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कामकाजी महिलाओं को मिलेगी लंबी मैटरनिटी लीव

August 20, 2016


कामकाजी महिलाओं को मिलेगी लंबी मैटरनिटी लीव

कामकाजी महिलाओं को मिलेगी लंबी मैटरनिटी लीव

10 अगस्त 2016 को राज्यसभा ने मैटरनिटी बेनेफिट एक्ट, 1961 में संशोधन को पारित किया। यह कहना जरूरी है कि इस बदलाव का लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। इसे ऐतिहासिक बदलाव भी कहा जा सकता है। इसकी बदौलत सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में गर्भवती महिलाएं 26 हफ्तों की छुट्टी ले सकती है।

इस बदलाव के तहत कमीशनिंग मां को भी 12 हफ्ते की छुट्टी का प्रावधान है। यह ऐसी मां होती हैं, जो सरोगेट मां की भूमिका निभाती हैं। इसमें वह महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्होंने तीन महीने से भी कम आयु के बच्चों को गोद लिया है।

बच्चों की देखरेख करने वाली माताओं के लिए घर से काम करने का प्रावधान भी दिया जा सकता है। नर्सिंग मां को 26 हफ्ते की छुट्टी मिलने वाली है। उसके बाद भी घर से काम करने की सुविधा को अपनाया जा सकता है। हालांकि, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि काम की प्रवृत्ति क्या है। ऐसी परिस्थिति में नियोक्ता और महिला कर्मचारी के बीच इस बात पर सहमति होना जरूरी है कि महिला घर पर काम कर सकती है या नहीं। इस बिल को 9 अगस्त को नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।

इसे लागू कैसे किया जाएगा?

यह कानून हर उस संगठन पर लागू होगा, जहां 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं। इसमें प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि इस प्रावधान का लाभ निजी और सरकारी क्षेत्र में काम कर रही 18 लाख महिलाओं को मिल सकेगा। बिल को लोकसभा भेजे जाने की उम्मीद है। जहां एनडीए के बहुमत को देखते हुए किसी तरह की दिक्कत आने की आशंका नहीं के बराबर है। संसद में बिल पारित होने पर केंद्रीय श्रम मंत्रालय इसे अधिसूचित करेगा। सभी संबंधित बदलावों को भी उसमें शामिल करेगा। इस समय कामकाजी महिलाओं को 12 हफ्ते का मातृत्व अवकाश मिलता है। इसमें बच्चे के जन्म और बाद की अवधि शामिल है। अतिरिक्त 14 हफ्ते जब उन्हें मिलेंगे तो निश्चित तौर पर कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी।

अपवाद

इस फायदे में कुछ अपवाद भी शामिल है। मसलन, जिन महिलाओं ने दो या ज्यादा बच्चों को जन्म दिया है, उन्हें 12 हफ्ते से ज्यादा का मातृत्व अवकाश नहीं दिया जाएगा।

महिलाओं के लिए उपाय

ऊपर बताए गए संशोधन में महिलाओं को फायदा पहुंचाने वाले कई उपाय किए गए हैं। अब 50 से ज्यादा कर्मचारियों वाले संगठनों में झूलाघर बनाना अनिवार्य होगा। यदि कुछ कंपनियां मिलकर निर्धारित दूरी के भीतर झूलाघर चलाना चाहती हैं तो वह ऐसा कर सकती हैं। नियोक्ताओं को भी कहा गया है कि उन्हें हर दिन चार बार झूलाघर जाना होगा। यह अवधि महिलाओं को दी जाने वाली रेस्ट अवधि में शामिल रहेगी।

सरकार की राय

भारत सरकार को लगता है कि बच्चे के समुचित विकास और पोषण आदि उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है कि मां ही बच्चों की छोटी उम्र में उनकी देखभाल करें। भारतीय लेबर कॉन्फ्रेंस की 44वें, 45वें और 46वें सम्मेलन में भी सुझाव दिया गया था कि महिलाओं को 24 हफ्ते का मातृत्व अवकाश दिया जाए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि यह अवधि आठ हफ्ते तक होगी। रोचक बात यह है कि सरकार के पास पिता बनने वाले पुरुषों के लिए कोई योजना नहीं है। ऐसे लोगों के बारे में सोचा ही नहीं गया। पितृत्व अवकाश जैसा कोई शब्द ज्यादातर कंपनियों की पॉलिसी में शामिल नहीं है।

निजी कंपनियों पर असर

इस समय प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाली महिलाओं को अधिकतम तीन महीने का मातृत्व अवकाश दिया जाता है। कई छोटे संगठनों में ऐसी सुविधाएं भी नहीं मिलती। ऐसे में उम्मीद है कि यह बदलाव छोटी कंपनियों में महिलाओं के पक्ष में जाएगा।

मोदी द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम:

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‘बेटी बचाओ, बेटी पदाओ योजना’

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