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वर्तमान राजनीतिक परिदृश्यः कैसे कर रहा है भारत को प्रभावित

May 30, 2017


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हाल ही में संपन्न बिहार चुनावों को देखते हुए, किसी को थोड़ा पीछे हटकर कुछ सवाल पूछने की जरूरत महसूस हो रही है, कि भारतीय राजनीति की स्थिति क्या है और भारत पर इसका क्या प्रभाव है?

इन चुनावों को प्रधानमंत्री की तुलना में कम से कम एक व्यक्ति की अगुवाई में भाजपा द्वारा किये गये प्रचंड युद्ध के लिये याद किया जायेगा, इसे एक विवादित माहौल के लिये भी याद किया जायेगा जिसके तहत यह लड़ा गया था। इसमें सभी दलों के द्वारा भड़काऊ बयानबाजी और मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिये भरसक प्रयास किये गये।

भारत में चुनावों के दौरान पोल बयानबाजी करना सामान्य है लेकिन इस बार यह स्तर अक्सर व्यक्तिगत और बेल्ट के नीचे रहा, देश के अन्य हिस्से विस्मित, निराश और आश्चर्य से यह सोंच रहे थे कि यह राजनीतिक प्रवचन कहाँ से आ रहे हैं।

लोकतंत्र में, राजनीति को लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है, राजनेताओं से मतदाताओं (जनता) की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करने की अपेक्षा की जाती है, जो उन्हें वोट देते हैं। लेकिन यह एक आदर्शवादी धारणा है। वास्तव में, राजनीति एक व्यवसाय बन गई है, अक्सर एक परिवार का व्यवसाय, जहाँ स्वार्थी, मौद्रिक या अन्य लाभों के लिये लोगों का एक छोटा सा समूह अल्पतंत्र में राजनीतिक मामलों के नियंत्रित करता है।

भड़काऊ बयानबाजी

बिहार चुनावों में पार्टी के केवल बाहरी मामलों में ही नहीं बल्कि आन्तरिक मामलों में भी भड़काऊ या गलत बयानबाजी सामने आयी है, जैसा कि भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का मामला सामने आया है उन्होंने अपनी ही पार्टी के पटना से सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की तुलना एक कुत्ते की है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी की कुत्ते से समानता की गयी है। हाल ही में, भाजपा के राज्यमंत्री और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने भी कुत्ते से समानता करने पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें भारत में प्रचलित राजनीति के अरुचिकारी स्तर को चिह्नित किया गया था। यह अकेले भाजपा के लिए ही सीमित नहीं है, सभी पार्टियों ने ऐसी स्थिति का सामना किया है जिसमें इन गैर जिम्मेदार राजनेताओं के लिये कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

अशिक्षित मंत्री

इस समस्या का एक बड़ा हिस्सा इस तथ्य से स्पष्ट है कि ज्यादातर राजनेता अर्द्ध-शिक्षित या कम से कम संदिग्ध शिक्षित डिग्री वाले होते हैं, यह किसी भी शैक्षिक मूल्य की तुलना में एक औपचारिकता होती है। बेहतर शिक्षित नेताओं और कमजोर शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के बीच स्पष्ट रूप से एक अंतर होता है। यह अंतर उनके राजनीतिक आदान-प्रदान या पार्टी के भीतर या सार्वजनिक जीवन में दिखाई देता है। यह आवश्यक है कि हम शिक्षा की खराब गुणवत्ता वाले नेताओं की तुलना में अधिक शिक्षित राजनीतिज्ञों को पद धारण करने के लिए चुनें।

अपराधी प्राप्त कर रहे हैं प्रमुखता

भारत की राजनीति स्वतंत्र और निष्पक्ष है इसमें अपराधियों की सक्रिय भागीदारी से इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर खतरा उत्पन्न हो गया है। इस वर्ष बिहार में चुनावों पर एक नज़र डालें। चुनाव लड़ने वाले कुल 3450 उम्मीदवारों में से 1038 (38%) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 796 उम्मीदवार (23%) पर हत्या, हत्या का प्रयास करना, महिलाओं के खिलाफ अपराध, अपहरण और सांप्रदायिक असंतोष पैदा करने जैसे गंभीर आपराधिक मामले लंबित थे। तो लोकतंत्र को स्वतंत्र और निष्पक्ष होने का मौका कहाँ है? और क्या यह अन्य शिक्षित और गंभीर नेताओं के लिए उचित है जिन्होंने लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए राजनीति में प्रवेश किया है?

युवाओं ने नकारात्मक राजनीति को नकारा

सभी दलों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिये एक पर्याप्त स्थान है जिन्हें पार्टी द्वारा चुनाव लड़ने के लिये टिकट दिए जाते हैं। प्रत्येक पार्टी नेतृत्व को आजकल की राजनीति में इस तरह की खराब गुणवत्ता के लिये स्वयं की जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। देश भर के युवाओं ने सभी दलों द्वारा खेले जा रहे राजनीति के निम्न स्तर को नकारा है। इसमें युवा अपनी हताशा को सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर व्यक्त कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि युवा पुराने राजनीतिक नेताओं और उनकी ध्रुवीकरण की राजनीति से जुड़ने में असमर्थ हैं, इसलिए सक्रिय राजनीति में आगे आने और भाग लेने के लिये तैयार नहीं हैं।

असहिष्णुता बढ़ना चरम विचारधाराओं का एक सीधा नतीजा है जो यह मानते हैं कि हर किसी को अपने मार्ग और राजनीतिक विश्वास का पालन करना चाहिए।

यह एक ऐसे स्वतंत्र लोकतंत्र के गुणों के विपरीत है, जहाँ सभी को किसी भी जीवन शैली, धर्म या राजनीतिक विचारधारा का पालन करने के लिए स्वतंत्र होने का अधिकार है, जहाँ चर्चा और बहस के माध्यम से सभी निर्णय लिये जाते हैं।

युवाओं को सार्वजनिक जीवन में लोगों और समाज के लिये एक आदर्श के रूप में देखा जा सकता है। जब राजनेताओं ने स्वयं को सार्वजनिक कर लिया तब वे न केवल युवाओं बल्कि समाज के सभी सदस्यों से सम्मान को खोने का जोखिम उठाते हैं।

दुर्भाग्यवश, आज राजनीति की स्थिति खराब है और इसलिए सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आने और देश में राजनीति की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये चर्चा करने की आवश्यकता है।

एक बार उम्मीद थी …

अन्ना हजारे आंदोलन राजनीति को साफ करने का एक प्रयास किया था, लेकिन इस देश के युवाओं से बहुत उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया ने मिलने से इस आंदोलन ने अपना उत्साह खो दिया। उस समय, एक गंभीर आशा थी कि राजनीतिक का एक उत्कृष्ट भाग राजनीति की गुणवत्ता में सुधार करेगी लेकिन यह आशा अल्पकालिक थी। आज, राजनीतिक नेतृत्व मोहभंग और भ्रष्टता ग्रस्त है पार्टी के प्रति राजनेताओं ने बदलाव पर ध्यान नहीं दिया, वे अपनी खोई हुई विश्वसनीयता के बावजूद जोखिम को झेलते हैं।

समस्या यह है कि कुछ बुरे राजनेता पूरी राजनीतिक वर्ग की प्रतिष्ठा को खराब करने के लिए लगातार जिम्मेदार हैं। कई ईमानदार राजनेता आम आदमी के सम्मान को प्राप्त करने के लिये उनकी आवाज उठाते हैं। ऐसे राजनेताओं की आवाज शोर में डूब गयी है और उनकी राजनीति का पतन हो रहा है। यह एक दुःख की बात है कि राजनीति की मजबूती ने नेतृत्व को सकारात्मक कार्रवाई करने से रोक रखा है।

कार्यवाई का बुलावा

सार्वजनिक दलों में एक न्यूनतम मानक प्रोटोकॉल की स्थापना करने के लिये सभी पार्टियों को एक साथ आकर चर्चा और बहस करने की तत्काल आवश्यकता है। इस प्रोटोकॉल का सभी दलों द्वारा संसद के अंदर और बाहर पालन को सुनिश्चित करना चाहिए। पार्टी नेताओं और कार्यकर्तओं के द्वारा सार्वजनिक जीवन में प्रोटोकॉल का एक न्यूनतम मानक बनाए रखने के लिये प्रत्येक पार्टी को यह जरूरी है कि वह अपनी जाँच और संतुलन को सुनिश्चित करे। किसी भी रूप में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। क्या यह बहुत ज्यादा उम्मीद है?