मूवी रिव्यु – वाय चीट इंडिया
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने इमरान हाशमी की फिल्म ‘चीट इंडिया’ के टाइटल को “वाय चीट इंडिया” का नाम दिया है, जो समाज के लिए एक दर्पण है। और, बेशक, यह एक सुंदर तस्वीर नहीं है। हमारी शिक्षा प्रणाली में फैली गंदगी का पता लगाने के लिए, इमरान हाशमी अभिनीत फिल्म बहुत ही कड़वी जमीनी हकीकत के साथ उस पर हमला करती है।
क्या आप यह तय नहीं कर पा रहे कि इस वीकेंड यह फिल्म देखने लायक है या नहीं? तो यह जानने के लिए इस लेख को पढ़िए।
निर्देशक – सौमिक सेन
निर्मिता – भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर, परवीन हाशमी
लेखक – सौमिक सेन
कलाकार – इमरान हाशमी, श्रेया धन्वंतरी
बैकग्राउंड स्कोर – नील अधिकारी
सिनेमेटोग्राफी – वाई. अल्फोंस रॉय
संपादक – दीपिका कालरा
प्रोडक्शन कंपनी – टी-सीरीज फिल्म्स, एलिप्सिस एंटरटेनमेंट, इमरान हाशमी फिल्म्स प्रोडक्शन
कथानक
फिल्म में राकेश सिंह उर्फ रॉकी भैय्या की कहानी दिखाई गई है। वह एक कॉनमैन (चीट करने वाला व्यक्ति) है, जो हाशमी द्वारा सामान्य कौशल और प्रतिभा के साथ निभाया गया पात्र है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा क्लीयर करने के अपने प्रयासों में तीन बार असफल होने के बाद, अब रॉकी एक आकर्षक व्यंगोक्ति में सिस्टम से टकरा रहा है। वह एक व्यवसाय का मालिक है जो परोक्षी परीक्षाओं से पैसा कमाता है।
दूसरे शब्दों में, वह गरीब मेधावी छात्रों की बुद्धि और योग्यता का इस्तेमाल करके अमीर बच्चों को एक्जाम में पास करवाता है, उन्हें अपने सपनों के कॉलेजों में जाने में मदद करता है। बेशक, वह इसे गरीब, मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए कुछ रुपये कमाने के अवसर के रूप में भी देखता है। ऐसे ही एक टॉपर में आता है, सत्तू उर्फ सत्येंद्र (स्निघदीप चटर्जी)। राकेश उसे एक प्रस्ताव देता है जिसे वह अस्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से है और यह मौका उसे एक रोशनी की तरह दिखता है। हालांकि, तेज-तर्रार ग्लैमर में फंसे सत्येंद्र खुद को नशे की लत, वेश्यावृत्ति के जाल में फंसा हुआ पाते हैं।
वाय चीट इंडिया आपको भ्रष्ट शिक्षा प्रणाली, छात्रों पर बढ़ते दबाव और कई ऐसे ही मुद्दों से दो चार कराती है। और, वह भी सब हमारे नायक या बल्कि खलनायक राकेश के माध्यम से।
रिव्यु
निर्देशक-लेखक सौमिक सेन ने निश्चित रूप से एक ऐसी कहानी को चुना है, जो दर्शकों को झकझोर कर रख देगी। हमारी शिक्षा प्रणाली में पिछड़ापन और त्रुटियां एक हकीकत है जिसे हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं। हालांकि, फिल्म देखते वक्त किसी के लिए भी अफसोस नहीं होता है क्योंकि ये फिल्म एक जगह पर टिकती नहीं है। जिस वजह से यह फिल्म दर्शकों को जोड़ने या प्रभावित करने के लिए पर्याप्त गति एकत्र करने में नाकाम रही है।
हालांकि हाशमी मास्टरमाइंड माफिया की भूमिका निभाते हुए अच्छा काम करते हैं, जबकि अपने चरित्र को संभाले रखने के लिए उनकी खुद की कमियां हैं। राकेश अनैतिक संचालन करते हुए खुद भी कुछ ‘भाषण’ देते हैं और उसी प्रणाली की निंदा करते हैं। इमरान हाशमी ने ओलिवर स्टोन की वॉल स्ट्रीट से क्लासिक “लालच अच्छा है” डॉयलाग बोला है। लेकिन, यह सब बहुत “वाय चीट इंडिया” क्लासिक फिल्म के साथ आम है। गति सुसंगत है, जिससे आप संवेदनशील सामग्री की गहराई को महसूस करने में असमर्थ रहे हैं।
हमारा फैसला
रचनाकारों ने अच्छी कोशिश की है, लेकिन यह एक हिट और मिस था। अगर फिल्म बेढ़ंगे संपादन को निखारने में कामयाब रहती, कंसट्रक्शन पर थोड़ा-बहुत काम किया गया है, तो यह अच्छी सूची में जगह बना सकती थी। “कभी-कभी, बॉलीवुड हमें इस तरह की एक अच्छी फिल्म देता है”। इसके बजाय, इसमें समय और गति की कमी लगती है।
एक सकारात्मक टिप्पणी पर, हाशमी को एक बार फिर “हाशमी” की भूमिका निभाते हुए और उसे अच्छी तरह से करते हुए देखना एक ट्रीट है। चटर्जी ने भी अपनी पहली अदाकारी के साथ ईमानदारी से अच्छा काम किया है, और उम्मीद है हमें आगे सिनेमा घरों में अच्छी फिल्में देखने को मिलेंगी।
अब, एक सुनहरा सवाल : क्या आपको फिल्म पर अपना पैसा और समय खर्च करना चाहिए? यदि आपके पास इस वीकेंड करने के लिए बेहतर कुछ नहीं है और आप हाशमी के प्रशंसक हैं, तो यह एक बार देखने लायक हो सकती है। आखिरकार, इस फिल्म में अच्छे मोमेंट्स हैं।




