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चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश की जगहों के नाम बदले जाने पर भारत का पलटवार

April 25, 2017


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अरुणाचल प्रदेश संघर्ष

प्रतिक्रिया की अधिकता पर जवाबी हमला होता है तथा चीन इस सत्य को बहुत अच्छी तरह जानता है। जिस तरीके से बीजिंग ने दलाई लामा द्वारा हालिया सप्ताह में भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर आक्रोश व्यक्त किया है, ऐसा नहीं लगता है कि चीन धैर्य अथवा समस्याओं को दूर करने के लिए राजनयिक वार्ता में विश्वास करता है। सबसे पहले उसने अपने चाइना डेली अखबार के द्वारा भारत को धमकाया, “यदि नई दिल्ली गंदा खेल खेलने को चुनता है….तो बीजिंग को ईंट का जवाब पत्थर से देने में संकोच नही करना चाहिए।” उसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत को चेतावनी दी कि अपने मूल के बचाव के लिए बीजिंग आवश्यक कदम उठाएगा। जब इस धमकी और शोर गुल ने काम नही किया तो चीन ने अरुणाचल प्रदेश में छह जगहों का नाम बदलकर भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र पर अपना दावा अधिक वैध बनाने की कोशिश की। चीनी सूत्रों की माने तो, देश के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने, जब दलाई लामा तवांग और अरुणाचल प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में आए थे ,उसके लगभग 3 दिन बाद 14 अप्रैल को नाम बदलने का काम शुरू कर दिया था। अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों को दिए जाने वाले आधिकारिक नाम हैः वोग्येनलिंग, मिला री, कोइडेनगार्बो री, मेंक्युका, बूमो ला और नामकापब री। हालांकि, चीन पर वापस कड़ा प्रहार करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा, “अपने पड़ोसी के शहरों में आविष्कृत नामों को रखना, अवैध क्षेत्रीय दावों को कानूनी नहीं बनाते हैं। अरुणाचल प्रदेश हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहा है और हमेशा रहेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने आधिकारिक रूप से भारत को कुछ भी नहीं बताया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत को इस मुद्दे को कालीन के नीचे दबाना चाहिए। नई दिल्ली राजनयिक विकल्प सामने रख कर चीन को यह समझाना होगा की इस स्थिति में अचल प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है।

जटिल सीमा समस्या

वास्तव में, चीन के साथ समस्या यह है कि वह सीमा से संबंधित सभी काल्पनिक मुद्दों को वैध दावों में परिवर्तित करने की कोशिश करता है। तिब्बत चीन का कभी भी हिस्सा नहीं था, बल्कि 1950 के दशक में बीजिंग ने इस पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 2008 में दलाई लामा नें दस्तावेजों पर कहा था कि “तिब्बती और ब्रिटिश प्रतिनिधियों द्वारा (जुलाई 1914) में हस्ताक्षरित शिमला समझौते के तहत अरूणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा था।” लेकिन चीन ने शिमला समझौते को खारिज करते हुए कहा कि तिब्बती सरकार सार्वभौमिक या सम्प्रभु नहीं थी इसलिए, संधि समाप्त करने की शक्ति नहीं थी। माओ जेडोंग की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के नेतृत्व में 1949 में खूनी क्रांति के बाद में सत्ता संभालने पर यहाँ विकास शुरू हो गया परन्तु इस क्रांति में हजारों लोग मारे गए थे। कम्युनिस्टों के आगमन के साथ, चीन को चीन गणराज्य की जगह पीपुल्स रिपब्लिक बना दिया गया, जिसने वास्तव में तिब्बत सहित सभी देशों के साथ पड़ोसी संबंध रखें।

क्या चीन भारत के लिए समस्या पैदा कर सकता है?

यह आशंका है कि चीन अपने घनिष्ठ मित्र, पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर में भारत के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है, जो सुरक्षा बलों द्वारा 2016 में आतंकवादी और जे के एल एफ कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से ताजा तनाव में उबल रहा है। चीन यह भी जानता है कि अगर वह कश्मीर में भारत के लिए तनाव पैदा करता है, तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के माध्यम से चलने वाले अरबों डॉलर के चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी)को अत्यधिक क्षति हो सकती है। सीपीईसी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वन बेल्ट वन रोड परियोजना का एक हिस्सा है। चीन ने इस परियोजना पर बेहद निवेश किया है। तीन ट्रिलियन डॉलर तथा दो ट्रिलियन बांड के साथ, बीजिंग इस परियोजना पर किसी भी क्षति को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।। इसके अलावा, चीन की अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है। पिछले तीन सालों में इसकी वृध्दि दर 6.6 से 6.7 प्रतिशत पर स्थिर है। इसकी तुलना में, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 7 प्रतिशत के आसपास रहा है।

क्या चीन भारत के खिलाफ युद्ध शुरू कर सकता है?

भारत की तुलना में अधिक सैन्य ताकत के बावजूद, चीन की पीपुल्स लिबरेशन सेना युद्ध के लिये अधिक सक्षम नहीं है। इसनें 1962 में भारत के साथ केवल एक लड़ाई लड़ी और वह भी विशेषज्ञों की माने तो सीमा झड़प के अलावा कुछ अन्य कहने से इंकार कर दिया है। इसके विपरीत, भारतीय सेना युद्ध के लिए अधिक सक्षम है। भारत नें पाकिस्तान के साथ तीन पूर्ण युद्ध लड़े और 1999 में कारगिल युद्ध लड़ा। चीन के अधिकांश रक्षा उपकरण रूस के हैं; सोवियत युग के उपकरणों की रिवर्स इंजीनियरिंग के द्वारा इस की कुछ रक्षा प्रौद्योगिकी विकसित हुई है, जबकि भारत में रूस, फ्रांस, अमेरिका और इजराइल के उपकरण है और इसी प्रकार, नवीनतम रक्षा प्रौद्योगिकी के मामले में चीन से श्रेष्ठता प्राप्त की है। इन सब के बाद, भारत मिसाइलों के साथ एक परमाणु शक्ति वाला देश है, जो कि बीजिंग और चीन के अन्य हिस्सों को मारने के लिए पर्याप्त है। इसलिए, अगर चीन युद्ध के लिए भारत को भड़काता है तो यह मूर्खता पूर्ण होगा।