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नरोपा फेस्टिवल 2016 लद्दाख में हिमालय का कुंभ मेला

November 11, 2016


लद्दाख में नरोपा फेस्टिवल 2016: हिमालय का कुंभ मेला

लद्दाख में नरोपा फेस्टिवल 2016: हिमालय का कुंभ मेला

यह एक ऐसा फेस्टिवल है जो हर 12 साल में होता है। इसका अपना इतिहास और परंपरा है। धार्मिक पौराणिक कथाओं के साथ ही खूबसूरत रीति-रिवाज भी इससे जुड़े हैं। पूरी दुनिया से लोग आते हैं और इस मेले में भाग लेते हैं।

यदि आपको लग रहा है कि ऊपर दिया गया विवरण भारत में लगने वाले कुंभ मेले का है, तो आपको देश की नदी घाटियों से निकलकर उत्तर की ओर हिमालय में पहुंचना होगा। यहां, लद्दाख में निर्जन ठंडा रेगिस्तान भी हर 12 साल में आयोजित होने वाले नरोपा फेस्टिवल में जी उठता है। यह अनूठा फेस्टिवल योगी नरोपा के इस जगह पहुंचने की याद में मनाया जाता है। इस दौरान उनकी अध्यात्मिक सीख और जीवन को फिर से जिंदा करने की कोशिश की जाती है।

हेमिस में आयोजित होगा नरोपा फेस्टिवल

इस साल जनवरी में, द्रुकपा ऑर्डर ने घोषणा की थी कि हिमालय बुद्धिस्ट फेस्टिवल- नरोपा फेस्टिवल इस साल जुलाई में आयोजित होगा। लद्दाख के सबसे बड़े बौद्ध मठ, हेमिस मठ की ओर से इस बार फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। 17वीं शताब्दी में स्थापित हेमिस मठ (लेह से 40 किमी दूर) ने दलाई लामा के जुलाई में हुए दौरे की वजह से यह फेस्टिवल सितंबर के लिए स्थगित किया था। यह कार्यक्रम 16 सितंबर 2016 को शुरू होना था। महीनेभर चलने वाला यह फेस्टिवल दुनिया में कहीं भी आयोजित होने वाला सबसे बड़ा बौद्ध समारोह है।

हिमालय का कुंभ

नरोपा फेस्टिवल के इस संस्करण- लद्दाख में आयोजित हो रहे चौथे समारोह, का अपना खास महत्व है। इस साल नरोपा के इस धरती पर आने को 1000 साल पूरे हो रहे हैं। यहीं पर उन्होंने आपसी लगाव और अध्यात्मिक मूल्यों का ज्ञान प्रवाहित किया था। द्रुकपा ऑर्डर के नेताओं के अलावा, करीब 2,00,000 श्रद्धालु इस कार्यक्रम में भाग लेने लद्दाख पहुंच रहे हैं। इनमें से ज्यादातर लद्दाख और शेष भारत के बौद्ध हैं। वहीं भूटान और नेपाल से भी बड़ी संख्या में बौद्ध इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं।

नरोपा फेस्टिवल के दौरान पूरा लद्दाख जिला ही रंगों से खिल उठेगा। पारंपरिक संगीत और नृत्य प्रस्तुतियां पूरे महीनेभर लोगों व मेहमानों को व्यस्त रखेगी। बुद्ध और बौद्ध धर्म के अन्य नेताओं के जीवन का चित्रण करने वाले सांस्कृतिक नाटक भी पेश किए जाएंगे। निश्चित तौर पर यह दर्शकों को रोमांचित करेंगे। हिमालय के तमाम पेशेवर मुखौटाधारी नर्तक भी यहां आने वाले हैं। वे योगी और संत को अपनी ओर से श्रद्धांजलि देंगे।

यह फेस्टिवल सेलिब्रिटी में भी रुचि जगाता है। खबरों के मुताबिक रॉबर्ट कैनेडी जूनियर और मिशेल येओह भी इस साल नरोपा फेस्टिवल में भाग ले सकते हैं। द्रुकपा सेक्ट से जुड़ी 200 नन एक थिएटर प्रस्तुति में भाग लेने के लिए साइकिल पर आएंगी।

नाच-गाने की प्रस्तुतियों के साथ, धार्मिक रीति-रिवाज से प्रार्थनाएं होंगी। शंख बजाए जाएंगे। गोंग और ड्रम की आवाज से पूरा हिमालय गूंज उठेगा। फेस्टिवल के कई आकर्षणों में से एक है द्रुकपा संप्रदाय के प्रमुख ग्यालवांग द्रुकपा। वह अपनी विशेष वेशभूषा में नजर आएंगे। द्रुकपा के प्रमुख को योगी नरोपा का अवतार कहा जाता है। छह हड्डियों की सजावट के पीछे योगी नरोपा के बताए छह धर्म या योग का संकेत है।

यह समझा जाता है कि जो भी भक्त इस छह हड्डियों वाले गहनों को किसी को पहने हुए देखते हैं, उन्हें तत्काल मोक्ष मिल जाता है। कहा जाता है कि इसे देखने वाले को प्रबोधन (चक्रसंवत्सर सशक्तिकरण) मिल जाता है।

बौद्ध की सदियों पुरानी सिल्क ब्रोकेड टैपेस्ट्री वाली भव्य तस्वीर को भी इस दौरान प्रदर्शित किया जा सकता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हिमालय के कुंभ मेले को काफी पसंद किया जा रहा है।

योगी नरोपा- जीवन और अध्यात्मिक ज्ञान

ऐसा समझा जाता है कि बौद्ध योगी नरोपा 1016 से 1100 ईसवी तक रहे। वे मास्टर तिलोपा के शिष्य थे। संत तिलोपा ने ही बका-ब्रागयुड-पा स्कूल की आधारशिला रखी थी। उसके बुनियादी नीति-नियम बनाए थे। नरोपा मारपा के मास्टर थे और उन्होंने नरोपा के छह योग (धर्म) की शिक्षा दी और प्रबोधन की दिशा में आगे ले जाने वाला मार्ग दिखाया।

नरोपा का जन्म बंगाल के एक शाही ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें बहुत ही दयालु के साथ-साथ विद्वान माना जाता है। एक वैज्ञानिक सोच रखने वाले युवा ने अध्यात्मिक ज्ञान हासिल करने की ठानी। अपने मिशन पर आगे बढ़ने के लिए उन्होंने अपने विवाह को खत्म किया। वे नालंदा विश्वविद्यालय में दाखिल हुए। उस समय बौद्ध अध्ययन का मुख्य केंद्र हुआ करता था नालंदा। वे इसी विश्वविद्यालय में रहकर तंत्र और सूत्र में पारंगत हुए। वे धीरे-धीरे अध्यात्म पर धार्मिक चर्चा में प्रवीण हुए और उन्हें सुनने कई लोग पहुंचते थे। उनके कई अनुयायी भी बने।

नरोपा के लिए इतना काफी नहीं था। वे धर्म के सच्चे मायने जानना चाहते थे। वे भगवान बौद्ध के ज्ञान को करीब से जानना चाहते थे। साथ ही प्रबोधन हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहते थे। यह तलाश ही उन्हें संत तिलोपा के पास ले आई। अपने गुरु के मार्गदर्शन में नरोपा ने कड़ी मेहनत की। महामुद्रा या अंतिम समाधि के ज्ञान को हासिल किया। नरोपा के समकालीन अतीसा भी बौद्ध के ज्ञान को फैलाने के लिए तिब्बत गए थे। नरोपा खुद लद्दाख समेत कई स्थानों पर गए।

लद्दाख में उन्होंने झेनस्कार और लमायुरु की गुफाओं में ध्यान लगाया। नरोपा ने जिंदगी के आखिरी वर्ष फुल्लाहारी (इस समय बिहार में) नामक जगह पर बिताए।

बौद्ध धर्म के वज्रयान धारा की आराधना करने वाले नरोपा को 84 संतों (महासिद्धा) में से एक मानते हैं और इसी तरह उन्हें पूजा जाता है। नरोपा के बताए छह योग आज भी वज्रायन के महत्वपूर्ण नियमों में शामिल है।

द्रुकपा वंश

द्रुकपा वंश को अक्सर ड्रेगन वंश भी कहा जाता है। यह तिब्बत और हिमालय क्षेत्र में बौद्ध धर्म के केंद्रीय स्कूलों में से एक है। यह काग्यू स्कूल की ही एक शाखा है। बौद्ध धर्म की द्रुकपा शाखा के अनुयायी लद्दाख में ही सबसे ज्यादा हैं। भूटान में द्रुकपा ऑर्डर को राष्ट्रीय धर्म माना जाता है। हिमालय पहाड़ियों में इस ऑर्डर के 1000 से ज्यादा मठ हैं। इसका नेतृत्व ग्यालवांग द्रुकपा करते हैं। वे अध्यात्मिक नेता होने के साथ ही इन हिस्सों में बौद्धों के संत माने जाते हैं। द्रुकपा या ड्रेगन नाम की भी अपनी एक कहानी है। इसके मुताबिक इस ऑर्डर के नेता सांगपा ग्यारे ने आसमान में नौ ड्रेगन को उड़ते हुए देखा था।

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