सातवां वेतन आयोग: उम्मीदें और विवाद
नवीनतम अपडेट: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जून, 2016 को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन से 47 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारी और 52 लाख पेंशनधारक लाभान्वित होंगे और उन्हें उम्मीद है कि उन्हें अगस्त, 2016 के बाद से उनका संशोधित वेतन प्राप्त होने लगेगा।
रक्षा कर्मियों सहित केन्द्र सरकार के सभी कर्मचारी सातवें वेतन आयोग की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आजादी के बाद से, भारत के पास मौजूदा वेतन, मुद्रास्फीति और अन्य प्रभाव लागत की समीक्षा करने तथा केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन ढाँचे में उपयुक्त संशोधन करने के लिए सात वेतन आयोगों की स्थापना की गयी है।
सातवां वेतन आयोग
24 फरवरी 2014 को भारत सरकार ने सातवें केन्द्रीय वेतन आयोग के गठन की घोषणा करते हुए गजट अधिसूचना जारी की, इसमें जस्टिस ए.के.माथुर अध्यक्ष के रूप में, विवेक राय – सदस्य (पूर्णकालिक), डॉ. राथिन रॉय – सदस्य (अंशकालिक) और मीना अग्रवाल – सचिव के रूप शामिल हैं। सातवें वेतन आयोग ने अपनी सिफारिशें 18 महीनों (अगस्त 2015 तक अपेक्षित) के भीतर प्रस्तुत की हैं तथा इसे 1 जनवरी 2016 से लागू किया जाना है।
‘संदर्भ की शर्तें’ वेतन, भत्तों, सुविधाओं और लाभों सहित नकदी के मूल्यों के बारे में परिवर्तनों की समीक्षा, विकास और अनुशंसा करने के लिए थीं। आयोग को बोनस की मौजूदा योजना और उत्पादकता और प्रदर्शन पर असर देखने, प्रोत्साहन, उत्पादकता और अखंडता को प्रोत्साहन देने, प्रोत्साहन योजना की जाँच करने और अन्य रिटायरमेंट लाभों के साथ पेंशन योजना की जाँच करने के लिए कहा गया है, जो निम्नलिखित पर प्रभाव डालेगा:
- केंद्र सरकार के कर्मचारी – औद्योगिक और गैर-औद्योगिक
- अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित कर्मचारी
- संघ शासित प्रदेशों के कर्मचारी
- भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग के अधिकारी और कर्मचारी
- संसद के अधिनियमों के तहत नियामक निकायों (आरबीआई को छोड़कर) के सदस्य
- सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारी और कर्मचारी
- सेनोओं के सभी कर्मचारी
वर्तमान के आधार पर आयोग ने निम्नलिखित सिफारिशों के लिए शासनादेश दिया है:
- वेतन संरचना, संबद्ध लाभ और मौजूदा सेवानिवृत्ति लाभ
- देश में आर्थिक स्थितियां और वित्तीय विवेक
- विभिन्न कल्याणकारी उपायों और विकास व्यय को पूरा करने के लिए संसाधनों की पर्याप्तता
- राज्य सरकार पर वित्त के रूप में प्रभाव ज्यादातर राज्य आयोग द्वारा उनकी प्राथमिकता के अनुसार कुछ संशोधन के साथ की गयी सिफारिशों को अपनाना है।
- सर्वश्रेष्ठ वैश्विक प्रथाएं और उनको अपनाना
वर्षों से वेतन आयोग
हितधारक प्रत्येक वेतन आयोग की सिफारिशों से पहले अपेक्षित वेतन वृद्धि के स्तर पर बहस करते रहे हैं।
पहले वेतन आयोग की स्थापना जनवरी 1946 में श्रीनिवास वरुणचिरियर द्वारा हुई तथा मई 1947 में तत्कालीन अंतरिम सरकार के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
द्वितीय वेतन आयोग को अगस्त 1957 स्थापित किया गया और 1959 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। वेतन आयोग का नेतृत्व जगन्नाथ दास ने किया और इसका केंद्रीय विषय था कि कम से कम योग्यता वाले लोगों की भर्ती करके सरकार के कामकाज को सुनिश्चित करना, ताकि लोगों को सरकारी सेवाओं में शामिल होने का अवसर मिल सके।
तीसरे वेतन आयोग की स्थापना अप्रैल 1970 में रघुबीर दयाल की अध्यक्षता में की गई और मार्च 1973 में इसकी रिपोर्ट सौंपी गई। पाकिस्तान के साथ एक महंगे युद्ध के चलते वेतन आयोग ने पहले दो आयोगों से अलग दृष्टिकोण अपनाया, जिस में न्यूनतम वेतनमान स्तर पर वेतन रखा गया था। पहली बार आयोग ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता को संदर्भित किया कि भुगतान संरचना में पर्याप्तता, व्यापकता और समग्रता की अवधारणाओं को शामिल किया जाये ताकि उचित मुआवजा सुनिश्चित किया जा सके। इस दृष्टिकोण ने सरकार को 1.44 अरब रुपये खर्च कराये, जो उस समय लागत में एक महत्वपूर्ण वृद्धि थी।
चौथे वेतन आयोग की स्थापना पीएन सिंघल की अध्यक्षता में जून 1983 में हुई और चार साल की अवधि के दौरान तीन चरणों में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
पाँचवें वेतन आयोग की स्थापना न्यायमूर्ति एस. रत्नेवेल पंडियन की अध्यक्षता में 1994 में हुई थी। इस आयोग ने अपनी छाप छोड़ी क्योंकि इसकी सिफारिशों का न सिर्फ केंद्री पर एक बड़ा असर पड़ा था, बल्कि पहली बार राज्य सरकारों पर भी असर पड़ा था। इसकी सिफारिशों के कारण केंद्र सरकार के खर्च में वृद्धि हुई, जिसमें वेतन, पेंशन और अन्य संबंधित लागतों में 99% की वृद्धि हुई और राज्य सरकारों ने 74% की वृद्धि की। व्यय में नाटकीय वृद्धि ने एक बड़ा विवाद बनाया जिससे 13 राज्यों ने अपने वेतन दायित्वों को पूरा करने और केन्द्रीय सहायता प्राप्त करने में विफल कर दिया।
अन्य कट्टरपंथी सिफारिशों में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के स्तर में 30% की कमी आई थी। आयोग ने सुझाव दिया कि सरकार को 3,50,000 नौकरियों की रिक्तियों को भरना नहीं चाहिए। यहाँ तक कि विश्व बैंक ने लागत में वृद्धि और सुधार के उग्र स्तर पर आश्चर्य व्यक्त किया। हालांकि, सरकार ने किसी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया।
छठे वेतन आयोग की स्थापना न्यायमूर्ति बीएन श्रीक्रिष्णा की अध्यक्षता में 5 अक्टूबर 2006 को हुई और 24 मार्च 2008 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। आयोग ने निम्नलिखित सिफारिशें कीं:
- भारत सरकार के सचिव पदों और कैबिनेट सचिव के लिए विशेष वेतनमान
- समूह ‘बी’ और ‘सी’ कर्मचारियों के लिए एक चल रहे बैंड और समूह ‘ए’ पदों के लिए चलने वाले दो बैंड के साथ चार अलग-अलग चल रहे वेतन बैंड का परिचय।
- चार अलग वेतन बैंडों पर चलने वाली कुल ग्रेड की संख्या पहले के 35 से कम होकर 20 हो गई।
- नागरिकों के समक्ष रक्षा बलों के चलने वाले वेतन बैंड और ग्रेड वेतन की अनुमति दी जा सकती है
- प्रदर्शन संबंधित प्रोत्साहन योजना (पीआरआईएस) का परिचय
- पेंशन का औसत भुगतान का 50% या अंतिम वेतन तैयार किया जाना चाहिए
सातवां वेतन आयोग के संबंध में विवाद
अंतर-सेवा प्रतिद्वंद्विता कुछ सेवाओं द्वारा प्राप्त वेतन और लाभों के लिए विस्तार। आईएएस अधिकारियों के खिलाफ व्यापक असंतोष है, जो सबसे अधिक वेतन आयोगों द्वारा अनुग्रहित होने के लिए देखा जाता है। भारतीय राजस्व सेवा ने सातवें वेतन आयोग के हिस्से के रूप में शामिल किए जाने वाले आईएएस अधिकारियों की आपत्तियों को उठाया है क्योंकि उनके पक्ष में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। आईआरएस लॉबी का मानना है कि उन्हें आईएएस के समतुल्य होने का अधिकार है क्योंकि सरकार का राजस्व उनके द्वारा एकत्र किया जाता है।
रक्षा बलों के लिए यही सत्य है। कई वर्षों से, तीनों सेनाओ में सबसे वरिष्ठ पदों को पदोन्नति, वेतन और लाभ के संदर्भ में क्रमशः डाउनग्रेड किया गया है, जबकि आईएएस लॉबी ने अपने कद, पदोन्नति, उपायों और लाभों को क्रमशः बढ़ा दिया है, जो कि वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों ने प्राप्त किया है।
इसके अलावा, रक्षा बलों के वेतन आयोग पर सेवाओं के प्रतिनिधित्व के लिए लंबे समय से मांग (सही तरीके से) है, क्योंकि खासकर भूमिका, जिम्मेदारियां और काम के जोखिम सेना बलों के लिए अद्वितीय हैं और इस प्रकार एक योग्य प्रतिनिधि की आवश्यकता होती है जो काम की प्रकृति और इस प्रकार उस के आधार पर उपयुक्त सिफारिशें कर सके। इन सभी वर्षों में आईएएस लॉबी द्वारा इस मांग का जोरदार विरोध किया गया है।
यह देखना बाकी रहेगा कि आयोग की स्थापना के दौरान वर्तमान सरकार अपने विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की मांगों के साथ कैसे काम करती है।
हाल ही हुए परिवर्तन
मैक्वेरी इंडिया: सातवां वेतन आयोग मध्य 2016 से लागू किया जा सकता है
मैक्वेरी इंडिया ने कहा है कि सातवां वेतन आयोग 2016 के मध्य से लागू होने की संभावना है। मैक्वेरी इंडिया के प्रबंध निदेशक राकेश अरोड़ा ने कहा कि यह अभी भी अनिश्चित है कि अगले छह महीनों में नया वेतन आयोग क्रियान्वित होगा। छठे वेतन आयोग को लागू करने के लिए 2.5 साल लग गए थे।
19 नवंबर को प्रस्तुत होने वाले सातवें वेतन आयोग पर एक रिपोर्ट
सूत्रों के मुताबिक सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें 19 नवंबर, 2015 को वित्त मंत्री को प्रस्तुत की जाने की संभावना है। यह भी माना जाता है कि नया वेतन आयोग केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों और पेंशनधारियों के वेतन में केवल 15% वृद्धि करेगा जो कि 2008 में छठे वेतन आयोग में लागू 35% वृद्धि से बहुत कम है। सातवां वेतन आयोग 1 जनवरी 2016 से लागू हुआ।
सातवें वेतन आयोग में वेतनों में 40% की वृद्धि की संभावना
क्रेडिट सुइस के एक विश्लेषक के अनुसार, सातवां वेतन आयोग सरकारी कर्मचारियों के वेतन को लगभग 40% बढ़ा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मध्यमवर्ग एक-तिहाई सरकारी नौकरी पर कार्यरत है, इस वृद्धि से “विवेकाधीन खर्च” को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि वृद्धि विशेष रूप से टियर 3 और टियर 4 शहरों में अचल संपत्ति बाजार को बढ़ावा देगा।
सातवें वेतन आयोग 2016 बजट के लिए 70,000 करोड़ रुपये का प्रावधान
केंद्रीय बजट में सातवें वेतन आयोग 2016-17 के लिये 70,000 करोड़ रुपये के आवंटन की वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने की पुष्टि की। यह राशि सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग के कार्यान्वयन के लिए इस्तेमाल की जाएगी। यह अनुमान लगाया जाता है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के लिए सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
7 वें वेतन आयोग पर अधिक जानकारी के लिए कृपया आधिकारिक वेबसाइट पर लॉग इन करें:
http://7cpc.india.gov.in/