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ओला ने बंद किया टैक्सीफॉरश्योर

August 17, 2016


ओला ने बंद किया टैक्सीफॉरश्योर

ओला ने बंद किया टैक्सीफॉरश्योर

भारत के सबसे बड़े कैब एग्रीगेटर, ओला ने टैक्सीफॉरश्योर (टीएफएस) से जुड़े कारोबार को बंद कर दिया है। इससे करीब 700 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। 18 महीने पहले ही तो ओला ने अपने प्रतिद्वंद्वी टैक्सीफॉरश्योर को 200 मिलियन डॉलर में खरीदा था। टीएफएस के टेक ओवर के वक्त ओला ने दावा किया था कि वह टीएफएस ब्रांड को जिंदा रखेगी और उसकी अलग पहचान को कायम रखने की कोशिश की जाएगी। शुरुआत में लगा कि वह टैक्सीफॉरश्योर को कम दूरी के टैक्सी ऑप्शन के तौर पर रखेगा, जो ओला के मैकेनिक्स और ऑपरेशंस की कमियों को दूर करने में मदद करेगा। लेकिन जब ओला ने अपनी खुद की सेवा ‘माइक्रो’ शुरू की तो लगा कि अब उसकी सोच बदल गई है। माइक्रो के तहत सस्ती एसी कैब का विकल्प ओला यूजर्स के लिए दिया गया था। बीते कुछ महीनों में, माइक्रो सेवा देश के 90 शहरों में उपलब्ध कराई गई है। माइक्रो के दम पर पहली बार ओला इस्तेमाल करने वालों के खाते भी खुले। हकीकत तो यह है कि माइक्रो ने देश में किसी भी अन्य सर्विस प्रोवाइडर के मुकाबले सबसे ज्यादा नए ग्राहक जोड़े।

टीएफएस का एकत्रीकरण और ब्रांड का परिसमापन

ओला ने टैक्सीफॉरश्योर खरीदने के बाद उसके ऑपरेशंस को बेंगलुरू, मुंबई और दिल्ली समेत सिर्फ 11 शहरों तक सीमित कर दिया। इनमें आठ छोटे शहर थे। सभी मेट्रो शहरों में सिर्फ 750 कर्मचारियों को रखा गया था जबकि छोटे शहरों में 240 कर्मचारियों को। इसके बाद भी 310 टीएफएस कर्मचारी ओला में ही काम कर रहे थे। माइक्रो के लॉन्च के बाद इतना तय था कि ओला टीएफएस ब्रांड को खत्म करने वाली है। इसके लिए सिर्फ माकूल वक्त का इंतजार हो रहा था। इस प्रक्रिया में ओला ने टीएफएस ब्रांड को ओला प्लेटफार्म पर लाने के कई उपाय किए। टीएफएस के ज्यादातर ड्राइवरों और ग्राहकों को बोर्ड पर लाया गया और उन्हें ओला का अनुभव दिया गया। जिन शहरों में ओला थी, वहां टैक्सीफॉरश्योर ब्रांड की सेवाओं को सीमित कर दिया। टीएफएस की सेवाओं को भी ओला मोबाइल एप्लीकेशन पर लाया गया। सिर्फ टीएफएस के बेड़े को ओला पर ट्रांसफर नहीं किया बल्कि ड्राइवर्स को ओला ब्रांड स्वीकार करने पर अतिरिक्त सुविधाएं देने का ऑफर भी दिया गया।

700 कर्मचारियों को निकाला

अब टीएफएस और ओला का इंटीग्रेशन पूरा हो गया है, जो कर्मचारी नए प्लेटफार्म पर नहीं आ सके हैं और पुराने टीएफएस से ही जुड़े हैं वह बरोजगार हो जाएंगे। ऐसे करीब 700 कर्मचारी हैं। इनमें सपोर्ट सर्विस वर्टिकल्स, जैसे- ग्राउंड ऑपरेशंस, ड्राइवर रिलेशंस, बिजनेस डेवलपमेंट और कॉल सेंटर सर्विसेस शामिल हैं। ओला ने दावा किया कि जिन कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है, उन्हें नए अवसर हासिल करने में पूरी मदद की जाएगी। खबरों के मुताबिक, जिन कर्मचारियों को निकाला जा रहा है, उन्हें तीन महीने का वेतन दिया जा रहा है। पूरी प्रक्रिया के बाद कंपनी हर महीने करीब 30 करोड़ रुपए की बचत कर सकेगी।

टैक्सी वार

सॉफ्टबैंक की मदद से ओला ने टैक्सीफॉरश्योर को खरीदा था। इसे भारत में टैक्सी वार के मद्देनजर बड़ा कदम माना जा रहा था। ओला और उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी व दुनिया के सबसे मूल्यवान स्टार्टअप उबर के बीच भारतीय बाजार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा हासिल करने के लिए संघर्ष शुरू हो गया था। दोनों ही कंपनियां टैक्सी की किराया दरों पर सरकारी कार्रवाई के खिलाफ एकजुट होकर लड़ रही है। यह कंपनियां अलग कायदे-कानून (अन्य टैक्सी या रेडियो कैब ऑपरेटर्स के अलावा) चाहती है। उबर ने उबर-गो सेवा शुरू की, जो कम दर वाली सेवा है और ओला की लोकप्रियता को बड़ा खतरा भी। दोनों कंपनियों ने राइड शेयरिंग सर्विसेस (उबरपूल और ओलाशेयर) भी ऑफर की है।

अगस्त की शुरुआत में आई खबरों के मुताबिक उबर अपने चीन के ऑपरेशंस अपने प्रतिस्पर्धी दीदी चक्सिंग टेक्नोलॉजी को बेच रहा है। दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा की वजह से चीन में दरों को लेकर युद्ध छिड़ गया था और इसकी वजह से उबर को 2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। डील के तहत दीदी चक्सिंग अब उबर के ग्लोबल ऑपरेशंस में 1 बिलियन डॉलर लगाएगा। इसमें भारत का बाजार भी शामिल है। उबर कंपनी को तेजी से तरक्की की राह पर लाने के लिए पैसे जुटाना चाहता है। इसके लिए आईपीओ लाने की तैयारी में है। उबर अब भारत में ध्यान केंद्रित करना चाहता है। इसके मुकाबले में ओला की ओर से उठाया कदम आने वाले दिनों के युद्ध की तैयारी दिख रहा है।

हैरानी की बात है कि चीन की डील के बाद उबर की दीदी चक्सिंग में हिस्सेदारी है। जबकि दीदी चक्सिंग ओला में एक निवेशक है। अब भारत में दोनों (उबर और ओला) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है।

ओला के बारे में…

एएनआई टेक्नोलॉजी प्रा.लि. का ऑपरेशनल नाम है- ओला। यह कंपनी दिसंबर 2010 में मुंबई में बनी थी। लेकिन बाद में इसका बेस कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में शिफ्ट कर दिया गया। इसके संस्थापक भाविश अग्रवाल और अंकित भाटी इस कंपनी के जरिए ट्रैवल्स और कैब मार्केट में टेक्नोलॉजीकल इनोवेशंस और मोबाइल एग्रीगेटर्स की बढ़ती जरूरत को पूरा करना चाहते थे। शुरुआत से ही कंपनी ने टेक्नोलॉजीकल इनोवेशंस के मामले में उच्च मापदंडों को कायम रखा। जून 2016 में, कंपनी ने ओला ऑपरेटर पर अपना मोबाइल प्लेटफार्म लॉन्च किया। इसके पास इस समय 4.5 लाख कारों का बेड़ा है, जिसे वह दोगुना करना चाहती है। भारत के 102 शहरों में काम कर रही ओला देश में सबसे बड़ी कैब प्रोवाइडर कंपनी बन चुकी है। इसके तहत कई सुविधाएं, जैसे ओला लक्स (लग्जरी व्हीकल), ओला कॉरपोरेट (एम्प्लॉई ट्रेवल/कैब मैनेजमेंट सर्विस) और हाल ही में बेंगलुरू में शुरू की गई इंटर-सिटी कैब और कार रेंटल सर्विसेस शामिल है। 2014 के बाद से ओला ने ऑटो सेवा भी अपने पोर्टफोलियो में शामिल की। यह हालांकि, चुनिंदा शहरों में ही उपलब्ध है। सॉफ्टबैंक के समर्थन वाली ओला की कीमत 5 बिलियन डॉलर है। यह स्थिति दिसंबर 2015 में कंपनी की ओर से फंड बढ़ाने की कसरत का ही नतीजा है।