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पीवी सिंधु ने रियो ओलिम्पिक्स 2016 में रचा इतिहास

August 23, 2016


पीवी सिंधु के तौर पर भारत को एक महिला चैम्पियन मिल गई है। ऐसी चैम्पियन जो बैडमिंटन में आने वाले वक्त का सितारा हैं। उन्होंने रियो 2016 ओलिम्पिक्स में रजत पदक जीता। इससे भी बढ़कर स्वर्ण पदक जीतने वाली मौजूदा वर्ल्ड चैम्पियन कैरोलिना मरीन के खिलाफ फाइनल में जबरदस्त प्रदर्शन किया। एक पल के लिए भी नहीं लगा कि मुकाबला एकतरफा हो गया है। अंत तक सिंधु ने जीवटता दिखाई। फाइनल मैच के बाद उन्होंने कहा- “मैं सातवें आसमान पर हूं।”

उनकी हार में भी भारत को एक सितारा मिल गया। एक ऐसी प्रतिभा जो अगली पीढ़ी को खेलों में भाग लेने को प्रेरित करेंगी। उनका सिल्वर मेडल भारत के लिए सिल्वर लाइनिंग साबित होगा।
फाइनल तक पीवी सिंधु की राह

विश्व की नंबर 10 खिलाड़ी सिंधु के लिए फाइनल की राह आसान नहीं थी। जितना मुश्किल उनका ग्रुप था, उसमें कड़े मुकाबले खेलने पड़े। उनका पहला मुकाबला हंगरी की लॉरा सरोसी से था, जिन्हें उन्होंने 21-8, 21-9 से सिर्फ 29 मिनट में हरा दिया।

उनका अगला मुकाबला विश्व की 20वें नंबर की खिलाड़ी कनाड़ा के मिशेल ली से था। पहला गेम उन्होंने पूरी ताकत से खेला और 21-19 से जीता भी। हालांकि, सिंधु ने वापसी करते हुए अगला गेम आसानी से 21-15 से जीता। तीसरा गेम भी अपनी लय में दिख रही सिंधु ने 21-17 से अपने पक्ष में किया। कनाड़ाई खिलाड़ी से उनका यह मुकाबला 76 मिनट चला।

प्री-क्वार्टरफाइनल दौर में पीवी सिंधु ने चाइनीज-ताईपे की झु यिंग तई से मुकाबला किया। विश्व में नंबर आठ की खिलाड़ी तई से मुकाबला मुश्किल समझा जा रहा था, क्योंकि इससे पहले तई ने सिंधु के साथ-साथ अपने से ऊंची वरीयता प्राप्त खिलाड़ियों को भी शिकस्त दी थी। हालांकि, सिंधु का आक्रामक खेल उन पर हावी रहा। सिंधु ने 42 मिनट चले इस मुकाबले में तई को 21-13, 21-15 से सीधे गेम में हराया।

उनका क्वार्टरफाइनल मुकाबला विश्व की दो नंबर की खिलाड़ी और ओलिम्पिक में रजत पदक विजेता चीन की यिहान वांग से था। चीन की दीवार को पार करना सिंधु के लिए मुश्किल समझा जा रहा था। लेकिन सिंधु ने पूरी ताकत लगा दी। उन्हें यह पता था कि यदि वांग को हरा दिया तो आगे की राह इतनी मुश्किल नहीं होगी। पदक की उम्मीद भी बढ़ जाएगी।

उन्होंने ऐसा ही किया। 55 मिनट चले इस करीबी मुकाबले में सिंधु ने वांग को 22-20, 21-19 से हराया। सिंधु ने पहली ही बार खेलते हुए ओलिम्पिक के सेमीफाइनल में जगह बनाकर इतिहास रच दिया।

अब उनका मुकाबला विश्व की नंबर छह खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा से था। ओकुहारा उनके और मेडल के बीच खड़ी थी। सिंधु ने महसूस किया कि यह मुकाबला उनके और इतिहास रचने की कड़ी है। उन्होंने कोई गलती नहीं की। वह प्रतिबद्ध थी और स्वर्ण पदक जीतने की राह को पार करने की दिशा में आगे बढ़ती गई।

ओकुहारा के खिलाफ पहला गेम मुश्किल था। जापानी खिलाड़ी ने सिंधु को पछाड़ने का हरसंभव प्रयास किया। लेकिन सिंधु ने पहला गेम 21-19 से जीता। दूसरे गेम में जापानी खिलाड़ी वापसी करती हुई नजर आ रही थी। दोनों खिलाड़ी 10-10 पर थे। तब सिंधु ने आक्रामक खेल का परिचय दिया और लगातार 11 अंक अर्जित करते हुए 21-10 से दूसरा गेम भी जीता और इतिहास भी रच दिया। ओलिम्पिक की एकल स्पर्धा के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली सिंधु देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई थी।

एक अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में आशा की किरण जाग गई थी। उम्मीदों का बोझ सिंधु पर था। लग रहा था कि मौजूदा फार्म में वह फाइनल मुकाबला भी जीत सकती है।

फाइनल मैच रियो में उनका सबसे मुश्किल मैच साबित हुआ। उन्हें दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी स्पेन की कैरोलिना मरीन से भिड़ना था। यह एक बड़ा मैच साबित होने वाला था। मरीन को अपनी नंबर एक की कुर्सी बचानी थी, जबकि सिंधु को एक बार फिर अपने से ऊंची वरीयता वाली खिलाड़ी को हराकर इतिहास रचना था। ओलिम्पिक में किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने ऐसा अब तक नहीं किया था।

पूरा देश उत्साहित हो गया जब फाइनल में सिंधु ने पहला गेम 21-19 से अपने नाम कर लिया। इससे दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी भी चकित थी। मरीन ने दूसरे गेम में पूरी ताकत लगा दी और भारतीय चुनौती को हर मोर्चे पर ध्वस्त कर दिया। सिंधु की गलतियों ने भी मरीन का साथ दिया। इस तरह पहले उन्होंने बड़ी बढ़त हासिल की और फिर 21-12 से गेम भी जीत लिया। इस तरह फाइनल मुकाबला रोचक हो गया था। 1-1 की बराबरी पर था।

सिंधु कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहती थी, लेकिन शुरुआत ही गलतियों से हुई। ऐसा लगा कि दबाव सिंधु पर ज्यादा है। मरीन ने तेजी से बढ़त बढ़ाते हुए 5-1 कर ली थी। लेकिन सिंधु ने एक फाइटर के तौर पर वापसी की। जब तीसरे गेम का पहला हिस्सा खत्म हुआ तब मरीन 11-10 से आगे थी।

आखिरी गेम के अंतिम चरण में, सिंधु ने तनाव में आ चुके देश को उम्मीद की एक किरण भी दिखाई। ऐसा लगा कि वह वापसी कर रही है। लेकिन मरीन ने अपने कई साल के अनुभव का इस्तेमाल किया और क्रॉस-कोर्ट स्मैश की एक सीरीज जमाकर गोल्ड मेडल की दौड़ में सिंधु को पछाड़ दिया। उन्होंने तीसरा गेम 21-15 से जीता। लेकिन इस स्कोर से आपको यह अंदाजा नहीं मिलता कि चैम्पियन को सिंधु ने किस कदर परेशान किया।

सिंधु ने रजत पदक लिया। लेकिन उनके इस मेडल ने अगली पीढ़ी को उनकी राह पर चलने को प्रेरित किया है। यह जीत किसी भी मापदंड पर महान प्रयास है, लेकिन पीवी सिंधु के लिए यह आखिरी कोशिश नहीं है। वह सिर्फ 20 साल की है। उनका सबसे अच्छा खेल अभी सामने आना है। यदि उन्होंने अपने फिटनेस के स्तर को बनाए रखा तो उन्हें आने वाले बरसों में विश्व में नंबर एक बनने से नहीं रोक सकता। सिंधु ने भले ही सिल्वर मेडल हासिल किया हो, लेकिन उनका प्रदर्शन सिल्वर लाइनिंग की तरह है, जो आने वाले बरसों में नई पीढ़ी को आगे बढ़ने और मेडल जीतने के लिए प्रेरित करेगा।

पुलेला गोपीचंदः चैम्पियन बनाने की मशीन

पूर्व ऑल इंग्लैंड विजेता को चोट की वजह से अपना करियर छोड़ना पड़ा था। उन्होंने गेम से जुड़े रहने के लिए युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था। लेकिन गोपीचंद कोई साधारण कोच नहीं है। उनके अपने सपने हैं। उनकी आकांक्षाएं हैं। वह उन युवाओं के लिए कुछ करना और उन्हें कुछ बनाना चाहते हैं। सफलता की भूख उन्होंने ही खिलाड़ियों में जगाई है। उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबु नायडू ने पांच एकड़ की जमीन 45 साल के लिए लीज पर दी थी। जिस पर गोपीचंद ने अपनी बैडमिंटन कोचिंग एकेडमी शुरू की।

उस समय गोपीचंद के पास पैसे की कमी थी। उन्हें तब व्यापारी निम्मागड्डा प्रसाद का साथ मिला। उन्होंने एकेडमी बनाने के लिए पांच करोड़ रुपए की मदद की थी।

आज, पुलेला गोपीचंद एकेडमी विश्व-स्तरीय कोचिंग संस्थान के तौर पर पहचानी जाती है। जहां से हाई-क्वालिटी बैडमिंटन खिलाड़ी निकल रहे हैं। पीवी सिंधु जब गोपीचंद के पास आई थी तब वह एक छोटी बच्ची थी। वह ही क्यों, अन्य युवा जैसे साइना नेहवाल, किदाम्बी श्रीकांत और पी. कश्यप उन अन्य नामों में से हैं, जिन्होंने गोपीचंद की प्रतिबद्धता और कोचिंग क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित किया है। वह संयम के साथ युवा खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारते हैं और उन्हें नए मुकाम पर ले जाते हैं।

यदि पीवी सिंधु ने सिल्वर मेडल जीता है तो कोचिंग का गोल्ड पुलेला गोपीचंद को जाता है। अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है। उनकी एकेडमी में दाखिल होने के लिए कई युवा प्रतिभाएं लालायित है। पीवी सिंधु और गोपीचंद ने अन्य खिलाड़ियों और कोच के लिए भी मापदंड स्थापित किए हैं। यह भारत के लिए निश्चित तौर पर एक प्रेरणादायी और अच्छी खबर है।