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सेल्फी से मौतें – भारत सबसे आगे

August 9, 2017


Selfimania Imapacti_hindiलोगों के बीच सेल्फी लेने की एक नई लहर फैली हुई है, यह खासकर युवा पीढ़ी में ज्यादा है। आपको रेलवे स्टेशन, रेस्तरां, पार्क में या किसी अन्य स्थन चाहे वह सुंदर हो या न हो युवा स्वयं की तस्वीरें लेते हुए मिलेंगे, इन तस्वीरों को आमतौर पर सेल्फी के नाम से जाना जाता है। हालांकि ये सेल्फी किसी व्यक्ति की फेसबुक पोस्ट के लिए अच्छी हैं, लेकिन कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ सेल्फी के जुनून में युवा गंभीर रूप से घायल हो गए हैं या सेल्फी लेने की कोशिश करते समय उनकी मौत हो गई है। आस-पास के परिवेश से बेखबर, लोग चलते वाहनों पर सेल्फी लेने में गिरकर घायल हो रहे हैं या मर रहे हैं। कुछ व्यक्ति तो इससे भी ज्यादा आगे निकल गये हैं जो खतरनाक स्थानों या कठिन स्थितियों में सेल्फी लेने के प्रयास में एक भयानक हादसे (मौत) का शिकार हो गये। हाल ही में 17 वर्षीय किशोरी प्रीती पीज का मामला इसका जीता जागता उदाहरण है। यह लड़की मरीन ड्राइव पर स्थित टेट्रापोड्स पर सेल्फी लेने का प्रयास कर रही थी। तभी ऊँचा ज्वार आया और उस लड़की को समुद्र के पानी में बहा ले गया। यह मामला कुछ अलग नहीं है लेकिन इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें लोगों को अपनी कीमती जिंदगी से हाथ धोना पड़ गया।

भारत में सेल्फी का क्रेज

वास्तव में, भारत में सेल्फी का बहुत क्रेज है और इससे होने वाली दुर्घटना दर इतनी अधिक है कि एक नए शोध में पाया गया कि भारत में दुनिया की सेल्फी से संबंधित सबसे अधिक मौतें हुई हैं। अध्ययन में बताया गया है कि भारत में मार्च 2014 से सितंबर 2016 तक सेल्फी लेने से 60 प्रतिशत मौतें हुई थी। “मी, मायसेल्फ एंड माय किल्फीः कैरेक्टराईजिंग एंड प्रीवेंटिंग सेल्फी डेथ्स” नामक शीर्षक वाले एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि दुनिया भर में सेल्फी लेने में 127 मौतें हुई थीं जिनमें से भारत में 76, पाकिस्तान में सिर्फ 9 मौतें हुईं जबकि अमेरिका और रूस में सेल्फी के कारण 8 और 6 मौतों के मामले सामने आए। अध्ययन करने वाले अध्ययनकर्ताओं (लेखकों) को उम्मीद है कि उनका अध्ययन एक तरफ लोगों के लिए चेतावनी के रूप में काम करेगा और दूसरी तरफ एक ऐसी तकनीकि के विकास को प्रेरित करेगा जो सेल्फी लेने वाले लोगों को खतरे की स्थिति में चेतावनी दे सके।

सेल्फी के कारण मौत क्यों?

वास्तव में, युवा खतरनाक सेल्फी लेने की ओर अधिक उन्मुख होते हैं। रिपोर्ट में ट्विटर पर पोस्ट की गई बड़ी संख्या में सेल्फियों का विश्लेषण किया गया है, जिससे यह निष्कर्ष निकला है कि इनमें से 13 प्रतिशत सेल्फी खतरनाक स्थितियों में ली गई थी। हैरानी की बात यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चे 24 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। जबकि दुनिया में अधिकांश लोग सेल्फी लेते समय ऊँची इमारतों और पहाड़ की चट्टानों से गिरने पर मौत की अगोश में समा गए, भारत में सेल्फी से अधिकांश मौतें जल से संबंधित स्थानों या रेलवे ट्रैक के पास हुई हैं। आभासी वास्तविकता की दुनिया में, लोगों में आपसी बंधन कमजोर हो रहे हैं और नई पीढ़ी सेल्फी की ओर अधिक उन्मुख होती जा रही है।

खतरनाक स्थानों पर ‘नो सेल्फी जोन’

भारत में सेल्फी से होने वाली मौतों की बढ़ोतरी ने सरकार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस मामले पर संज्ञान (ध्यान देना) लेते हुए सरकार ने 2015 में आयोजित होने वाले कुंभ मेले को ‘नो सेल्फी जोन’ घोषित कर दिया था। अब इस सूची में और अधिक क्षेत्रों को जोड़ा जा रहा है। पर्यटन मंत्रालय ने राज्य सरकारों को कुछ लोकप्रिय पर्यटक स्थलों को ‘नो सेल्फी जोन’ के रूप में चिह्नित करने के लिए नोटिस दिया है। चूँकि सेल्फी लेते वक्त अधिकांश मौतें पानी वाले स्थानों के पास हुई हैं और इस प्रकार के पानी वाले स्थान मुंबई में अधिक पाए जाते हैं इसलिए सरकार ने यहाँ के 16 स्थलों को ‘नो सेल्फी जोन’ के रूप में घोषित किया है, जिनमें जुहू, दादर बीच का सामने का भाग, चौपाटी और मरीन ड्राइव आदि शामिल हैं। सेल्फी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए मुंबई पुलिस ने इन क्षेत्रों पर चेतावनी वाली साइटों को स्थापित किया है। लोगों पर नजर रखने के लिए काफी अधिकारियों को तैनात किया गया है।

सेल्फी लेना गलत नहीं है लेकिन आस-पास के परिवेश के बारे में जागरूक होना बहुत जरूरी है। खतरनाक स्थानों पर सेल्फी लेने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि हमेशा ही खेद जताने के बजाय सुरक्षित रहना ज्यादा बेहतर होता है।