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अब दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच 2 घंटे से भी कम समय में यात्रा

April 22, 2017


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चंडीगढ़ से दिल्ली सेमी हाई स्पीड ट्रेन

भारतीय रेलवे, रेल यात्रा का आधुनिकीकरण संचालित करने के लिए अब दिल्ली और चंडीगढ़ के मध्य दूरी तय करने में लगे समय में कटौती करने जा रही है। यह यात्रा अब मात्र एक घंटा पचास मिनट में पूरी होगी। यात्रा के दौरान अंबाला के सिर्फ एक स्टॉप के साथ यह यात्रा पूरी होगी। भारत में दिल्ली और चंडीगढ़ के मध्य यह दूरी शताब्दी एक्सप्रेस द्वारा वर्तमान में तीन घंटे तीस मिनट में तय की जाती है। 245 किलोमीटर की दूरी को देखते हुए यात्रा के समय में महत्वपूर्ण कमी आयी है।

यह कदम 200 कि.मी. प्रति घंटे की यात्रा करने वाली अर्ध-हाई स्पीड ट्रेनों को शुरू करके यात्रा के समय को कम करने की भारतीय रेलवे की कोशिश है। यह एक्सप्रेस रेलगाड़ियों की वर्तमान औसत गति से ऊपर है, जो कि 53 कि.मी. प्रति घंटे या 93 कि.मी. प्रति घंटे के मध्य औसत गति से यात्रा करती हैं।

हालांकि परीक्षण में सबसे तेज ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस रही है, जो दिल्ली और आगरा के मध्य 160 कि.मी. प्रति घंटे की अधिकतम गति से चलती है और 188 किलोमीटर की दूरी लगभग एक घंटे चालीस मिनट में तय करती है।

दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग सर्वप्रथम आधुनिक किए जाने वाले नौ अहम मार्गों तथा अर्ध-हाई स्पीड ट्रेनों के विकास का भागी है। ये है दिल्ली-कानपुर, दिल्ली-आगरा, मुंबई-अहमदाबाद, मुम्बई-गोवा, नागपुर-बिलासपुर, चेन्नई-बेंगलुरु-मैसूर, चेन्नई-हैदराबाद और सिकंदराबाद-नागपुर के रास्ते है।आधुनिकीकरण के लिए कुल 6,400 कि.मी. की दूरी है।

फ्रेंच रेलवे फर्म एसएनसीएफ दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग के लिए व्यवहार्यता और लागत की जांँच का संचालन करेगा तथा इस साल अक्टूबर तक फ्रेंच रेलवे फर्म द्वारा भारतीय रेलवे को अपनी रिपोर्ट देने की उम्मीद है।

इस भाग के आधुनिकीकरण में लगभग 41 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर की औसत दर से 10,000 करोड़ रुपये तक की लागत लगने का अनुमान है। लागत में पटरियों का सुधार, नवीनतम संकेतक, यातायात नियंत्रक उपकरण, रेल के आधुनिक डिब्बे और इंजन भी शामिल हैं।

टैल्गो परीक्षण

भारतीय रेलवे ने जल्द ही स्पैनिश टैल्गो ट्रेन का परीक्षण किया है, जो हल्के एल्यूमीनियम ढाँचे का इस्तेमाल करता है। ट्रेन ने दिल्ली-मुम्बई के मध्य की दूरी 150 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से 12 घंटे से भी कम समय में तय की है, जिससे चार घंटे तक की सामान्य यात्रा का समय कम किया जा सकता है। यह देखने की बात है कि क्या इन डिब्बों को जल्द ही भारतीय रेल की पटरियों पर पहुंँचा दिया जाएगा?

इस बीच, जापान के अलावा जर्मनी, फ्रांस और चीन ने भी भारत को हाई-स्पीड ट्रेनों की श्रेणी में प्रवेश कराने में गंभीर रुचि व्यक्त की है। जर्मनी अपनी मागलिव प्रौद्योगिकी की पेशकश करने के लिए उत्सुकता जगाई है, जो ट्रेनों को 500 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा करने के लिए सक्षम बनाता है।

भारत सरकार ने देश में नवीनतम हाइपरलूप टेक्नोलॉजी की खोज में गहरी रूचि व्यक्त की है।

आवश्यक बुनियादी ढांँचा तैयार करने, रेलगाड़ी निर्माण करने और परीक्षण में उच्च पूंजी लागत, ये सभी प्रमुख बाधाएं बना रही हैं।

केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु रेलवे आधुनिकीकरण के लिए जोर दे रहे हैं। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को सर्वोच्च प्राथमिकता पर ले जाया गया है। अकेले यह परियोजना 90,000 करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना है और बहुत आकर्षक शर्तों पर जापान द्वारा इसे बड़े पैमाने पर वित्त पोषित किया जा रहा है।

चुनौतियां बनी रहें

जहाँ अन्य सभी 9 वर्गों को मुंबई-अहमदाबाद खंड की लागत के लगभग दसवें हिस्से से विकसित किया जाएगा, जबकि कुल वित्त पोषण की आवश्यकता निश्चित रूप से, पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर भारतीय रेलवे पर दबाव डालने वाला है।

रेलगाड़ी पटरियाँ आधुनिकीकरण, संकेतक उपकरणों का उन्नयन, आधुनिकीकरण, रोल विस्तार, और सभी ट्रेनों पर नवीनतम सुरक्षा और टकराव विरोधी उपकरणों की शुरूआत में पीछे है।

ये प्राथमिकताएं रेलवे स्टेशनों और जंक्शनों के प्रस्तावित आधुनिकीकरण और लंबे गलियारों के निर्माण के पूरा होने के अलावा सभी बहुत पूँजी की आवश्यकता वाली वित्तीय चुनौतियाँ हैं।

लेकिन मुंबई-अहमदाबाद और दिल्ली-चंडीगढ़ मार्गों पर शुरुआत की गई है। आइए प्रतीक्षा करें और देखते हैं कि रेलवे इन सभी शेष परियोजनाओं के लिए आवश्यक धन जुटाने के बारे में क्या नीतियाँ बनाएगी।

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