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फिल्म सरकार-3 की समीक्षाः एक बड़ी निराशा

May 14, 2017


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पात्र- अमिताभ बच्चन, अमित साध, रोनित रॉय, जैकी श्रॉफ, मनोज बाजपेयी, यामी गौतम, रोहिणी हट्टांगड़ी

निर्देशक- राम गोपाल वर्मा

उत्पादक- राहुल मित्रा, आनंद पंडित, गोपाल दलवी, कृष्ण चौधरी, वीवन

लेखक- पी. जया कुमार

संवाद- राम कुमार सिंह

पटकथा- राम गोपाल वर्मा

कहानी- नीलेश गिरकर

संगीत- रवि शंकर

छायांकन- अमोल राठौड़

संपादन- अनवर अली

उत्पादन हाउस- अलम्ब्रा इंटरटेनमेंट, वेव सिनेमा, कंपनी प्रोडक्ट, एबी कार्प लिमिटेड

अवधि- 2 घंटे 12 मिनट

शैली- नाटक

सेंसर रेटिंग- यू/ए

आशा-

इस फिल्म से भूखी भीड़ को परोसने के लिये, अच्छे रसोइयों द्वारा सुगंधित मसालों युक्त बिरयानी को धीमी आँच पर पकाने जैसी आशा की जा रही है।

वास्तविकता-

अच्छी सामग्री को अनिश्चित अनुपात में मिलाकर और कम मसाला डालकर जल्दी से पकाया गया हो जिसको  बासी और  ठंडा करके परोस दिया गया हो।

यह राम गोपाल की सरकारी फ्रेंचाइजी से तीसरी किश्त का सच है।

राम गोपाल वर्मा का प्रसिद्ध प्रबंधन कौशल पिछली कुछ फिल्मों में विफल रहा है। इसलिये, कुछ घबराहट के भावों के साथ हम फिल्म सरकार-3 को देखने के लिये तेजी से उत्सुक हैं। अमिताभ बच्चन के लिए हमारा प्यार और अदभुत आशा है कि हम अभी तक शानदार नाटक, गहरे भय, डर, सम्मान, और प्रेम जो कि सरकार फिल्म की खूबियां हैं, जिन्होंने ने हमें पहले शो के लिये आकर्षित किया। लेकिन कहावत है कि जितनी अधिक हमारी उम्मीद होगी उतनी ही अधिक निराशा होगी।

कथानक या इसकी कमियाँ

‘सरकार’ में सुभाष नागरे (अमिताभ बच्चन) इस फिल्म में एक कमजोर और बूढ़े व्यक्ति की भूमिका निभा रहे हैं। उनकी उम्र के बावजूद उनके दो बेटे, शंकर और विष्णु सरकार (पिछली फिल्मों में) महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पैठ जमाने का प्रबंध करते है। उनके दो भरोसेमंद सहयोगी गोकुल (रोनित रॉय) और रमन (पराग त्यागी) उन्हें ऐसा करने देते हैं।

इसी समय विष्णु के बेटे शिवाजी (अमित साध) वापस आकर अपने दादाजी से जुड़ना पसंद करते हैं। शिवाजी उर्फ चीकू अपने पिता की मौत के कारण सरकार के खिलाफ अपनी दुश्मनी को जारी रखता है लेकिन उसके इन इरादों को फिल्म की शुरूआत में नहीं दिखाया गया है। हालांकि, उनकी प्रेमिका अन्नू (यमी गौतम), अपने पिता की मृत्यु पर सरकार से बदला लेने की कोशिश कर रही है।

दुबई में व्यापार करने वाले वैल्या (जैकी श्रॉफ), भारत में सरकार को नष्ट करने का प्रयास करने वाले गोविंदा देशपांडे (मनोज बाजपेई) जैसे गुंडो और बेईमान राजनेताओं को नियंत्रित करते हैं।

कथानक, पूरी तरह से भावशून्य और पूर्वकथनीय है, यह सरकार की उम्र के बावजूद उनके विरोधियों की सोचने की क्षमता के आसपास ही घूमता है।

अच्छाईयाँ और बुराईयाँ

यह मामला हमें राम गोपाल वर्मा पर ही छोड़ देना चाहिए। वह एक खराब, और घटिया फिल्म बनाने के लिये असाधारण कलाकारों को चुनते हैं, अमिताभ बच्चन और जैकी श्रॉफ जैसे बड़े-बड़े अभिनेताओं से लेकर रोहिणी हट्तांगड़ी, मनोज बाजपेई और सुप्रिया पाठक जैसे अद्भुत कलाकारों के साथ अमित साध और यमी गौतम जैसे कई युवा करिश्माई कलाकर युक्त यह फिल्म वाकई में देखने योग्य है।

आंतरिक रूप से बेकार कथानक, किसी भी भय या खौफ को समाप्त करने वाले रहस्य पूर्ण संवाद, अनावश्यक या खराब निर्देशन कौशल इस फिल्म को बर्बाद कर सकते हैं।

अगर कोई ऐसी चीज है जो सरकार-3 को निर्जीव बनाती है तो वह है अनावश्यक संवाद।

सुभाष नागरे उर्फ अपने गॉडफादर इस फिल्म में बहुत कम शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, इनमें अपने विरोधियों की भविष्यवाणी करने की भी महान क्षमता है, एक व्यक्ति की निराधार वफादारी और दर्द से उबारने वाला व्यक्तित्व उन्हें हमारे दिलों का राजा बनाती है। यह सरकार-3 में मिलने वाला सुभाष नागरे नहीं है। यहाँ वह ऐसा एक व्यक्ति है जो बहुत अधिक बात करता है। वह अपने प्रिय मित्र की हत्या कर दिये जाने पर, अपने मित्र के हत्यारे से बदला लेने की शपथ लेना चाहता है, वह अपने दोस्त के हत्यारे को अपने घर पर आमंत्रित करके उससे बदला लेने की योजनाओं को समझाता है। उसके अंगरक्षक अच्छे नहीं हैं- वे उसे बिना पलक झपकाये मार सकते हैं लेकिन वे अपने चेहरे छिपायेंगे और सरकार-3 में बहुत आँसू बहायेंगे।

राम गोपाल वर्मा को एक मजबूत कथानक की जरूरत नहीं थी। उनकी कहानी में कई असाधारण पात्र हैं। मनोज बाजपेयी का मानना था कि उनकी माँ और राजनैतिक मास्टरमाइंड, के जटिल रिश्ते थे, एक असाधारण ईमानदार मुख्यमंत्री नागरे अपने अंधेरे घर में दुखी है, नागरे की मरने वाली पत्नी सरकार की छाया में रहती है, यह सब एक कहानी थी जो एक अच्छे कथाकार और अधिक सक्षम निर्देशक के हाथों प्रकट होने का इंतजार कर रही थी। फिल्म के अंत में थोड़ा रहस्य है (“गोविंदा, गोविंदा”) में सीपिया टोन के कारण यह एक अच्छा छायाचित्र बनाने में सफल रही। हम चाहते हैं कि राम गोपाल वर्मा बेवकूफ राजनीतिज्ञों, डॉल्फिन और ड्रोन तथा बिकनी पहने वाली महिलाओं पर कम ध्यान लगायें। हम कामना करते हैं कि उन्हें अपने कहानी लेखन कौशल पर थोड़ा ध्यान देना चाहिये। इसके लिए हम कामना करते हैं………

सरकार-3 के संगीत की समीक्षा

सरकार-3 का संगीत औसत श्रेणी का है। हम गोविंदा  के गाने को पसंद करते हैं जिसने फिल्म को आकर्षण प्रदान किया। इसमें अमिताभ बच्चन की आवाज में गणेश आरती को जोड़ सकते हैं और यही वह गाने हैं जिनको आप दोबारा सुन सकते हैं।

गाने-

गाना- एंग्री मिक्स

गायक- मीका सिंह, सुखविन्दर सिंह

अवधि- 5:07 मिनट

गाना- सरकार ट्रेंस

गायक- निलादरी कुमार

अवधि- 3:18 मिनट

गाना- गणपति आरती

गायक- अमिताभ बच्चन

अवधि- 4:04 मिनट

गाना- सम दम

गायक- नवराज हंस

अवधि- 5:03 मिनट

गाना- गुस्सा

गायक- सुखविन्दर सिंह

अवधि- 5:05

गाना- शक्ति

गायक- सुखविन्दर सिंह, साकेत बैरोलिया, आदर्श शिंदे

अवधि- 4:32 मिनट

हमारा निर्णय

आपको केवल अमिताभ बच्चन के कारण इस फिल्म को  देखना चाहिये। अमिताभ बच्चन एक मुख्य पात्र हैं उनकी इस फिल्म में काफी अच्छी जगह है। चाय की प्लेट में चाय पीने का उनका प्रलोभन, उदासीन लेकिन अतिप्रवर्तक , सरकार का विरोध करने के लिये बहुत अच्छा हो सकता है। यदि आप इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के अलावा कुछ और देखने के लिये अपना पैसा खर्च करने की योजना बना रहे हैं तो आप बुरी तरह से निराश होने के लिये तैयार रहें।