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी है। पाकिस्तान आज एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है, जो अपने अंदर बढ़ती इस्लामिक कट्टरता से जूझ रहा है। लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार स्थिरता और नागरिक शासन के लिए सेना से स्वतंत्र अस्तित्व तलाशने के लिए संघर्ष कर रही है।

उसका पूर्व सहयोगी, अमेरिका अब पाकिस्तान का साथ छोड़ चुका है। उसका ध्यान अब तेजी से उभरते और मजबूत भारत पर है। चीन हमेशा पाकिस्तान का हरमौसम का साझेदार रहा है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि 1971 के मुकाबले चीन आज न केवल आर्थिक तौर पर बल्कि सामरिक तौर पर भी काफी मजबूत है।

चीन अब पाकिस्तान के सबसे मजबूत सहयोगी के तौर पर उभरा है। न केवल वह पाकिस्तान को जरूरी वित्तीय और तकनीकी मदद कर रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय फोरम पर राजनीतिक सहयोग भी कर रहा है। पाकिस्तान के लिए यही काम पहले अमेरिका किया करता था। दूसरी ओर, अब तक पाकिस्तान का सबसे बड़ा फाइनेंसर सऊदी अरब भी पाकिस्तान और भारत के साथ अपने रिश्तों को नया स्वरूप देने की प्रक्रिया में है।

पूर्व सोवियत संघ भारत का सबसे मजबूत सहयोगी था। लेकिन टूटने के बाद नया रूस अपनी विदेश नीति को नए तरह से अंतिम रूप दे रहा है। अमेरिका और नाटो के साथ उसका शीत युद्ध उसे चीन के साथ खड़ा होने को मजबूर कर रहा है। इस वजह से, भारत को बलूचिस्तान और पीओके के गिलगिटबाल्टीस्तान के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने से पहले यह भी सोचना होगा कि एक तरफ चीन और पाकिस्तान खड़े हैं और दूसरी तरफ तुलनात्मक रूप से न्यूट्रल रूस।

चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और साधारण सभा में पाकिस्तान का खुलकर बचाव किया, वहीं अमेरिका ने भी अपने पूर्व सहयोगी के लिए दरवाजे खुले रखने का संकेत देते हुए उसकी खुलकर आलोचना नहीं की।

अब तक, भारत जम्मूकश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलगथलग करने में कामयाब रहा है। ज्यादातर देश भारत की स्थिति का समर्थन करते आए हैं। लेकिन अब भारत, बलूचिस्तान व पीओके को भी समीकरण में ले आया है। इससे भारत ने बहुत ज्यादा मुद्दे अपने हाथ में ले लिए हैं। क्या हम पाकिस्तान के हाथों खेले जा रहे हैं? हो सकता है कि कश्मीर में पाकिस्तानप्रायोजित आतंकवाद के मुद्दे पर भारत ने जो अपने पक्ष में सकारात्मक माहौल बनाया था, वह बलूचिस्तान और कश्मीर की तुलना करने से हमारा देश खो दें?

इन बरसों में जम्मूकश्मीर की समस्या के इतना बढ़ जाने के मुद्दे पर कांग्रेस को भी अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी। उसके पास कई मर्तबा कड़े राजनीतिक फैसले लेकर बातचीत के जरिए नतीजे पर पहुंचने के मौके आए, लेकिन वह उसका फायदा नहीं उठा सकी।

भाजपा के 2014 में सत्ता में आने का भी कोई लाभ नहीं हुआ। पीडीपी के साथ राज्य में सत्ता के बंटवारे के मुद्दे पर भी उसकी रणनीति नाकाम साबित हुई। मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती हालात को संभाल ही नहीं पा रही है क्योंकि भाजपा राज्य में भी है और नई दिल्ली में भी।

राज्य में कर्फ्यू लगे 40 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं। हालात सुधरने के नाम नहीं ले रहे। इन परिस्थितियों में क्या यह जरूरी था कि प्रधानमंत्री मोदी बलूचिस्तान का मुद्दा उठाए? खासकर ऐसे वक्त पर जब घाटी में हमारी सेना और सुरक्षा बल स्थिति पर काबू करने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

एक स्थिर समाधान की जरूरत है

समस्या यह है कि भारत के पास जम्मूकश्मीर को लेकर लंबी अवधि का कोई विजन या कूटनीति नहीं है। इसके साथ ही पीओके और बलूचिस्तान पर भी कुछ नहीं है। भारत में सभी पार्टियां बंटी हुई और भ्रमित नजर आ रही है।

कई बरसों से, केंद्र सरकार रोजरोज की लड़ाई लड़ रही है। स्थानीय लोगों के दिलों और दिमागों को जीतने का कोई भी साफसुथरा प्लान नहीं है। जब शांति होती है तो उसे भारत का समर्थन समझ लिया जाता है, जो राजनीतिक तौर पर एक बड़ी गलती है।

जम्मूकश्मीर में आतंकवादियों को पाकिस्तानी मदद के मुकाबले में बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर भारत को कुछ ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला। ईरान एक शियाओं के प्रभुत्व वाला देश है और उसे सुन्नियों के प्रभुत्व वाले पाकिस्तान पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है। वह प्रांत के साथ लंबी सीमा होने के बाद भी स्वतंत्र बलूचिस्तान के पक्ष में नहीं है।

उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री मोदी के स्वतंत्र बलूचिस्तान और पीओके को समर्थन देने के लिए विदेश नीति में बदलाव के फैसले पर सवाल उठते हैं। भारत ने जम्मूकश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में पाकिस्तान को अलगथलग करने में कामयाबी पाई है। बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने से पाकिस्तान के इन आरोपों को भी बल मिलेगा कि भारत बलूचिस्तान में उग्रवाद को मदद कर रहा है।

पाकिस्तान को भारत से करारा जवाब मिलना चाहिए, लेकिन बलूचिस्तान का इस्तेमाल एक बड़ी गलती साबित हो सकता है, जिससे बचा जाना चाहिए। वक्त आ गया है जब प्रधानमंत्री मोदी को अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए घाटी के लोगों से सीधा संवाद करना चाहिए। उन्हें अपनी मानवीयता का परिचय कराना होगा। उससे ही वे राजनीतिक बयानबाजी के मुकाबले काफी कुछ हासिल कर सकते हैं।

मोदी द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम:

भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)

‘बेटी बचाओ, बेटी पदाओ योजना’

सुकन्या समृद्धि अकाउंटः भारत में लड़कियों के लिए नई योजना

प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाय)

भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)

2014 में मोदी द्वारा किये गए टॉप पांच कार्यक्रम

प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाय) – एक दुर्घटना बीमा योजना

प्रधान मंत्री मुद्रा योजना