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भारत में किन्नरों के अधिकार

July 28, 2016


कैबनेट ने किन्नरों को अधिकार संपन्न बनाने वाले विधेयक को दी मंजूरी

कैबनेट ने किन्नरों को अधिकार संपन्न बनाने वाले विधेयक को दी मंजूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 19 जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016 को मंजूरी दे दी। भारत सरकार की कोशिश इस बिल के जरिए एक व्यवस्था लागू करने की है, जिससे किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने के अधिकार मिल सके। यह उम्मीद की जा रही है कि यह विधेयक भारतीय किन्नरों के लिए मददगार साबित होगा। हमारे देश में ऐसे लोगों को सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता है। इनके लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। यह विधेयक भी इसी दिशा में एक प्रयास है। यह भी उम्मीद की जा रही है कि किन्नरों के साथ अपमानजनक और भेदभाव वाले व्यवहार में कमी लाने में यह विधेयक कामयाब होगा। सबसे जरूरी है, विधेयक के जरिए किन्नरों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिसके लिए वे लंबे समय से प्रयत्नशील हैं।

समग्रता

भारत सरकार का मानना है कि ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016 पास होता है तो इसके नतीजा यह होगा कि किन्नर भी अपने आपको इस समाज का एक अंग महसूस कर सकेंगे। उन्हें यह लगेगा कि वे जिस समाज में रहते हैं उसके लिए कुछ बड़ा योगदान देना चाहिए। यह विधेयक भारत में हर संबंधित व्यक्ति को बैठकर यह सोचने को मजबूर कर देगा कि वे किन्नरों की पीड़ा को समझे और कानून का पालन करे। केंद्र, राज्य सरकारों के साथ ही केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनिक निकायों को यह बात समझना जरूरी है कि उन्हें किन्नरों के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए और ध्यान देने की जरूरत है।

भारत में किन्नरों की स्थिति

भारत में किन्नरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत ही कर दिया जाता है। उन्हें समाज से अलगथलग कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें न तो पुरुषों में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं में, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है। यह भी उनके सामाजिक बहिष्कार और उनके साथ होने वाले भेदभाव का प्रमुख कारण है। इसका नतीजा यह है कि वे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। बेरोजगार ही रहते हैं। भीख मांगने के सिवा उनके पास कोई विकल्प नहीं रहता। सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते। विधेयक को अंतिम रूप देते वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और कानून मंत्रालय को इसके जैसे बहुत से मुद्दों को सुलझाना पड़ा। इन मुद्दों में अपने समाज के लोगों द्वारा ही इन लोगों को समाज से बाहर निकाल देना भी शामिल था। उन्होंने इस पर भी चर्चा की कि इन लोगों को बंधुआ मजदूरी या भीख मांगने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है।

किन्नरों पर निजी विधेयक

एक साल पहले राज्यसभा ने निजी विधेयक पारित किया थाद राइट्स ऑफ ट्रांसजेंडर्स पर्सन्स बिल 2014, जो किन्नरों के अधिकारों की बात करता था। डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने 2015 में यह विधेयक प्रस्तुत किया था। उस समय यह पूर्व अपेक्षित नहीं था और उस विधेयक को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016 का पहला वर्जन माना गया। उसी को आधार बनाकर नया विधेयक तैयार किया गया है। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने इसे तैयार किया है। हकीकत तो यह है कि चार दशक में पहली बार ऊपरी सदन में किसी निजी विधेयक को मंजूरी दी गई है।

विधेयक में दंडात्मक प्रावधान

विधेयक के अनुसार किन्नरों का उत्पीड़न या प्रताड़ित करने पर किसी भी व्यक्ति को 6 महीने की जेल हो सकती है। ऐसे मामलों में अधिकतम सजा कुछ वर्षों की भी हो सकती है।

सामाजिक लाभ

विधेयक के मुताबिक, किन्नरों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में शामिल करने का प्रस्ताव है। हालांकि, यह तभी लागू होगा, जब वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं होंगे। यानी यदि वे अजाअजजा का हिस्सा हैं तो उन्हें उसका ही लाभ मिलता रहेगा।

किन्नरों की स्थिति

अप्रैल 2014 में भारत की शीर्ष न्यायिक संस्थासुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (एनएएलएसए) की अर्जी पर यह फैसला सुनाया गया था। इस फैसले की ही बदौलत, हर किन्नर को जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें एकदूसरे से शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी मिल गया। वे बच्चों को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के तहत वारिस होने एवं अन्य अधिकार भी मिल गए।

कोई भ्रम नहीं

इसी महीने नई व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि एनएएलएसए का फैसला लेस्बियन, बाईसेक्सुअल्स और गे पर लागू नहीं होगा क्योंकि उन्हें तीसरे लिंग के समुदाय में शामिल नहीं किया जा सकता।

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