सचिन और टीम इंडिया
सचिन तेंदुलकर – इस नाम का परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं है। 24 अप्रैल 1973 को मुंबई के दादर में जन्मे सचिन को हमेशा उनकी अच्छी बल्लेबाजी के लिये जाना जाता है। वह दो दशकों से अधिक समय तक टीम इंडिया के प्रमुख बल्लेबाज रहे। सचिन ने 11 साल की उम्र में खेलना शुरू कर दिया था। जब तक वह 16 साल के हुए, तब तक उन्होने वसीम, वकार और इमरान की गेंदबाजी का सामना उनके ही घर के मैदान पर किया, जब भारत ने 1989 में पाकिस्तान का दौरा किया था। वह उस समय ऐसे व्यक्ति थे जिस पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी होती थीं जब वह अपने हाथों में बल्ला लेकर मैदान में खेलने जाते थे।
सचिन एक शुद्ध एवं संतुष्ट व्यक्ति हैं और उनकी बल्लेबाजी में कोचिंग नियमों के सभी सिद्धांत थे – सही संतुलन, गति की मितव्य्यता, सटीक स्ट्रोक बनाने की क्षमता और अगोचर गुण केवल प्रतिभाओं के लिए – संभावना, यह सभी चीजें उन्हें महान और दूसरों से अलग बनाती हैं। उनके पास किताबों में लिखे हुये सभी शॉट्स थे। ऐसा नहीं था कि वह टीम इंडिया में एकमात्र बल्लेबाज थे, लेकिन उनके प्रदर्शन के आभास और उनके प्रदर्शन की चमक से परे कोई नही निकल सकता था। उनका नाम हमेशा टीम शीट पर पहला होता था
सचिन को हमेशा हर समय सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज के रूप में गिना जाता था और जो भी उन्होंने हासिल किया है वह इस तथ्य का प्रमाण है। सौ अंतर्राष्ट्रीय शतक बनाने वाले वह एकमात्र खिलाड़ी हैं, वह एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय में दोहरा शतक बनाने वाले पहले बल्लेबाज हैं। वह ओडीआई और टेस्ट क्रिकेट दोनों में सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 30,000 से अधिक रन पूरे करने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं। राष्ट्र सौ से कम रन उनकी विफलता मानता था। सचिन टीम इंडिया की रीढ़ थे और हालांकि अपने करियर के दूसरे भाग में उन्हे द्रविड़, सहवाग, गांगुली और वीवीएस जैसे खिलाड़ियों का समर्थन था वह हमेशा विपक्षी टीमों के लिए महत्वपूर्ण विकेट बने रहे। कई उदाहरण हैं जहाँ उनकी प्रतिभा टीम के हर खिलाड़ी पर छाया के रुप में बनी रही।
उन्होंने छह विश्व कप में भाग लिया और वर्तमान में उनका नाम विश्व कप में सबसे अधिक रनों का रिकॉर्ड रखता है। उनका टीम इंडिया के लिए विश्वकप जीतने का सपना था और इस सपने को 2 अप्रैल 2011 में उन्होने श्रीलंका के खिलाफ वानखेड़े में पूरा किया। वह पहले भी दो मौकों पर विश्वकप जीतने के करीब पहुँचे थे। 2003 में भारत विश्वकप के फाइनल में पहुँचा लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल मैच नहीं जीत पाया। सचिन को मैन ऑफ टूर्नामेंट के रूप में चुना गया था, लेकिन उस व्यक्ति के लिये यह खिताब कोई माइने नहीं रखता है जो हमेशा अपने देश को अपने आप से पहले रखता हो।
उन्होंने बहुत कम समय के लिये टीम इंडिया की कप्तानी की लेकिन उनकी कप्तानी बहुत सफल नहीं रही। हालांकि तेंदुलकर टीम इंडिया का एक अभिन्न अंग बने रहे और कई अवसरों पर उन्हें कप्तानों के साथ चर्चा करते देखा गया। वह हमेशा अपने अनुभव का उपयोग करने के लिए तैयार थे और टीम की हरसंभव सहायता करते थे। राहुल द्रविड़ और गांगुली जैसे खिलाड़ियों की कप्तानी में सचिन ने अपने प्रर्दशन से उन्हे विभिन्न आदानों में श्रेय दिया जो टीम के लिए उपयोगी साबित हुए।
1994 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार, 1997 में राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान और 1999 में पद्म श्री और 2008 में पद्म विभूषण पुरस्कारों से संम्मानित किया गया था। वह भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं। उन्होंने 2013 में क्रिकेट के सभी संस्करणों से संन्यास ले लिया लेकिन वह अभी भी कई तरह से भारतीय क्रिकेट में शामिल हैं। वह उस टीम का हिस्सा हैं जो टीम इंडिया के लिए कोच का चयन करती है।
उनके जीवन की यात्रा पर बेहतरीन फिल्म सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स बनायी गयी है। 26 मई 2017 को रिलीज़ हुई फिल्म में उनकी जीवन यात्रा एक छोटे लड़के के रुप में शुरु होती है जिसने दुनिया का सबसे अच्छा क्रिकेटर बनने के लिए अपने पहले मैच में ही जीतोड़ मेहनत की। सचिन इस समय भले ही सुर्खियों में नहीं रहे हैं क्योंकि वह अब क्रिकेट के खेल में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन आने वाली पीढ़ियों में उन्हे क्रिकेट के देवता के रुप में जाना जाएगा। आने वाली पीढ़ीयों के लिये यह मानना मुश्किल होगा कि एक आदमी करीब 24 साल तक एक अरब से अधिक लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार खेल सका।
यदि क्रिकेट एक धर्म है तो सचिन उसके भगवान हैं।