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प्रधानमंत्री आवास योजना: मलिन बस्तियों का समाधान?

May 25, 2017


Pradhan-Mantri-Awas-Yojana-hindiभूले हुऐ लोग

2011 में, जब जनगणना के आंकड़े सामने आये, तब भारतीय मध्यम वर्ग या इससे उपर की आय वाले लोगों को सामूहिक रूप से बहुत निराशा हुई। देश में झुग्गी निवासियों की संख्या 52 लाख से बढ़कर (2001 के आँकड़ों के अनुसार) 65 लाख हो गई थी। इसमें देश की शहरी आबादी का लगभग 17 प्रतिशत (उस समय) हिस्सा शामिल है। आधा दशक बीतने के बाद यह समस्या अब पहले से कहीं ज्यादा जटिल हो गयी है। हाल ही की रिपोर्टों से यह पता चलता है कि 2017 तक भारत की आबादी 1.28 अरब और झुग्गियों में रहने वाली आबादी बढ़कर 104 मिलियन हो सकती है, जो कुल आबादी का लगभग 9 प्रतिशत होगी।

फिर, 7.6 प्रतिशत जीडीपी विकास दर के लिए उत्साह, सर्जिकल स्ट्राइक, विदेशी संबंधों को मजबूत करना और अंतरिक्ष में 8 नए उपग्रहों को लाँच करना, इन सबसे ऐसा लगता है कि हमारे देश के लोगों ने महत्वपूर्ण छोटे समूह, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वालों को भुला दिया है। हमें यह पूछना चाहिए कि क्या इन झुग्गी निवासियों को सचमुच भुला दिया गया है। या हम केवल एक ऐसी समस्या की अनदेखी कर रहे हैं जो हमारे सामने है? क्या हम यह स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि मलिन बस्तियों का अस्तित्व समस्या है, हमारे देश में झुग्गी निवासियों की उपस्थिति नहीं? क्या हम मलिन बस्तियों के लिए एक व्यवहारिक और टिकाऊ विकल्प बनाने के लिए तैयार हैं?

प्रधानमंत्री आवास योजना

मई 2015 में, जब देश ने शहरी आवास और निवास की समस्या के संकट से जूझना शुरू कर दिया, एनडीए सरकार एक योजना के साथ आई, ऐसी योजना जो शहरी निवासियों को बड़ी राहत देने का वादा करती है और देश में झोपड़ियों की समस्या का सही समाधान करती है। प्रधानमंत्री ने आवास योजना (पीएमएवाई) के शुभारंभ के दौरान अपने संबोधन में कहा कि “देश की 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है और यह सरकार की जिम्मेदारी है उनकी ज़िंदगी के रहन सहन के स्तरों को आगे बढ़ाये। हम उन्हें उनके भाग्य पर नहीं छोड़ सकते….. सभी गरीबों के लिये आवास योजना यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक शहरी गरीब एक घर का मालिक होने में सक्षम हो”

सरकार ने वर्ष 2022 तक देश के शहरी क्षेत्रों में लगभग 20 मिलियन घरों का निर्माण करने का वादा किया है। कम आय वाले लोग इन कम लागत वाले घरों को खरीदने में सक्षम होंगे। साथ ही सरकार ने भी इन घरों को खरीदने में गरीबों को सक्षम बनाने के लिये भारी सब्सिडी वाला होम लोन देने का वादा किया।  प्रधानमंत्री आवास योजना को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री ने दो अन्य योजनाएं- अमृत (अटल मिशन के लिए कायाकल्प और शहरी परिवर्तन) और स्मार्ट शहरों के विकास के लिए एक अन्य योजना का शुभारंभ किया। देश में शहरी परिदृश्य को बदलने के उद्देश्य से तीन योजनाएं बनाई गई हैं।

क्या 2022 तक सभी के लिए आवास संभव है?

आर्थिक रूप से कमजोर और कम आय वर्ग वाले समाज के लिये 20 मिलियन से ज्यादा घरों का निर्माण करने का सपना देश के लिए एक उत्थान दृष्टि के रूप में आया है। योजना के शुरू होने के एक वर्ष बाद सरकार पीएमएवाई के क्रियान्वयन के करीब नहीं है – कम से कम वादा किए गए पैमाने पर भी नहीं। इस योजना के मुताबिक हर साल करीब 3 मिलियन घरों का निर्माण किया जाना चाहिए, लेकिन जून 2016 के अंत में खबरों के मुताबिक करीब 1623 घर बनाए गए हैं। 25 जून 2016 तक केवल 7 लाख मकानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है। इनमें से छत्तीसगढ़ में 718, गुजरात राज्य में 823 और तमिलनाडु में 82 घरों का निर्माण हुआ है। इस योजना में ईडब्ल्यूएस और एलआईजी परिवारों के आवेदकों के लिए 6 लाख रुपये तक के आवास ऋण पर ब्याज सब्सिडी का वादा किया गया था। इन ऋणों पर ब्याज 6.5 प्रतिशत पर आंका गया है। इस योजना के अंतर्गत केवल 7700  ऋण आवेदन मंजूर किए गए हैं। इस दर से 2022 तक सभी के लिए घर एक अपूर्ण सपना बने रहने की संभावना है।

मलिन बस्तियों का पुनर्विकास

इस योजना की सबसे बड़ी विफलता मलिन बस्ती परियोजना के पुनर्विकास से आती है। निजी बिल्डर भारी संख्या में योजना बैंक से मौजूदा मलिन बस्तियों का क्षेत्र या भूमि लेते हैं और उस स्थान को ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवेदकों को आवास उपलब्ध कराने के लिये विकसित करते हैं। ऐसा विचार उन बिल्डरों के लिए था, जिनको झोपड़ियों के निवासियों के पुनर्वास के लिये आवास उपलब्ध कराने के लिये भूमि आवंटित की जाती है। जून 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, इस मॉडल पर एक भी घर नहीं बनाया गया है। इस मॉडल पर आधारित 51 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी, जिनमें से 45 अकेले गुजरात में थीं। इनमें से कोई भी पास नहीं हुई। मलिन बस्तियों के पुनर्विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा 412 करोड़ रुपये की सहायता दी गई थी जिसमे केवल 79 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। इसके व्यय को दिखाने के लिए कोई भी परिणाम नहीं है।

हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इस योजना में कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है और यह जल्द ही हवा हवाई हो जायेगी। मुम्बई में मलिन बस्तियों के पुनर्विकास के लिए एसआरए योजना के बाद प्रधानमंत्री आवास योजना का यह घटक तैयार किया गया था। 24 लाख घरों के लक्ष्य को लेकर 15 साल में केवल 1 लाख झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को घर मिले हैं। मुंबई का धारावी लगभग 10 लाख की झोपड़पट्टी वाला दुनिया का सबसे बड़ा झुग्गियों वाला स्थान है। बुनियादी जीवन शैली और स्वच्छता का अभाव धारावी निवासियों के लिये प्रतिदिन की समस्या है।

सफलता से दूर

दूसरे वर्ष में पीएमएवाई की रिपोर्ट कार्ड में पहले वर्ष के मुकाबले कुछ हद तक बेहतर होने का वादा किया गया है। नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में पूरे भारत में करीब 19,255 घर बने हैं। हालांकि यह काफी सुधार है, यह भारतीय शहरी, विशेष रूप से झोपड़ी में रहने वाले लोगों द्वारा सामना करने वाले आवास संकटों को हल करने के लिए काफी नहीं है। इस योजना की सुस्त गति के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। कुछ लोग इस असफलता के लिये निजी क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता को जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि अन्य मानते हैं कि ईडब्ल्यूएस और एलआईजी का वर्गीकरण उचित नहीं है और इच्छित लाभार्थियों को फायदे तक पहुँच पाने से रोकता है। जो भी कारण हो, लेकिन भारत के झुग्गी निवासियों को एक बहुत ही सोंचे समझे और अच्छी तरह से कार्यान्वित समाधान की आवश्यकता है, बल्कि इनके उत्थान के लिये बहुत अधिक उत्साहित और दिलों जान से प्रयास किये जाने की आवश्यकता होती है।